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शगुन का लिफाफा

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स्नेहा और पारो दोनों के बीच अच्छी दोस्ती थी …. दोपहर में अक्सर दोनों एक दूसरे के साथ सोसायटी के लोगों की गॉसिप करके अपना मनोरंजन के साथ ज्ञानवर्द्धन भी कर लिया करती थीं … लेकिन  आज जब स्नेहा उसके पास आई तो वह बॉस के बेटे के रिसेप्शन के कार्ड के बारे मे पारो बढ बढ  कर बातें कर रही थी …..वह बताना  चाह रही कि   बॉस के साथ उसके  पति प्रभव की  बहुत नजदीकियां है  ..बॉस ने उसके पति को कार्ड इसीलिये दिया है क्योंकि वह उन्हें बहुत मानते हैं ….

उसका मूड ठीक होने की जगह और खराब हो गया था ….

वह घर पहुंची ही थी कि कॉल बेल बज उठी वह सोच में पड़ गई कि इस समय भला कौन हो सकता है … की होल से उसने पति जय को देखा तो झट से दरवाजा खोल दिया था …  जय के हाथ में बड़ा सा मिठाई का डब्बा देख वह आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता से बोली ,’ क्या बात है …. इतना बड़ा मिठाई का डब्बा …. लॉटरी लग गई क्या …. ‘

‘अरे श्रीमती जी , सब बताता हूं … सांस तो लेने दीजिये …’

स्नेहा कौतूहल से डब्बे के ऊपर रखा बड़ा सा कार्ड उठा कर देखने लगती है ….

‘इतना बड़ा कार्ड तो मैं पहली बार अपनी जिंदगी में देख रही हूँ….यह तो बहुत रुपयों का होगा ….’

‘और क्या … कार्ड ही कम से कम 500 रुपये से कम का नहीं होगा … और मिठाई का डब्बा तो हजार से भी  ज्यादा का होगा …  खोल कर देखो …इसमें  पिश्ते बादाम की  मिठाई  रखी होगी …. ‘

‘कार्ड के साथ मिठाई भी दी जाती है क्या ?’… मश्र्यमवर्गीय मानसिकता की जानकारी के हिसाब से स्नेहा  बोली , ‘कार्ड के साथ मिठाई का डब्बा भला कौन देता है  …. ‘

‘अरे यार .. मेरे बॉस के बेटे  शादी का रिसेप्शन  है… करोड़ों खर्च कर रहे है तभी तो इतना मंहगा कार्ड  और  साथ में मिठाई का डब्बा भी दिया है ….’

स्नेहा चिंतित स्वर में बोली , ‘तो फिर गिफ्ट भी मंहगा देना पड़ेगा ….’

‘लिफाफा दे देंगें ….’

‘रुपये रखने होंगें …क्या खाली लिफाफा दोगे …. ‘

‘तुम हर समय मूड खराब करने वाली बात करने से बाज  नहीं आती …. कुछ बोल दो तो मुंह फुला कर बैठ जाती हो …’

‘बॉस ने पूरे ऑफिस से बमुश्किल 5-6 लोगों को कार्ड देकर इनवाइट किया है … खुशी मनाओ कि बॉस के खास आदमियों में तुम्हारा पति का भी नाम शामिल है ….अब हम लोगों को  बड़े लोगों की शादी की पार्टी देखने को मिलेगी ….’

प्रभव को कार्ड मिला होगा, पारो बढ बढ कर मुझे सुना रही थी …. तुम महिलायें भी …..

‘सुनिये ना मेरे  पास तो कोई अच्छी साड़ी ही नहीं है ,,, ‘

‘बस शुरू हो गया रोना …तुम तो इतनी सुंदर हो कि जो पहनोगी , उसी में सुंदर लगोगी …’

‘चुप रहिये …आप तो बस …शुरू हो जाते है ….’

