यदि सच में खुशी चाहते हैं तो अपने रिश्तों को सहेजें ……

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हम सभी अपने पूरे जीवन खुश रहना चाहते हैं और खुश रहने के लिये ही पैसा कमा कर सुख सुविधा और
ऐशो आराम की चीजें इकट्ठी करते रहते हैं लेकिन मेरा विचार है कि क्या खुशी को यदि पैसों से आप खरीद
सकते हैं … नहीं न …. पहले अधिकतर संयुक्त परिवारों में लोग रहा करते थे … कम सुविधाओं में भी प्रसन्न
रहते थे इसका कारण जिम्मेदारियों का बोझ बँटा हुआ रहता था … मिल बाँट कर काम करते थे और मिल बाँट
कर परिवार वालों के साथ खाते पीते और रहते थे .. एक दूसरे की खुशियों में शामिल होते थे और एक दूसरे
के दुख तकलीफ को दिल से महसूस करते थे … अपने परिवार वालों के साथ सभी सगे संबंधियों और यहाँ तक
कि पड़ोसियों के साथ भी खूब निभती थी … कहा जाये तो चाची, मौसी , जीजी जैसे रिश्तों से आजीवन बँध
जाते थे .
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के हैप्पीनेस प्रोफेसर डैनियल गिल्बर्ट के अनुसार कि जब हम परिवार के साथ होते हैं तो हम
खुश होते हैं और यदि दोस्त साथ में होते हैं तो और ज्यादा खुश होते हैं और यदि गंभीरता पूर्वक सोचें तो
जिन चीजों से हमे खुशी मिलती है वह सब हमें अपने परिवार या दोस्तों के माध्यम से ही मिला करती है .
किसी भी हँसते मुस्कुराते व्यक्ति को देख कर आप यह नहीं कह सकते कि उसके जीवन में सब कुछ अच्छा
या खुश गवार ही है …. क्यों कि सुख और दुःख तो हर व्यक्ति के जीवन में आता जाता रहता ही है परंतु जो
हँसोड़ या हँसमुख व्यक्ति होता है वह खुशी के पलों को अपनी मुट्ठी में सहेज कर रखना जानता है …
रिश्तों की अहमियत को हम कुछ इस तरह से समझ सकते हैं कि अगर आपको कोई तोहफे में नाजुक और
बेशकीमती चीज देता है तो आप उस उपहार को बहुत संभाल कर रखते हैं , ताकि वह कहीं टूट फूट न जाये तो
फिर समझ लीजिये कि सबसे महत्वपूर्ण रिश्तो के उपहार को सहेज कर रखने की जिम्मेदारी तो बनती ही है
.बदलते परिवेश में रिश्तों की परिभाषा जरूर बदली है परंतु रिश्तों की अहमियत आज भी पहले जितनी ही है.
रिश्तों को सदाबहार बनाये रखने के लिये आवश्यक है कि हर रिश्ते को समुचित आदर दिया जाये . हर रिश्ते
की नींव आदर के जल से सिक्त होकर ही सुदृढ बनती है . विचारों में मतभेद संभव है परंतु रिश्तों से खुशी
चाहिये तो रिश्तों में एक दूसरे के लिये सम्मान आवश्यक है .हर व्यक्ति की खुशी उसकी रुचि पर निर्भर करती है …किसी को पुस्तक पढने से खुशी मिलती है तो किसी को रेस्टोरेंट का बढिया खाना खाने से तो किसी को चिड़ियों को दाना डाल कर चिड़ियों को चुगते हुए देख कर , तो किसी व्यक्ति को मंदिर में दर्शन करके मन को खुशी मिलती है , किसी को साफ सफाई करके बहुत खुशी महसूस होती है …. निष्कर्ष यह है कि खुशी कोई ऐसी वस्तु नहीं है जिसे हम बाजार से खरीद सकें , खुशी का संबंध मन को
