रघुवीर की ग्रोसरी की दुकान में सुबह के 7 बजे से रात के 10 बजे तक भीड़ लगी रहती थी . मोहल्ले वालों की सुबह की ब्रेड और दूध के पैकेट से लेकर आटा , दाल चावल से लेकर घी मसाले क्या नहीं था रघुबीर की दुकान पर … दुकान की भीड़ के साथ साथ उसके एकाउंट में पैसे का बढना तो स्वाभाविक ही था .
ईश्वर की कृपा से एक – एक कर तीन बेटे का वह बाप बन गया . बेटे का बाप बन कर वह बहुत गर्व महसूस करता था .उनका तकिया कलाम था मैं तो बेटे वाला हूँ…. मुझे भगवान् ने बेटी नहीं दी , यह मेरी खुशकिस्मती है … वह हर समय मन में यही सोचता था . वह बड़े घमंड में रहता कि मैं तो बेटे वाला हूँ …और शान से अपना तकिया कलाम कहता,” अरे यार, मैं तो बेटे वाला हूँ .“ मुझे किस बात के लिये सोचना.
तीनों बच्चे छोटे थे तभी पत्नी सुरेखा दो दिन की बीमारी में उन्हें अकेला छोड़ कर चली गई . उनके मन में कुछ दिनों तक तो दुनिया से विरक्ति हो गई थी . परंतु बच्चों को तो पालना ही था . उन्होंने घरेलू कामों के लिये बूढी अम्मा को रख लिया था . किसी तरह जीवन बीत रहा था . घर में कोई कमी नहीं थी . बच्चों के लिये सुख सुविधा की सारी चीजे घर में मौजूद थीं . लड़के पढने के बजाय सारे काम करते . किसी तरह से 2-2 साल में एक क्लास पार करते . रघुवीर बेटों को समझाते लेकिन वह तीनों अपनी दोस्ती यारी में मस्त रहते .
उन्होंने अपनी दुकान पर भोले को नौकरी पर रख रखा था . जिसकी एक छोटी सी बेटी नित्या थी , जो बहुत प्यारी सी थी . वह अपने बाबा को दुकान पर खाना देने आया करती थी . रघुवीर को उस मासूम लड़की देख कर बहुत प्यार आता , वह उसे बिस्किट का पैकेट या टॉफी तो कभी ब्रेड यूँ ही दे देते . वह पढने में तेज थी . वह हाई स्कूल में फर्स्ट आई थी . आगे पढने के लिये गाँव से दूर स्कूल में नाम लिखाना चाहती थी लेकिन वहाँ रोज कैसे जायेगी …. इसलिये उसे सायकिल चाहिये थी .
इसलिये जब भोले ने दयनीय स्वर में रघुवीर से कहा , मालिक मेरी बिटिया आगे पढ़ना चाहती है . उसके लिये सायकिल खरीदने के लिये मेरे पास पैसे नहीं है , आप मेरी तनख्वाह से काट लीजियेगा . तो ऱघुवीर ने उसके लिये सायकिल खरीद कर दे दी . उसे आश्वस्त कर दिया कि भोले वह केवल तुम्हारी बिटिया नहीं है , वह मेरी बेटी भी है . जब वह बी. ए. पास हो गई तो नित्या के लिये संपन्न परिवार से रिश्ता आया तो उन्होंने झटपट साधारण ढंग से शादी कर दी.
ऱघुवीर ने नित्या की शादी कर दी . क्योंकि लड़के वालों ने कुछ भी लेने से मना कर दिया था, और सादे ढंग से शादी करने को कहा था . उन्होंने नित्या को जेवर कपड़े के साथ काफी सामान दिया . क्योंकि भोले ने बेटी की शादी के लिये रुपये जोड़ रखे थे . वेसे भी रघुवीर ने अपनी बेटी की तरह से उसे विदा किया .
उनके बेटे नित्या के जेवर और साड़ी कपड़ों और सामानों को देख कर नाराज हो उठे और तीनों पिता के विरोध में खड़े हो गये थे.
तीनों एक स्वर में बोले , “आप सब कुछ उसी लड़की पर लुटा दो “. यहाँ तक कि वह लोग शादी में भी शामिल नहीं हुये . रघुवीर बेटों की हरकत से बहुत दुखी हुये थे लेकिन अपनी औलाद के साथ भला क्या करते या कहते .