कुछ याद आते ही वह खुश होकर बोली , ‘मैं तो भूल ही गई थी अभी रितेश की शादी में जीजी ने बहुत सुंदर शाड़ी दी थी … वह तो नई ही रखी है … मैं ब्लाउज बनवा लूंगीं और मैचिंग चूड़ी ले आऊंगीं … एक आर्टीफिशियल सेट भी ले आऊंगीं … मेरा काम तो हो गया …’ ‘अब आप बताइये कि क्या पहनेंगें …’

‘मेरा छोड़ो … तुम्हारे सामने मुझे भला कौन देखेगा ….’

‘मजाक बंद करिये …. ‘

‘मेरा छोड़ो … कुछ भी पहन लूंगा ….वह सोचते हुये बोला , ‘तुम्हारे भाई की शादी वाला सूट किस दिन काम आयेगा ….’

‘जय , वह तो बहुत पुराना हो गया है …. तो तुम्हारा पति कौन नया नवेला है ‘…कह कर वह जोर से हंस पड़ा था …

पति पत्नी दोनों मन ही मन अपने बनाये प्लान के अनुसार खुश थे .

स्नेहा मन ही मन होने वाले खर्चे के बारे में सोच रही थी . ‘सुनिये जी , वहां कितने का लिफाफा दीजियेगा …’

‘वहां कम से कम 5100 का लिफाफा तो  देना  ही पड़ेगा ….’आखिर बॉस के हाथ में तो प्रोमोशन की बागडोर रहती है … समझा करो …’

‘बड़े दानवीर कर्ण बन बैठे हो ..वहां वह करोड़ों खर्च कर रहे हैं …आपके 5100 को कौन देखेगा …’ लेकिन अपना तो पूरा बजट ही बिगड़ जायेगा …’

‘तो क्या करूं … अपनी नाक कटा दूं ..’

वह चुप हो गईं थीं ,  उठ कर चाय बनाने के लिये किचेन में चली गई थी , वह  पति को नाराज नहीं करना चाहती थी …

पीछे से जय ने आकर उसे अपनी बाहों में भर लिया थी …. ‘मेरी प्यारी सी पत्नी तुम तो बहुत सुंदर हो फिर भी  उस दिन पार्लर में जाकर तैयार हो जाना , जिससे सब लोगों की निगाह तुम पर ही टिक जाये और लोग कहें कि जय की बीबी तो वास्तव में किसी हिरोइन से कम नहीं है …’स्नेहा मैं तो तुम्हें बताना ही भूल गया था , उसी दिन रामदीन की बेटी की भी शादी है … वहां तो जाना ही पड़ेगा ….’

‘रहने दीजिये … मुझे कहीं नहीं जाना है  … आपको जहाँ  भी  जाना है वहाँ अकेले ही  चले जाइयेगा …’

‘बेमतलब के लिये भाव दिखा कर नाराज हो रही हो …. ‘रामदीन गरीब चपरासी है , उसके यहाँ हम लोग जायेंगें तो उसकी इज्जत बढ जायेगी ….’

‘तो वहां तो आप साहब बन कर जायेंगें तो कुछ अच्छा देना होगा …’ वह व्यंग से बोली ,’ वहां भी 5100 दे दीजियेगा ‘…….’कब से एक साड़ी खरीदने के लिये आपसे कह रही हूं , लेकिन आपके पास तो कभी पैसे ही नहीं होते ….’ इस तरह से उड़ाने के लिये खूब है …. ‘

‘नाराज मत हो … कोई गिफ्ट  तुम्हारे पास रखा हो तो दे दो …. ‘

‘जो मर्जी आये वह दीजिये … ‘

‘अरे सुनो तो , तुम्हारे पास वह साड़ी रखी होगी , जो अभी भाभी ने दी थी ‘….’, वह तुम्हें बिल्कुल पसंद नहीं आई थी …. तुम कह रही थीं कि यह चमक दमक वाली साड़ी मैं भला कहां पहनूंगीं …उसे ही पैक कर लेना’  

यद्यपि कि साड़ी स्नेहा को पसंद नहीं थी , फिर भी न जाने क्यों देते समय में दिल कसक रहा था लेकिन अब तो वह अपने ही जाल में फंस गई थी …. साड़ी इतनी भी बुरी नहीं थी …

वह बहुत देर तक भुनभुनाती रहीं और जय से नाराज भी रही थी ….

