जेठ महीने की चिलचिलाती धूप में पसीने से लथपथ सरला सिर पर ईंट रख कर ढो रही थी . आज कई दिनों के बाद उसे काम मिला था. पेट की आग जो न करवाये वह थोड़ा है . 6 वर्षीय मुन्नी अपने 3 वर्षीय भाई नन्हें छुट्टन के साथ पेड़ की छांव में बैठी हुई अपनी अम्मा की बात याद करके बहुत खुश हो रही थी .
“ नन्हें ‘आज शाम को अम्मा को पैसा मिलेगा तो अम्मा दाल भात बनायेगी . आज हम लोगों को भर पेट दाल भात खाने को मिलेगा. “ नन्हां भाई बहन की बात सुन कर खुशी से नाचने लगा .
उसी समय कोठी का दरवाजा खुला, प्रौढ मालकिन बाहर आई और उन दोनों को देखते ही चिल्ला पड़ी ,’भागो यहाँ से …अभी कुछ चुरा कर ले जाओगे …दोनों बच्चे सहमे हुये छाँव से निकल कर चिलचिलाती धूप में आकर बैठ गये थे
वह वराण्डे में खेल रहे अपने बच्चों से बोली, ‘ तुम लोग बाहर क्यों खेल रहे हो …अंदर चलो एसी में खेलो… जेठ की धूप लग गई तो…
मासूम छुट्टन बोला, “दीदी जेठ की धूप क्या होती है ?’’