मैं क़लमकार

Spread the love

कविताएँ कहानी मेरे शौक़
मुझे मेरे किरदारों को जीने के
अलावा कुछ नहीं आता
मेरे किरदार मेरी कमाई हैं
और उनकी भावनाएँ
मेरे बोनस और ग्रेजुएटी
कभी कभी सोचती हूँ कि
मेरे रिश्ते मेरे किरदार होते
तो अपनी कलम से उन्हें
मन चाहे रंग में रंगती
पर वो किरदार हैं
उस विधाता के
जिसने लिखा है
मेरा किरदार जो
सिखाता मुझे कि
मुझे कैसे मेरा किरदार
है निभाना खुद से
छोड़ के ये बंधन कि
क्या कहेगा ये ज़माना
क्यूँ की ज़माना तो
कुछ ना कुछ कहेगा
वो तो अपने ही
चश्मे के साथ रहेगा
उसको ही सही कहेगा
और अपनी ही कहानी कहेगा

पर मैं क़लमकार
कविताएँ कहानी मेरे शौक़…..

डॉ.मनीषा मनी

View More


Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Back To Top
Translate »
Open chat