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Dil se

लौट आओ ख़ुशी

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पिछले साल  मेरी क्लास में एक नई लड़की आयी थी,
बेहद बातूनी,चंचल, और ज़िंदगी से भरपूर..
होगी यही कोई उन्नीस बीस साल की,
नाम था उसका “ख़ुशी”

हर दिन एक नई कारस्तानी करती,
डांटने पर,नित नये बहाने बनाते हुए
बोलती हुई आँखों से फिर उन्हें सहेजती
देखते ही देखते न जाने कब,
साँवली सलोनी वो नटखट सी चुहिया,
हम सभी के दिलों में घर कर गई..

एक बार क्लास में चर्चा चल रही थी,
विषय था, “जीवन की फुलवारी में उत्सव एक सुगंध”
सामने आने वाली थी होली,
तो लगभग सभी ने इसी  त्योहार पर रखी अपने विचारों की रोली..

ख़ुशी कैसे पीछे रहती??
ये तो उसकी फ़ितरत में ही नहीं था..
पूरे जोश से हाथ उठाकर बड़े ही फक्र से बोली, “ अपने पापा से सीखी है मैंने खेलनी इन्द्रधनुषी रंगों वाली होली”

उसके इस गूरूर को देखकर मैं हँस पड़ी
और बोली, “ ख़ुशी ! ज़रा ये तो बताओ कि इसमें क्या है नई बात ?
हर कोई यहाँ पर खेलता है सतरंगी रंगों वाली ही होली”

तब वह मुस्कुराते हुए चहकती हुई आवाज़ में बोली, “ मेरी फाइटर प्लेन पायलट पापा, कैप्टन प्रताप सिंह का अलग ही है अंदाज़,
क्योंकि उनकी सतरंगी होली के रंग होते हैं कुछ ख़ास..
पहला रंग प्रेम का, दूसरा दोस्ती का, तीसरा निष्ठा का और चौथा जुनून का,
पाँचवा रंग संकल्प का, तो छठा विश्वास का.. और ‘मैम’ सातवाँ रंग वो खेलते हैं समर्पण का .. जो भी करते हैं पूरे दिलो जान से करते हैं”

सुन कर मैं थोड़ा सकपका सी गई..
कहने को तो मैं पढ़ाती हूँ,
लेकिन ये लड़की उल्टा आज मुझे ही पढा गयी..
और छोड़ गयी मन में एक सवाल कि
“क्यों नहीं ये बातें कभी मेरे मन में आईं,
क्यों नहीं ऐसी होली खेलनी हमने अपने बच्चों को भी सिखायी?“

ख़ैर! हँसते मुस्कुराते हुए गुज़र रहे थे दिन,
सीखने सिखाने में बीत रहे थे पल छिन
एक दिन जब मैं सुबह गई थी क्लास,
तो पाया सभी चेहरों को बहुत ही उदास,
पूछने पर पता चला कि “ख़ुशी” अचानक चली गई है गाँव..
ट्रेनिंग देते हुए उसके पिता का क्रैश हुआ विमान ..
स्तब्ध सी रह गई मैं, ऐसा लगा मानो किसी अपने का बिखर गया आसमान

मैंने जब उसे फ़ोन लगाया तो सदा हंसने हंसाने वाली ख़ुशी उस दिन
जी भर के रोई ..
ना एक भी शब्द वो कुछ बोली
ना एक भी शब्द मैं ही कुछ कह पाई ..

फिर एक दिन उसका मैसेज आया,
“ दादी माँ हैं बिस्तर पर और माँ को लगा है गहरा सदमा..
मैं आऊँगी तो ज़रूर लेकिन ‘कब’  ये अभी कुछ पता नहीं..”

इस साल हम सभी खेलेंगे एक अनूठी “होली”,
जो कैप्टन प्रताप सिंह हमें सिखा गए हैं,
शायद यही होगी हम सब की तरफ़ से उनको सच्ची श्रद्धांजलि..

वैसे तो अपनी क्लास के हर स्टूडेंट से है मुझे बहुत प्यार..
लेकिन पता नहीं क्यों फिर भी मेरी नज़रें, उसी को ढूंढती रहती हैं हर बार..
बोलती तो मैं किसी को कुछ भी नहीं,
लेकिन मन आवाज़ें देता रहता है..
“लौट आओ ख़ुशी” हम सभी को है तुम्हारा बेसब्री से इंतज़ार…
बस एक बात हमेशा रखना तूम याद कि कोशिश करने वालों की कभी भी होती नहीं है हार ..

Shared by: Seema K Bafna
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