Bhagat Singh

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Bhagat Phool Singh is one of those first social reformers who worked for women
education and women emancipation. His first school, “Gurukul”, to educate
women consisted of his own daughter and two other girls in Khanpur Kalan in

  1. That small effort has sustained to become a full-fledged university with two
    schools , a polytechnic Institute, a ayurvedic medical college and hospital within

its campus. This precious soul was born on 24th February, 1885 in Mahra village
near Gohana and brought forward this seminal idea of women’s education and
now that land has also produced Manushi Chhillar, miss world of 2017.
Pratibha student of Bhagat phool Singh Mahila vishwavidyalaya, sonipat, Haryana
from department of English. Born in Haryana (Gurugram) . I’m trying to reshape
the world with my verse, I’m very passionate poetic.

एक वक्त था आज़ादी से पहले का
आप जन्मे थे छोटे से माहरा गांव में
उम्मीदों की किरण का दूसरा नाम थे वो
क्या पता था किसी को?
आप इतना आगे बढ़ जाओगे
आप इतना कुछ कर जाओगे
इतने दुश्मन अपना कर भी
कैसे संभाल पाए आप-
कैसे लोगो को नींद से जगा पाए आप

बचपन से कुछ करने की,
शिद्दत थी आप में
हृदय करुणा से भरा हुआ
इतने परोपकार से जुड़े हुए

इतना आगे बढ़कर,
पटवारी के पद पर आए आप
बडी निपुणता से कार्य पूर्ण करके
रिश्वत के जाल में फसे भी आप
कैसें निकले उस गलत भंवर से
कुछ संभल गए आप, कुछ संभाल पाए आप
समाज के उद्धार की
ज्ञानज्योति जागृत कर पाए आप
महानुभावों एवं संत, प्रेरणाप्रद के
उपदेशों को बार बार सुनकर
कुछ करने की ठानी थी आपने
वो भक्ति, वो श्रद्धा, वो आस्था
विद्वानों जैसा हर गुण था आप में
दृढ़ ईश्वरशक्ति, दृढ़ संकल्प के लिए
प्रसिद्ध हुए आप,

हे ! गरीबों के देवता
एक प्रश्न है आपसे
इतना उदार, परोपकारी, पुण्यात्मा

कैसे बन पाए आप ?
वो एक दिन था –
अपने घोड़े पर होकर सवार
सांयकाल को निकले थे
उस अंधेरी रात में
इतने बेबाक होकर, कैसे ही लड़ पाए आप
हर लड़ाई को जीतकर
हर नारी को सम्मान दिलाया
न कभी बोलने का हक था
न बाहर चलने का अधिकार था
हमेशा से कुछ इन लक्ष्मण रेखाओं ने,
जकड़ का रखा था ।
उन पर्दो में रहने की आदत सी थी
बच्चों और खाने में दुनिया सिमट सी रही थी
नारी भी है एक इंसान,
उड़ने के है भी रखते है अरमान
आज़ादी की सांस लेने का हमारा भी है मन
यही बातें सबको समझाई।
न हिंदू, न मुसलमान, न जात पात

हर प्राणी को इंसानियत का धर्म सिखलाया
हर जाति, हर धर्म ,हर गोत्र
इन बंधनों से मुक्ति दिलवाकर
मानवता का परचम लहराया

हे! गरीबों के देवता
बस एक ही प्रश्न है आपसे
इतनी लड़ाई कैसे लड़ पाए आप
गृहस्थ धर्म का पालन करके
वानप्रस्थश्रम के गुणकारी सर्वश्रेष्ठ पुरुष रहे थे आप
हे पुण्यात्मा!
वो गुरुकुल की स्थापना, वो शिक्षा की दौड़
वो उम्मीदों की किरणे
वो बदलते समाज के सपने
वो गुरुकुल भूमि का कठोर तप
वो अहिंसा की रह पर चलकर
वो गोरक्षा का व्रत
आखिर इतनी कठोर राह पर,
कैसे ही चल पाए आप

लाखों दुश्मन खड़े किए
कुछ आलोचनात्मक मनुष्यों ने
बागडोर संभाली थी अपने हाथो में
संस्कृति व संस्कृत से सरोकार नहीं
स्वच्छता का व्यवहार नहीं
सत्य का कारोबार नही
पारदर्शिता का अचार नही
ऐसे प्राणी समाज पर कलंक होते है
विषधर का पान होते है
व्याधि की गन होते हैं
सर्पघाट का धन होते है
कुकुरघृत वामन होते है
उल्लासित कुसुम दमन होते है
कंठ में वेद कसम होते है

इतनी बाधाओं के बाद भी
इतने विघ्नों के बाद भी

इतने परोपकारी कैसे बने
शत शत नमन आपको
लोगो के लिए मिसाल बने
नारियों के लिए ढाल बने
विद्वानों के भी विद्वान बने
समाज की मर्यादाओं की शान बने
हम धन्य हुए आप जैसे अदम्य पाकर
हम करेंगे आपका सपना पूरा
अपने मंजिलो पर चलकर।

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