नित्या रघुवीर की बहुत इज्जत करती थी क्योंकि उन्होंने उसकी जिंदगी संवार दी थी . वह उन्हे बाबा कहती थी. नित्या अपने ससुराल में बहुत खुश थी .बेटी की जिम्मेदारी से मुक्त होने के बाद उसके सुखी संसार की खबर सुनकर भोले बहुत खुश थे.
लेकिन कुछ दिनों के बाद ही वह दो चार दिन की बीमारी में चल बसे . नित्या रोते रोते बेहाल हो रही थी तो रघुवीर ने नित्या को अपने गले से लगा लिया था . वह बोले , बेटी तुम मत रो मैं तो हूँ तेरा बाबा . रघुवीर ने भोले की तेरहवीं अपने सगे संबंधी की तरह से की . जब नित्या जाने लगी तो ऱघुवीर के गले लग कर फफक कर रो पड़ी थी . अब आप ही इस दुनिया में मेरे माँ बाप हो . वह रोती सिसकती अपने ससुराल चली गई .
रघुवीर के अपने बेटे पिता के प्रयासों से यहाँ वहाँ छोटी मोटी नौकरी में लग गये थे . उन्होंने अपने बेटों की शादी भी सुशील कन्या और अच्छे परिवार देख कर, कर दी .
नित्या की शादी और भोले की तेरहवीं के समय तीनों बेटों ने रघुवीर के साथ बहुत झगड़ा किया और तीनों अपने – अपने हिस्से के लिये गाली गलौज करने लगे यहाँ तक कि पिता से हाथा पाई के लिये भी तैयार हो गये तो गुस्से में उन्होंने पत्नी का सारा जेवर निकाल कर तीनों बहुओं में बराबर – बराबर बाँट दिया .
फिर भी उनके मन में यह विश्वास था कि उन्हे क्या करना है …. तीन – तीन बेटे बहू हैं . उन्हें भला अपने लिये दो रोटी के लिये क्या सोचना …
रघुवीर ने फिर भी बेटों के मोह में सोचा कि उन्हें इन बेटों के भविष्य के लिये कुछ कर देना चाहिये …उन्होंने तीनों बेटों के लिये एक से बराबर बराबर मकान बना दिये , चूँकि घर में बहुओं में आपस में दिन भर कलह क्लेश रहता था , इसलिये उन्होंने तीनों से अपने अपने मकान में जाने के लिये कह दिया . परंतु फिर भी बेटे आपस में लड़ते रहते वह यही कहते रहते कि बड़े भइया का घर अच्छा है , सड़क पर है , मेरा गली में है …. किसी न किसी तरह से फिर भी आपस में लड़ते रहते और फिर आखिर में रघुवीर के पास शिकायत लेकर आते .
उनके घर के काम बूढी अम्मा कर देती थीं . वह लंबे समय से उनके घर का सारा काम करती आ रहीं थीं ,इसलिये उन्हें कभी कोई परेशानी नहीं रही थी . उनकी देखभाल माँ की तरह करती और खाना भी समय पर बना कर देती . अम्मा के साथ उनका समय अच्छा बीत रहा था . 5-6 साल तो सब ठीक ठाक चलता रहा था फिर अम्मा अक्सर बीमार रहने लगीं थीं .
रघुवीर की भी उम्र हो चली थी . रोज रोज के झंझटों और कहा सुनी से बहुत दुखी रहते लेकिन अपना दुख दर्द किससे कहते .वह अपना करते कि अम्मा की देखभाल करते . उन्होंने उनके बेटे को खबर कर दी उनका बेटा बहू दोनों आये और अपने संग उनको ले गये .
बूढा थका तन निराश मन के साथ टूटा दिल अब तीन – तीन बेटे बहू होने के बाद भी एक – एक रोटी के लिये मोहताज होते जा रहे थे . उनके पास अब कुछ नहीं रहा था क्यों कि बेटों की आस में उन्होंने अपना सब कुछ पहले ही तीनों में बाँट दिया था . दुकान तो पहले ही बीमारी के कारण बंद हो चुकी थी. वह अपनी दुर्दशा पर अक्सर आँसुओं से रो पड़ते .