जल्दी ही वह दिन भी आ गया ….उस दिन स्नेहा पार्लर से तैयार होकर आई थी , वह सुंदर तो बहुत लग रही थी लेकिन उसके मन में पैसे खर्च हो जाने का बड़ा मलाल था ….

दोनों पति पत्नी सज धज कर बड़े उत्साह के साथ बॉस के बेटे के रिसेप्शन में गये ….. रास्ते में जय बोले ,’ ऑफिस में सब लोग कह रहे थे कि शादी तो बाहर  कर के आये हैं … ‘यहां के लोगों के लिये यह रिसेप्शन की पार्टी रखी गई है …. ‘

‘जब शादी बाहर से करके आये हैं तो यहां पर क्यों फिजूल के लिये पार्टी रखी है … स्नेहा ने स्वयं ही प्रश्न किया   , और स्वयं ही उत्तर भी दे दिया … ‘सब लोग लिफाफे और गिफ्ट देंगें , वह नहीं मारे जायेंगें ….’

‘स्नेहा , तुम भी जाने क्या क्या सोचती रहती हो … ‘

‘वह करोड़पति आदमी, उनके लिये  भला  इन लिफाफों का क्या मतलब …. ‘

‘सब लोग ‘डेस्टिनेशन मैरिज’ कह रहे थे  ….’

‘इसका क्या मतलब …. ओफ्फोह , तुम तो बस किचेन तक ही अपना दिमाग रखो …. ‘डेस्टिनेशन में एक खास जगह निश्चित करके लड़के वाले और लड़की वाले दोनों वहीं पहुंच जाते हैं … बड़े होटल बुक कर लिये जाते हैं उसी में सब लोग रहकर  सारे फंक्शन एन्जॉव्य करते हैं … ‘

‘जय,  इसमें तो बहुत खर्च होता होगा … ‘

‘तुम्हारी घड़ी की सुई खर्चे पर क्यों अटकी हुई है …..वहाँ  रुपया पानी की  तरह बहाया जाता है ….’

वह मन ही मन सोचने लगी कि उसकी शादी भी तो डेस्टिनेशन  वाली थी … पापा का इतना मन था कि घर के आंगन में बिटिया के फेरे हों और अपनी देहरी से वह उसे विदा करना चाहते थे लेकिन जय के पापा के सामने उनकी एक न चली थी और मन मार कर उन्हें लखनऊ आकर शादी करनी पड़ी थी …..

‘कहां खोई हुई हो … गाडी से उतरना नहीं है क्या …. ‘

दोनों मैरिजहॉल की साज सज्जा देख कर आश्चर्य चकित से हो रहे थे …. लाखों की तादाद में रंगबिरंगी बिजली के बल्बों की सजावट से पूरा पंडाल  जगमगा रहा था . बच्चों के लिये तरह तरह के झूले लगे थे . एक तरफ कृष्ण राधा का स्वरूप बने दो बच्चे साक्षात मूर्ति के रूप में बिना हिले डुले…..  खड़े थे तो दूसरे कोने में एक बच्चा भगवान शिव के स्वरूप में सज कर बर्फ पर खड़ा था …. उन दोनों को बच्चों का इस तरह से शोषण देख अच्छा नहीं लगा था …वहां की चकाचौंध देख स्नेहा और जय दोनों का दम सा घुटने लगा था …. चारों तरफ गाढे मेकअप की पर्त लगाये हुये भारी जेवरों से लंदी फंदी एक से एक फैशनेबिल महिलाओं की भीड़ में वह स्वयं को उपेक्षित  या मिसफिट पा रही थी ….