संतोष पहुँचाने वाली भावनाओं से होता है … जो भावनायें मन को कचोटती हैं , दुखी करती हैं , वह कभी
खुशियों से जुड़ी नहीं हो सकतीं …. प्रसिद्ध अमेरिकी मनोवैज्ञानिक जॉर्ज वैलेट कहते हैं कि वर्षों के अध्ययन से यह पाया है कि हमारे जीवन को सबसे अधिक जो प्रभावित करता है वह है हमारे दूसरों के साथ रहने वाले संबंध … इसलिये जीवन में रिश्ते
बहुत मायने रखते हैं और हमारी खुशियों को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं … यह भी देखा जा रहा है कि
भौतिक समृद्धि या बाहरी धनदौलत हमें अंदर से खोखला करने का काम किया है … इंसान की पैसे की भूख
कभी समाप्त नहीं होती वरन् दिनोंदिन बढती जाती है और पैसा बटोरने में ही वह अपनी सारी जिंदगी को खपा देता है और अशक्त होने पर यह महसूस करता है कि पैसा सुख दे सकता है लेकिन खुशियाँ नहीं दे सकता है … जैसे ए. सी. की ठंडी हवा सुख दे सकती है परंतु जब आप किसी जरूरत मंद को पेट भर खाना खिलाते हैं या उसे एक पंखा खरीद कर देते हैं तो उसके चेहरे की मुस्कान आपको खुशी प्रदान करती है … इसलिये पैसा कमाने के साथ साथ अपने सामाजिक दायरे को भी समृद्ध करते रहना चाहिये क्योंकि समाज के लोगों के साथ बैठ कर ही आपको खुशियाँ प्राप्त हो सकती हैं … जब हम अपने जीवन में खुशी के कारणों एवं उत्तरदायी कारकों पर विचार करते हैं तो इनमें परिवार एक अहम्का रक है … हमारी खुशियों और गम को नियंत्रित करनें उनमें साथ निभाने में अग्रणी परिवार ही होता है. सभी सदस्यों के साथ बैठ कर खाना खाने , घूमने जाने में प्यार और आनंद की अनुभूति ही खुशियों को जन्म देती हैं . जब हम सभी अपने मित्रों के साथ बातें करके समय बिताते हैं तो निश्चय ही वास्तविक दुनिया से दूर एक अन्य वातावरण में अपने मन मस्तिष्क को ले जाते हैं …. कभी प्यार तो कभी पैसे के बहाने ही खुशी के छोटे बड़े अवसर जीवन में खुशियाँ भर देते हैं .. मूलरूप से खुशी व्यक्ति के अंदर निहित भाव हैं जिसे बाहर के साधनों से पाने या खोजने की बात फिजूल सी है …… हमारे समाज में त्यौहार और पारिवारिक उत्सव रिश्तों को निभाते रहने के विचार की ही संकल्पना है … आज
भी जब परिवार के किसी उत्सव में शामिल होते हैं तो सबसे मिल जुल कर कितने तरोताजा महसूस करते हैं
… किसी पर्व या त्यौहार में जब पूरा परिवार इकट्ठा होकर साथ में मनाता है तो हमारी खुशी दुगुनी हो जाती
है और खुशी की अनुभूति से मन भीग उठता है इसलिये हमारी खुशियाँ रिश्तों को निभाने में ही है ….
