अपने खालीपन को भरने औरतें भरती रहती हैं बरनियों में अचारपतियों से उपेक्षित होकर खोजती हैं -पुत्री और पुत्र में वही प्यार…अंदर से धधकती...
कविताएँ कहानी मेरे शौक़मुझे मेरे किरदारों को जीने केअलावा कुछ नहीं आतामेरे किरदार मेरी कमाई हैंऔर उनकी भावनाएँमेरे बोनस और ग्रेजुएटीकभी कभी सोचती...
जी चाहता हे फिर पुराने वक़्त में चली जाऊँ फिर तुम से मिलने के बहाने सुझाऊँकोई पब्लिक बूथ से तुम्हें फ़ोन घूमाऊँ मिलने...
मैं स्त्री हूँ जग की जननी हूँ सृष्टिकर्ता हूँ परंतु विडम्बना देखो…. अपनी ही रचना ‘पुरुषों’ के हाथों सदा से छली जाती रही...
हम तो स्वच्छ दर्पन हैं किसी से भी नहीं डरते डरें वो सौ मुखौटे जो हैं अपनी जेब में भरते वादा कर मुकर...
आइये आज आप सबको अपनी “दशरथी”अम्मा से मिलवाते हैं…ये कई वर्षों से घर के पास रहती हैं और घरों में काम करने जाती...