मुश्किलों से ढूढने पर मि.गुप्ता दिखाई पड़े थे …. मंहगे सूट के आवरण में सजे हुये ,  वह लोगों से घिरे हुये बधाई ले रहे थे … वह दोनो 10 -15 मिनट तक वहां खड़े होकर उनके अपनी ओर मुखातिब होने का    इंतजार करते रहे थे परंतु वह धनाढ्य वर्ग के  चमचमाते सूट बूट वाले लोगों को तवज्जोह देना ज्यादा जरूरी समझ रहे थे …

स्वाभाविक भी था… वह तो उनकी कंपनी का एक अदना सा कर्मचारी भर ही तो था …. उसकी भला क्या औकात …

आखिर जय आगे बढ कर बोला , ‘सर , बहुत बहुत बधाई

‘थैंक्यू …’

‘सर सजावट बहुत सुंदर है … सारे इंतजाम बहुत हाई लेवल के हैं …. ‘
थैंक्यू कह कर वह दूसरे की ओर मुखातिब हों , उससे पहले ही जय ने कहा ,’ सर ये मेरी पत्नी स्नेहा …. ‘

स्नेहा ने’ सर नमस्कार कहने के  साथ ही पर्स से लिफाफा निकाला और उनकी तरफ बढाते हुये कहा , ‘सर ये शगुन  का लिफाफा ‘….

‘मुझे लगता है कि आप लोगों ने कार्ड ठीक से नहीं पढा है ….उसमें साफ साफ लिखा है , नो गिफ्ट …. नो शगुन ….ओनली  ब्लेसिंग ….. ब्लेसिंग ….’

जय और स्नेहा का चेहरा उतर गया था , दोनों ही मायूस हो उठे थे .. कार्ड देख कर वह दोनों  इतने खुश हो गये कि कार्ड को ठीक से पढा भी नहीं…

स्नेहा उदास स्वर में जय से बोली , ऐसा भी होता है क्या ?  शगुन का लिफाफा भी नहीं लिया …

वह स्वतः ही बोली , ‘ये बड़े लोगों  चोचले है कि हमें आपसे कुछ नहीं चाहिये ….’

वह दोनों खाने की तरफ  आये तो हर स्टॉल इतना लंबा चौड़ा था कि वह लोग समझ ही नहीं पा रहे थे कि कहां से शुरू करें  … लेकिन मन में यह बुरा लग रहा था कि किसी ने न पानी के लिये पूछा न …. ना  ही खाने को कहा …. ये किस तरह का मॉडर्न कल्चर है ….

जय ऒर स्नेहा का मूड उखड़ गया था …

उन दोनों ने बेमन से थोड़ा बहुत खा लिया  और बाहर निकल आये थे .

स्नेहा अपने पर्स में रखे 5000 रुपये को लेकर सपने बुन रही थी कि अब ये रुपये वह जय को कतई नहीं देगी … वह अपने लिये साड़ी लेकर आयेगी …उस दिन  मॉल में वह वाली साड़ी उसे बहुत पसंद आई थी लेकिन जय ने दाम देखते ही बिल्कुल से मना कर दिया था …. कंजूस कहीं का ……. यहां देखो कैसे दरियादिली दिखा रहे हैं ….

गाड़ी में बैठते ही जय बोले , ‘स्नेहा अब आधे घंटे के लिये रामदीन के घर चलना होगा …’

‘क्यों , मेरा मन तो यहीं आकर भर गया … अब दूसरी जगह जाने की हिम्मत नहीं बची है … साढे नौ बज चुके हैं ….घर में बच्चे अकेले हैं और हम लोगों का इंतजार कर रहे होंगें …. ‘

‘मैंने तुमसे घर पर ही कह दिया था कि दोनों जगह जाना है … यदि नहीं जाना था, तो घर पर ही कह देतीं …. ‘ 

स्नेहा का मूड वैसे ही खराब था , इस रईसों की शादी के लिये उस  अपनी पॉकेट से पूरे  दो हजार खर्च किये थे …. फेशियल , बालों की सेटिंग , मेकअप , साड़ी वगैरह सब करवाया , लेकिन यहां तो जैसे कोई किसी को पहचानता ही नहीं … सब अपनी अपनी दुनिया में मस्त और व्यस्त …. किसी ने भूल कर उन लोगों की तरफ नजर उठा कर भी नहीं देखा था …. किसी ने एक ग्लास पानी के लिये भी नहीं पूछा …. खाना तो बहुत दूर की बात है … करोड़ो की शादी कर रहे , लेकिन शिष्टाचार के नाम पर जीरो …..

