वो तुम न थे वो तुम्हारा गुरुर था
जिसने मुझे एहसास दिलाया
कि मैं एक स्त्री हूँ और तुम्हारे
मुकाबले मेरा अपना कोई वजूद नही
मेरी खुशी मेरा स्वाभिमान सब बेमानी
तुम्हारे झूठे अहंकार के चलते
मुझे कब क्या बोलना है क्या नही
ये कभी समझ ही नही पाई
धीरे धीरे तुम्हारी खुशी की खातिर
खुद में खुद को समेटती चली गयी
और खत्म कर दी सब ख्वाहिशें
अब ये जो मैं तुम्हारे पास हूँ न
क्या हूँ क्यूँ हूँ और कैसी हूँ
तुम्हारे पास होकर भी तुम्हारी नही हूँ
उषा चित्रांगद