मैं स्त्री हूँ जग की जननी हूँ सृष्टिकर्ता हूँ परंतु विडम्बना देखो…. अपनी ही रचना ‘पुरुषों’ के हाथों सदा से छली जाती रही...
हम तो स्वच्छ दर्पन हैं किसी से भी नहीं डरते डरें वो सौ मुखौटे जो हैं अपनी जेब में भरते वादा कर मुकर...
आइये आज आप सबको अपनी “दशरथी”अम्मा से मिलवाते हैं…ये कई वर्षों से घर के पास रहती हैं और घरों में काम करने जाती...