स्नेहा रामदीन के यहां बिल्कुल भी जाने को तैयार नहीं थी परंतु पति के आगे उसकी एक न चली …. वह मुंह फुला कर गाड़ी में बैठ गई थी …. आखिर शगुन  भी तो देना ही था ….

 शगुन के लिफाफे के रुपये के लिये पति पत्नी में कई बार बहस हुई थी क्यों कि महीने का आखिर था और 5000 रुपये देना  उसके लिये पूरी तरह फिजूलखर्ची  भी थी  .. खैर अब तो रुपये उसके पर्स में थे और वह उन रुपयों को  अपनी  संपत्ति मान चुकी थी … इसलिये  वह मन ही मन खुश भी हो रही थी ….

जय का कहना था कि रामदीन की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है , इसलिये उसकी बेटी की शादी में  हम लोगों की दी हुई साड़ी  और कुछ रुपये देंगें तो उसके काम आयेगें….लेकिन  स्नेहा की नाराजगी के कारण केवल साड़ी देना तय हुआ था …

रामदीन का घर ज्यादा दूर नहीं था …वह दोनों जल्दी  ही पहुंच गये ….. उसका घर बहुत पुराना सा था , बारात अभी नहीं आई थी  … सड़क पर शामियाना लगा हुआ था वहीं पर जयमाल के लिये छोटा सा स्टेज बना हुआ था और दूसरे किनारे पर खाने पीने की व्यवस्था की गई थी …स्नेहा का मुंह बन  गया था …उसे लग रहा था कि आसमान से गिरे और खजूर में अटके …कहां तो इतनी लक्जरी वाली शादी  और कहां सड़क पर शामियाने वाली शादी … उसने आंखे तरेरते हुये प्रश्नवाचक नजरों से जय की ओर देखा ….लेकिन जय ने उसकी ओर देखा भी नहीं था ….. तभी कुछ  आवाज उसके कानों में पड़ी… ‘साहब आये हैं  ‘…. एक बुजुर्ग सा व्यक्ति , शायद रामदीन थे तेजी से आये , और जय की ओर देखा , उसकी आंखों  में खुशी के आंसू छलछला उठे थे ,’ साहब मैं तो आज धन्य हो गया …. आज मुझे तो जरा भी उम्मीद नहीं थी कि आप आइयेगा ….क्यों कि आज ही तो बड़े साहब के बेटे की शादी का रिसेप्शन था …. मैं सोच रहा था  कि मुझ गरीब के घर भला कौन आयेगा ….. जय ने बुजुर्ग के दोनों हाथों को अपने हाथों में लेकर कहा , ‘रामदीन जी , आप ऐसा क्यों सोचते हैं …आपकी   बेटी   मेरी बेटी की तरह है और उसकी शादी में आपने बुलाया तो भला मैं क्यों  नहीं आऊंगा …. ‘

स्नेहा जय के इस रूप को पहली बार देख रही थी .

सब तरफ लोग उन दोनों के स्वागत् में उठ खड़े हुये थे…. रामदीन ने अपने घरवालों से उन दोनों का परिचय करवाया .  रिश्तेदार उन दोनों को घेर कर बैठ गये थे . साथ में  घरवालों में जैसे होड़ लग गई … कोई कोल्ड-ड्रिंक  की बोतल ला रहा था ,  तो  कोई ,’सर ये टिक्की खाइये …. मैं खूब करारी सिकवा कर लाया हूं ‘…. ‘मेममाहब ये आइसक्रीम चख कर देखिये ‘…’मेमसाहब पहले टिक्की खायेंगी ….’ दो बच्चे आपस में झगड़ रहे थे …  वह क्या कहे ….  इतना मान सम्मान पाकर वह निशब्द हो गई थी ….