उन तीनों भाइयों के घर से एक – एक हफ्ते टिफिन में खाना आता , वह आस लगाये इंतजार में बैठे रहते. अक्सर खाना इतना कम होता कि वह भूखे रह जाया करते . धीरे धीरे वह बिस्तर से लगते जा रहे थे . उन्हें 3 दिन से बहुत बुखार आ रहा था लेकिन कोई बेटा या बहू उनसे मिलने या देखने नहीं आया , टिफिन यू ही भरा हुआ लौट जाता लेकिन किसी बेटे ने नहीं सोचा कि आखिर क्या बात है ….वह टॉयलेट के लिये उठे लेकिन शरीर ने साथ नहीं दिया और वह बाथरूम में गिर पड़े ..ठंड के दिनों में वह रात भर वहीं पड़े रहे थे .
अगली सुबह उनके मित्र रामलाल उनका हाल चाल लेने लठिया टेकते हुये आये और रघुवीर की हालत देख सकते में आ गये थे . उनकी आँखें बंद थीं और वह बेहोश थे .
उन्होंने पड़ोसियों को बुला कर रघुवीर को अस्पताल में एडमिट करवा कर तीनों बेटों की लानत मलानत की तो मुँह दिखाने के लिये एक एक कर तीनों आये लेकिन उनके चेहरे से लग रहा था कि वे दिखावा कर रहे हैं . फिर जल्दी ही चले गये .
उनकी हालत खराब होती जा रही थी .डॉक्टर ने कहा था कि इन्हें दवा की नहीं दुआ की जरूरत है . इनका कोई खास प्रिय हो तो उसे बुला लीजिये.
रामलाल को नित्या की याद आई और उन्होंने उसे खबर कर दी . वह आधी रात को चल कर सुबह भागती हुई आ गई थी . वह अपने बाबा की हालत देख कर सिसक पड़ी . रघुवीर को पैरालिसिस का अटैक हुआ था , वह मुंह से गों – गों की आवाज निकाल पा रहे थे . उनका आधा अंग हिल डुल नहीं पा रहा था .
नित्या की देखभाल और सेवा सुश्रुसा से रघुबीर को स्वास्थ लाभ होने लगा था . तीसरे दिन उन्होंने जब अपनी आँखें खोली तो नित्या को देख विश्वास नहीं हुआ लेकिन चेहरे पर मुस्कान आ गई थी .
10 -12 दिन में उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया लेकिन कोई भी बेटा उन्हें अपने घर में ले जाने के लिये तैयार नहीं हुआ था . बड़े बेटे ने कहा , मेरे घर में जगह नहीं है , मंझले ने कह दिया , मेरे बच्चों की परीक्षा है . छोटे ने स्पष्ट रूप से बोल दिया , मेरी पत्नी बीमार रहती है , इसलिये मैं तो उन्हे अपने घर ले ही नहीं जा सकता . जब नित्या ने तीनों बेटों की बात सुनी तो वह अपने बाबा को अपने साथ ले जाने के लिये के तैयार हो गई थी . नित्या उन्हें अकेले छोड़ कर जाने के लिये कतई राजी नहीं हुई क्योंकि वह उनके बेटे बहुओं का रूखा व्यवहार देख रही थी .
बेटों के तौर तरीके को देख कर रघुवीर की आँखों से निरंतर आँसू बह रहे थे . वह बेटों के व्यवहार को समझ रहे थे लेकिन किसी भी तरह नित्या के साथ जाने को तैयार नहीं हो रहे थे जब रामलाल ने बहुत समझाया तो अनमने से आँसू बहाते रहे.
इस समय बेड पर उनके सारे काम हो रहे थे . फिर भी नित्या ने अपने बाबा को अपने साथ ले जाने के लिये एंबुलेंस को बुला लिया था .
नित्या फूली नहीं समा रही थी , वह अपने बाबा को अपने साथ लेकर जायेगी . लेकिन जब वह सुबह उठी तो वह बाबा – बाबा पुकारती रह गई क्योंकि बाबा तो अपनी अनंत यात्रा के लिये चल पड़े थे .