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि यदि जीवन में आप प्रसन्नचित्त रहना चाहते हैं तो अपने जीवन के लिये एक
लक्ष्य या ध्येय निर्धारित करें और दूसरों की परवाह न करते हुए अपने अंतर्मन के कहे अनुसार करें …किसी
दूसरे की प्रतिक्रिया के बारे में सोच कर डर के मारे अपने सपने को पूरा ना करने के दिशा में प्रयास ही न
करने से आखिर में हमें दुख ही अनुभव होगा इसलिये अपने सुविचारित कदम हमें जीवन में सुख के साथ खुशी
भी देते हैं … निर्जीव हुए रिश्तों में जान फूंकने का सबसे अच्छा तरीका है कि अपनों के साथ समय बिताना . जो लोग
आपके लिये मायने रखते हैं , उनके साथ क्वालिटी टाइम बिताना बहुत असरदार होता है …यदि समय का
अभाव है तो समय निकालें … समय चाहे थोड़ा हो पर यह एहसास करना कि उनके साथ समय बिताना आपके
लिये कितना महत्वपूर्ण है , जरूरी है … सोच समझ कर रिश्तों के लिये समय निकालें और साथ में समय
बिता कर दूसरों को भी खुशी दें और स्वयं भी पायें … अपने सब्र का दामन कभी न छोड़ें … रिश्तों में गलतफहमियाँ हो जाती हैं लेकिन आप उनलोगों की शिकायतों को धैर्य के साथ सुनें नहीं तो उन्हें यह एहसास होगा कि आपको उनकी परवाह नहीं है … हो सकता है कि उनकी शिकायत आपकी नजर में वाजिब न हो पर यह शिकायत हो सकता है आपके किसी व्यवहार से आई हो
इसलिये उस बात को अपनी बात कह कर या माफी माँग कर रिश्ते को निभायें क्योंकि आपसी मौन रिश्तों में
दूरी ला देता है और आप अपनों से दूर रह कर कभी खुश नहीं रह सकते हैं .
अक्सर लोग अपनी खुशी विलासिता पूर्ण जीवन में खोजते हैं और दूसरों की संपन्नता देख कर सोचते रहते हैं
कि उनके पास ये नहीं है …. वो नहीं है और दुःखी रहते हैं …हम सबको अतीत की अप्रिय यादों को भुला कर
सुकून के साथ अपने वर्तमान में जीने की कोशिश करनी चाहिये .हम लोगों को नन्हें मुन्नों को देख कर प्रेरणा लेनी चाहिये कि थोड़ी देर रोने के बाद नाराज बच्चा अपने उसी दोस्त के साथ खुशी खुशी खेलने लग जाता है तो बड़े होकर हम लोगों को क्या हो जाता है कि खुशी के अवसर पर भी हम दूसरों की संपन्नता और अपनी कमियों की चिंता में बरबाद कर लेते हैं .
रिश्ते कैसे सुधारें ….


1-दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करें जैसा आप उनसे चाहते हैं ….
2-आपके द्वारा की गई छोटी सी प्रशंसा से आप उस व्यक्ति की निकटता पा सकते हैं
3-कोशिश करें कि आप दूसरे की मनः स्थिति को समझते हुय़े उसकी भावनाओं का आदर करें .
4-रिश्तों में खुशी पाने के लिये कई बार अपने अहम् को छोड़ कर झुक जाने से गुरेज न करें .
5-जो लोग अहम् के कारण झुकना नहीं जानते , वह रिश्तों में प्रेम और आत्मीयता की अनुभूति से सदा
वंचित रहते हैं .
6-अपने बुजुर्गों का मान सम्मान करें , उनकी बातों को ध्यान से सुनें … चाहे करें अपने मन की .
7-बिगड़े रिश्तों को संवारने की पहल आप स्वयं करें … हर रिश्ता अपने में महत्वपूर्ण होता है .
8-सबसे आवश्यक बात है कि दूसरों के प्रति नफरत और नकारात्मक विचार मन से बिल्कुल ही निकाल दें .
9-जब रिश्ते में प्यार और आदर होता है तो रिश्ते। निभा कर खुशी मिलती है .
10-अपनी जुबान पर हमेशा मिठास बनाकर रखिये .
11-रिश्तों में निंदा से बचें … यदि कुछ पसंद नहीं आ रहा तो दूसरों से कहने से क्या फायदा ….
12-उसी शख्स से दिल खोल कर बात करें … संभव है कि उसे अपनी गल्ती समझ आ जाये .
13-रिश्तों सबसे खराब स्थिति है ,आपस में बातचीत का बंद हो जाना .
आज कल रिश्तों की बुनियाद ही पैसों के इर्द गिर्द घूम कर दम तोड़ रही है .. यदि रिश्तों में खुशी
चाहिये तो हर रिश्ते के प्रति आदर , प्यार और सम्मान रखें और फिर उन रिश्तों के साथ समय बिता कर
मिलने वाली खुशी को सहेजें
.


पद्मा अग्रवाल

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