    वहां साधारण सी लाल पीली चमकीली साड़ियों में भर भर हाथ चूडियों और मांग मे सिंदूर से सजे माथे के स्वाभाविक सौंदर्य के सामने स्नेहा को पार्लर का सजा धजा रूप उन लोगों के सामने स्वयं को कमतर लग रहा था …जब कि उनके चेहरे की खुशी और उनकी फुसफुसाहट से मेमसाहब विश्वसुंदरी प्रतीत हो रहीं थी….

‘ अरे साहब के लिये बंद वाली पानी की बोतल वाला पानी लाना …….’

जय और स्नेहा  उन लोगों का प्यार ,  सम्मान और आत्मीयता पाकर  अभिभूत हो उठी थे…..

तभी रामदीन की पत्नी आई और स्नेहा के सिर पर हाथ फेर कर आशीर्वाद देते हुये कहा , ‘बिटिया , बच्चों को नहीं लाई , अभी  बारात आने में देर है ….’

स्नेहा ,उनका आत्मीय स्वर सुनकर सोच नहीं पा रही थी कि वह संबोधन  में  क्या कहे ? उसके मुंह से स्वतः ही निकल पड़ा था ,’ अम्मा जी बच्चों का टेस्ट है , इसलिये उन्हें नहीं लाई ..’

रामदीन ने पत्नी को इशारा कर दिया  … उन दोनॉं के लिये बारातियों वाला खाना दो थालियों में लग कर आ गया ….गर्मागरम कचौड़ी , कद्दू की सब्जी , बूंदी का रायता , , छोला , कोफ्ता , दही बड़ा ऒर मिठाई में रसगुल्ला … ना ना करते  दोनों ने इतना खा लिया था कि पेट में जरा भी जगह नहीं बची थी . खाने से तो पेट भरा ही था लेकिन रामदीन और उनके परिवार से जो आत्मीयता और अपनत्व मिला था , उस स्नेह को पाकर अपना मायका और अपनी मां  याद आ रही थी …. उसकी मां और दादी भी तो इसी तरह से उसके सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया करती थीं और इन लोगों की तरह ही पूरा का पूरा परिवार जय और उनके स्वागत् में जुट जाता  है .

 वह खाना खाकर उठने को हुई तभी अम्मा जी एक मिठाई का डब्बा लेकर आईं और संकुचित होकर अपने बेटे से बोलीं , ‘साहब की गाड़ी में रख दो …’

‘इसमें क्या है अम्मा जी ? ‘

‘बिटिया , बच्चे नहीं आये हैं , उन लोगों के लिये थोड़ा सा खाना रख दिया है , एकदम गरम  गरम रखवाया है , घर पहुंचते ही खिला देना ……’

अब तो बरबस  स्नेहा की   आंखों में आंसू झिलमिला उठे थे , ‘ये तो सच में मेरी मां जैसा ममत्व अपनी झोली से उन पर बरसा रही हैं  ….’

जय स्नेहा की ओर ही देख रहे थे …. स्नेहा ने अपने पर्स  के अंदर से   बॉस  वाला लिफाफा निकाला और साड़ी के गिफ्ट पैकेट के ऊपर रख कर रामदीन की बेटी संजना के हाथ पर रख दिया ….

‘अरे बिटिया , जब साड़ी दे रही हो तो लिफाफे  का क्या काम …..’

‘अम्मा जी ये तो शगुन का लिफाफा  संजना के लिये है …..आखिर वह मॆरी छोटी बहन हुई कि नहीं …..’

जय हैरान परेशान स्नेहा को एकटक निहार रहा था … इसी साड़ी और लिफाफे के 5100 रु  की वजह से स्नेहा के साथ उसकी  कितनी बार बहस हुई थी  ……

स्नेहा अपनी आंखों के  कोर पोछती हुई गुमसुम गाड़ी में  बैठ गई थी ………

जय कनखियों से स्नेहा को देख कर मन ही मन मुस्कुरा उठा …

पद्मा अग्रवाल

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