के. के. का इस तरह जाना……

Spread the love

Image Source : google.com

कृष्ण कुमार कुन्नथ अर्थात् के. के. का मंच से इस तरह से विदा होना मन में अनेक प्रश्न खड़े करता है … आज शो बिजनेस जिस मुकाम पर है ….. वहाँ गलाकाट प्रतिद्वंदिता के कारण कलाकार के लिये स्वयं को स्थापित करने के लिये अपने शरीर और दिल के साथ बहुत मशक्कत करनी पड़ती है और यदि आप सांस लेने के लिये ठहरे तो दूसरा कब आपकी जगह लेकर आगे निकल जाये और आप पीछे रह जायें , इसलिये सांस लेने के लिये कोई ठहरने का खतरा नहीं उठा सकता … यही कारण है कि कलाकार को स्वयं को मंच पर चुस्त दुरुस्त दिखाने के लिये कठोर परिश्रम और मशक्कत करनी पड़ती है जिसके परिणाम स्वरूप कलाकार शारीरिक थकावट, तनाव दिल के रोगों के साथ साथ अवसाद के भी शिकार हो रहे हैं …. प्रतिभाशाली कलाकार सुशांत सिंह के दर्दनाक अंत को हम सब भूले नहीं हैं . सिद्धार्थ शुक्ला और कन्नड़ स्टार पुनीत राजकुमार को भी अकाल मौत का शिकार बनना पड़ा था .संगीत जिसके तार आत्मा से जुड़े होतेथे ….कलाकार के साथ साथ श्रोता को भी संगीत के सुर आत्मिक शांति देता था और गायक और ओता दोनों ही मंत्रमुग्ध होकर संगीत के सुरों में डूब कर आनंद लेता था परंतु आज इसका स्वरूप बदल चुका है … वर्तमान समय में प्रतिस्पर्द्धा में बने रहने के लिये मात्र संगीत का अभ्यास ही आवश्यक नहीं है वरन् स्वयं को चुस्त दुरुस्त दिख कर मंच पर प्रस्तुतीकरण करना आवश्यक हो गया

है . इसके लिये कलाकारों को अनावश्यक रूप आकर्षक बने रहने के लिये जिम या कसरत या स्टेरॉयड आदि का इस्तेमाल करने के लियेमजबूर होना पड़ता है …शो बिजनेस में आकर्षक दिखना सबसे जरूरी होता है …यही वजह है कि वॉलीवुड हिरोइन को कई बार प्लास्टिक सर्जरी की कष्टकारी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है . कन्नड़ अभिनेत्री चेतना राज को तो इसी सर्जरी के कारण भरी जवानी में अपनी जान ही गँवा बैठीं . वॉलीवुड अभिनेत्रियों के लिये प्लास्टिक सर्जरी सामान्य सी बात है … कभी पं. भीमसेन जोशी , पं. रविशंकर या अन्य किसी ऐसे कलाकार को मंच पर प्रस्तुति करते देखिये तो उनकेआभामंडल से मानों उनका संगीत एकदम आत्मा तक उतर कर शांति प्रदान करता है और श्रोता मंत्रमुग्ध होकर उनके सुरसंगीत में डूब कर रह जाता है . जबकि आज का संगीत शोर शराबा गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा और तरह तरह के दबाव, आज के प्रोफेशनल्स कलाकारों के जीवन का जरूरी हिस्सा बन गये हैं , जिसका खामियाजा उन्हें अपनी जान से खेल कर करना पड़ रहा है .अमेरिकी रिसर्च के अनुसार भारत में 30-40 वर्ष की उम्र वालों में दिल के दौरे की घटनाओं में 13% की बढोत्तरी देखी जा रही है . प्रदूषण , तनाव , बदलती जीवन शैली और पल पल की प्रतिस्पर्द्धा की कीमत इन प्रोफेशनल्स को चुकानी पड़ रही है …के. के. का लिवर और दिल ठीक ढंग से काम नहीं कर रहा था लेकिन वह रुक नहीं सकते थे क्योंकि ‘शो मस्ट गो ऑन ‘……हम अपने ग्रंथो का मजाक उड़ाने को तैयार रहते हैं परंतु गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा था ….गो धन , गज धन बाजि धन और रतन धन खान , जब आवै संतोष धन सब धन धूरि समान वर्तमान में हम सबके जीवन से इसी संतोष धन ने ही अपना स्थान खो दिया है और यही कारण है कि परिणाम की चिंता छोड़ कर हम भौतिकता की अंधी दौड़ में आगे होने के लिये आंख मूंद कर अपने जीवन की बाजी लगा कर भागते जा रहे हैं …हम कब समझेंगें कि अब हमें रुक जाना है ….

प्रश्न है … इस शो बिजनेस के कारण कब तक होनहार कलाकार अपने जीवन के साथ खिलवाड़ करतेरहेंगें ..

पद्मा अग्रवाल

View More


Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Back To Top
Translate »
Open chat