Home Dil se आजादी है ,महिला का हक पहला
Dil se

आजादी है ,महिला का हक पहला

Share
Share

बालीवुड में लज्जा ,मदर इंडिया, दामिनी ,मर्दानी जैसी फिल्में भले ही अपनी पटकथा से स्त्री सशक्तिकरण की बात कहें और लाखों दर्शकों से तालियां बजवा भी लें  मगर  भारतीय समाज की असली हालत एकदम ही अलग है । आज भी  राजधानी दिल्ली तक में युवतियों को   सरेआम  छींटाकशी, हिंसा, प्रताड़ना, छेड़छाड़ , बस रेलगाडी मे बेहूदा शायरी  जैसी  समस्याओं से हर दिन दो चार होना पड़ता है । अंग्रजों  सेखूब लड़ने वाली रानी लक्ष्मबाई  ने नारी सेना की टुकडी तैयार की थी और वो  हमेशा यही चाहती थीं कि उनके प्यारे हिंदुस्तान में  हर कोने से मजबूत महिलाएं नेतृत्व की  क्षमता के  साथ आगे आयें और बेहतरीन मुकाम हासिल करें । मगर कितनी अजीब बात है कि परंपरागत  भारतीय समाज की स्थिति महिला को लेकर रूढ़िवादी है । अगर गौर किया जाये तो महिला को देवी कहकर साल मे अठारह दिन पूजा करने वाला भारतवर्ष  सिद्धांत, स्वीकार्यता और मान्यता तीनों दृष्टि से औरत  को श्रेष्ठ और सम्माननीय स्थान देता आया है। यहां स्त्रियों को रसोई जैसी जगह पर अपनी सुबह से शाम तक की  भूमिकाको प्राप्त करने के लिए किसी कागज  की जरूरत ही नहीं पड़ी। दरअसल जो समस्या रही है, वह दहलीज से बाहर भागदौड़ की दुनिया ,कामकाजी  संसार मे उसके साथ होने वाले व्यवहार की है। हमारे यहां स्त्री-शक्तिकरण के जितने आंदोलन चले, वे मानसिकता को बदलने और व्यवहार में आई जड़ता को तोड़ने के लिए ही चलाए गए। सैद्धांतिक तौर पर तो हमारे यहां स्त्री-अधिकार निर्विवाद रहा है। जिन दिनों इंग्लैंड में स्त्री को अधिकार देने और न देने की बहस चल रही थी, तब 1916 में एनीबेसेन्ट कांग्रेस की सभापति बन चुकी थी और 1925 में दूसरी महिला सरोजनी नायडू ने इस पद को सुशोभित किया जबकि वह समय परतंत्रता का था और स्वतंत्रता के बाद तो पहले ही दिन से संविधान में स्त्रियों को बराबरी का न केवल पूरा  अधिकार है बल्कि कानून की भी जिम्मेदारी बताई गई है कि उसको समान अवसर दिये जायें । 

 आज के समय में हमारे देश में महिलाएँ भले ही सानिया मिर्जा, मैरी काम , हिमा दास, पी  वी  संधू , कर्णम मल्लेश्वरी, प्रियंका चोपड़ा  आदि में  खुद को देखती हों पर समूल रूप से हर महिला हर जगह पर   उतनी भी सुरक्षित और सम्मानित नहीं दिखतीं, जितने अधिकार और अवसर उन्हें संविधान मे दिये गये  हैं। हर सुबह का  अखबार  अपनी खबरों से यह घोषणा कर देता है कि महिला बहुत  पीड़ित, प्रताड़ित व भयभीत है। इसके साथ ही अपने अस्तित्व को लेकर काफी  आशंकित भी है , जो निराधार भी नहीं है। संविधान में संपूर्ण अधिकार प्राप्त महिला जुल्म की शिकार है। जरूरत से ज्यादा परखने जांचने आजमाने  की  कोशिश ने महिला को भीतर से बागी भी बना दिया है और यह बगावत अपना विकृत रूप दिखा देती है जब एक महिला ही दूसरी महिला का  शोषण करने लगती है ।

आज हमें महिला दिवस पर बैठक, सेमिनार, विचार गोष्ठी , आंदोलन, नारेबाजी के दिखावे की बजाय उन्हें एक आत्मविश्वासी जीवन के अवसर देने और लैंगिक असमानता से समानता के  गलीचे  पर चहलकदमी करने की आजादी दे तो कमाल हो जाये  । यह परिवर्तन इस लिहाज  से भी महत्त्वपूर्ण  है कि महिलाओं को अशिक्षित, असम्मानित और उपेक्षित छोड़ कर तरक्की की उम्मीद

छलनी मे पानी भरने जैसी मूर्खता होगी ।

पूनम पांडे,

Ajmer

मौलिकता का  प्रमाण पत्र
मैं पूनम पांडे यह वचन देती हूँ कि संलग्न आलेख  पूरी तरह मौलिक , अप्रकाशित, अ्प्रसारित है इसका प्रकाशनाधिकार ” womenshinemag ” को सहर्ष प्रदान करती हूँ धन्यवाद पूनम पांडे अजमेर

Share
Related Articles
Dil se

कृष्ण जन्माष्टमी 

‘ऊधो मोहि बृज बिसरत नाहिं ‘…यदि आपको भी बृजभूमि  का  ऐसा ही...

Dil se

धुंधलाती आंखें 

रात के 10 बजे थे मेघना बच्चों के कमरे में लेट कर...

Dil se

 मुखौटा …

“मिसेज शर्मा , आज बेटी के जीवन के लिये इतना  खास दिन...

Dil se

  किटी

सावन, हरियाली तीज मेंहदी लगे हाथ, हरी हरी चूड़ियां राधा कृष्ण का...

Dil se

वह लड़की

नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के एक नंबर प्लेट फार्म पर 25 वर्षीय...