तुमको पता है?

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तुमको पता है?

मोनालिसा की मुस्कान कहीं खो गई है!

उसकी आंखों की कशिश 

और होठों की मुस्कुराहट,

जिसे दुनिया का कोई भी

शख्स ढूंढ ही लेता था।
लूव्र की दीवार से,

वह मेरे कोने में आ छुपी है।

 डरी सहमी सी वहां खड़ी है।
थक गई थी मुस्कुराते हुए;

लाखों की भीड़ देखते- देखते..
आज रोने का मन किया तो

मेरे घर के कोने में आ लगी.
वह बंधे हुए हाथ उसने खोलकर मेरे कांधे पर रख दिए।

और उसकी आंख से दो बूंद आंसू बरस पड़े ..
बोली:

 मुझे यह मुस्कान नहीं चाहिए 

जो किसी की कूंची के अधीन हो!

मेरा हाथ थाम और मुझे अपने कांधे पर सर रखकर

 थोड़ा सा रो लेने दे।

मैं भाग कर आई हूं 

उस कलाकार की कल्पना से,

जो मुस्कान देते – देते मुझसे रोने का हक भी छीन ले गया।

तुमको पता है ?

उसको भी कुछ पता नहीं चला……

विनीता मिश्रा


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