हैलो शिखा…..

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इन दिनों त्यौहारों का ही माहौल था, शाम का समय था और पूरी बस खचाखच भरी हुई थी । आनन -फानन में मीनू ने किसी तरह खुद को बस के भीतर प्रवेश कराया और किस्मत से एक सीट मिल गई तो मीनू चट से बैठ गई ।जयपुर से रात का सफर था सुबह वो आराम से उदयपुर पहुंच जायेगी यह बात मन ही मन पांचवी बार दोहरा कर उसने चैन की  सांस ली । बस में भांति -भांति के  लोग थे , पैसैंजरों की इधर -उधर की  बातें यहां वहां से मीनू के कान में यदा- कदा पड़ रही थी,  और बस चल पड़ी थी। तभी उसके साथ बगल में बैठा  युवक उससे बोला,” शिखा तुम शिखा हो आज भी बिलकुल वैसी ही सजीली और खुशमिजाज।” मीनू यह सुनकर सकते में पड़ गई । 

हर रोज मां से सांवली  लड़की, आलसी बेटी , जिद्दी,इसका घर कब बसेगा” सुन सुन कर पक जाती थी ।वो तो दफ्तर जाकर काम मे सात घंटे उसको बहुत ऊर्जा देते ,पर मीनू को कच्चा -पक्का जितना भी याद था वो तोल- मोल कर विचार कर रही थी कि  आज तक किसी ने उसको इतने सलोने शब्दों की  तारीफ से नहीं नवाजा था ।अब मीनू ने भी पूरे मजे लिये । हूं ,”कहकर वो चुप हो गई । ,”तुमने तो बारहवीं के बाद किसी बड़े कालेज मे दाखिला ले लिया था पर मेरी पढाई लिखाई तो सोने के आभूषण की  दुकान में बिल बनाने में खपने लगी ।

 बस पत्राचार से ग्रैजुएशन किया और वही सोने चांदी का काम कर रहा हूं ।” मीनू ने फिर से मीठा मीठा ,”हूं हूं “बोलकर थोड़ा बहुत गर्दन हिला दी । वो बोलता रहा ।,” मैं तो तुमको कितना पसंद करता था । पर मैं शर्मीला बहुत था । सरकारी स्कूल था । तुम जानती हो ना कि कोई लड़का किसी लड़की से खुलकर बात नहीं कर सकता । फिर मुझे लगा कि तुम पास वाले सरकारी महाविद्यालय में दाखिला लोगी पर तुम कितनी दूर चली गई । अब शायद दस बारह साल बाद दिखाई दी हो । पर मुझसे बोले बगैर  रहा नहीं गया । “मीनू सुनती रही । 

अब रात गहराने लगी थी ।अचानक  बस एक जगह रूकी । मीनू ने शहर का  नाम जानने की  कोशिश नहीं की, मीनू घर से भंरवा करेले और लौकी के कोफते खाकर आई थी पर अभी  वो समोसा खाना चाहती थी । मीनू कुछ विचार करके खिड़की से गरमागरम समोसे वाले को आवाज देने ही वाली थी कि बस दोबारा चल पड़ी । युवक का  बड़बडा़ना जारी था । वो इतिहास , मनोविज्ञान सबकी पुरानी बातें याद किये जा  रहा था मीनू कभी कभार हां हां कर देती जबकि उसका इन बातों से कोई वास्ता ही नहीं था ।” अरे, शिखा, तुमको भूख लगी है अभी तुम खिड़की से किसी को आवाज दे रहीं थीं।” कहकर उसने अपने झोले में कुछ टटोला । 

चार पांच पाउच निकल आये एक भुजिया थी, एक मूंगफली की  नमकीन, ग्लूकोज बिस्कुट और कुछ टाफी।

,”यह रेवडी़ लो खा लो “उसने कहा तो मीनू ने पाउच हाथ मे ले लिया पर खाया नहीं वो मजे से बिस्कुट खाने लगा । बहुत रात हो गई थी । मीनू को नींद आने लगी । नींद की  मदहोशी में मीनू ने एक मर्दाना बाजू को जोर से पकड़ा और मोड़ दिया । ,”आह,  ओह,”जोर की  आवाज आई । बस मे सभी ऊंघ रहे थे मगर यह चीख सुनकर बहुत सारे यात्री जाग गये । लेकिन तब तक सेकेंडों मे वो युवक बस से बाहर कूद गया था । अब मीनू मन ही मन हंस पड़ी । और अपने आप से बोली,” ये था मेरा पुराना सहपाठी ।” वो हौले से खुद को शाबाशी देने लगी । खूबसूरती की  तारीफ करके कुछ भी खिला दो और सामान लूट लो । हद है मीनू ने यह सोचकर समय देखा । अभी तीन घंटे बाकी थे

। अब दो लोगों की  सीट पर वो थोड़ी सी फैलकर ऊंघने लगी ।

पूनम पांडे,

Ajmer

मौलिकता का  प्रमाण पत्र
मैं पूनम पांडे यह वचन देती हूँ कि संलग्न आलेख  पूरी तरह मौलिक , अप्रकाशित, अ्प्रसारित है इसका प्रकाशनाधिकार ” womenshinemag ” को सहर्ष प्रदान करती हूँ धन्यवाद पूनम पांडे अजमेर

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