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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन के प्रेरक प्रसंग

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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती के अवसर पर उनके जीवन के कुछ प्रेरक प्रसंगों पर प्रकाश डाल रही हूँ . उन्होंने पूरे विश्व को सत्य और  अहिंसा का पाठ पढाया . 

यद्यपि कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी आज हमारे बीच नहीं हैं परंतु  उनके जीवन के कुछ प्रेरणादायी प्रसंग बहुत ही रोचक और शिक्षाप्रद हैं… आइये यहाँ पर हम गाँधी जी के जीवन से जुड़े कुछ प्रसंगों को जानें ….

 1-       एक बार एक मारवाड़ी सज्जन गाँधी जी से मिलने के लिये आये . उन्होंने अपने सिर पर बड़ी सी पगड़ी बाँध रखी थी . वे गाँधी जी से बोले ,” आपके नाम पर तो सब लोग गाँधी टोपी पहन रहे हैं और आपका सिर नंगा है “

“ भला ऐसा क्यों.?”

हाजिर जवाब गाँधी जी ने हँसकर जवाब दिया , “20 आदमियों की टोपी का कपड़ा तो आपने अपने सिर पर  बाँध रखा है , तब 19 आदमी टोपी कहाँ से पहनेगा ? “

“उन्हीं 19 में से एक मैं हूँ . “

गाँधी जी का जवाब सुनकर मारवाड़ी सज्जन ने अपना  सिर शर्म से झुका लिया .

2-      महात्मा गाँधी सन् 1921 में खंडवा गये . वह लोगों को स्वदेशी का संदेश अर्थात अपने देश में बनी वस्तुओं का प्रयोग और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने को कह रहे थे . वहाँ पर ही चमकीले कपड़े पहने हुये कुछ बालिकाओं ने स्वागत गीत गाया . 

उसके पश्चात् वहाँ उपस्थित स्थानीय नेताओं ने गाँधी जी को भरोसा दिलाया कि वे हर तरह से स्वदेशी वस्तुओं का प्रचार करेंगें . इस पर तुरंत गाँधी जी ने उन लोगों से कहा , “मुझे अब भी सिर्फ भरोसा ही दिलाया जा रहा है, जब कि गीत गाने वाली बालिकाओं ने गोटे किनारी वाले विदेशी कपड़े पहन कर मेरा स्वागत् गीत गाकर स्वागत् किया . “

“मुझे तो स्वदेशी  खादी के प्रचार के  बारे आप सबका दृढ निश्चय शपथ के रूप में चाहिये .”  

3-     यह सन्1929 की बात है गाँधी जी भोपाल गये . वहाँ की जनसभा में उन्होंने समझाया ,” मैं जब कहता हूँ कि रामराज आना चाहिये तो इसका मतलब क्या है ?”

“रामराज का मतलब हिंदूराज नहीं है . रामराज से मेरा मतलब है ईश्वर का राज … मेरे लिये तो सत्य सत्यकार्य ही ईश्वर है .” 

प्राचीन रामराज का आदर्श प्रजातंत्र के आदर्शों से बहुत कुछ मिलता जुलता है और कहा गया है कि रामराज में दरिद्र  व्यक्ति भी कम खर्च में  और थोड़े समय में न्याय प्राप्त कर सकता था . यहाँ तक भी कहा गया है कि  एक कुत्ता भी न्याय प्राप्त कर सकता था . “

4-     यह घटना 25 नवंबर 1933 की है , जब गाँधी जी रायपुर से विलासपुर जा रहे थे . मार्ग में जगह -जगह अनेक गाँवों में उनका स्वागत हुआ , परंतु एक जगह लगभग 80 साल की एक दलित बुढिया सड़क के बीच में खड़ी हो गई और रोने लगी … उसके हाथों में फूल की माला थी .उसको देखकर गाँधी जी ने कार रुकवाई फिर लोगों ने बुढिया से पूछा , “वह यहाँ क्यों खड़ी हुई है ?”

 बुढिया बोली , “मैं मरने से पहले गाँधी जी के चरणों को धोकर यह फूल माला चढाना चाहती हूँ . तभी मुझे मुक्ति मिलेगी.”

गाँधी जी ने हँस कर कहा कि तुम मुझे एक रुपया दो तो मैं तुमसे अपने पैर धुलवाऊँगा  . गरीब बुढिया के पास भला रुपया कहाँ था… फिर भी वह बोली ,” अच्छा मैं घर जाकर रुपया लेकर आती हूँ ,” शायद घर में कहीं मिल जाये … परंतु गाँधी जी तो रुकने वाले नहीं थे , बुढिया निराश हो गई . उसकी पीड़ा के आगे गाँधी जी को रुकना पड़ा और उनको मजबूरन बुढिया से पैर धुलवाने पड़े . बुढिया ने श्रद्धा पूर्वक गाँधी जी के पाँव धोये और फूल माला चढाई . उस समय उसके चेहरे से ऐसा लग रहा था जैसे उसे अमूल्य निधि मिल गई हो .

5-  फिर गाँधी जी विलासपुर पहुँचे . वहाँ उनके लिये एक चबूतरा बनाया गया था , जिस पर बैठ कर उन्होंने जनसभा को संबोधित किया . जब सभा समाप्त हुई और गाँधी जी चले गये तो लोग उस चबूतरे की ईंट , मिट्टी -पत्थर सभी कुछ उठा ले गये . चबूतरे का नामोनिशान मिट  गया था . उस चबूतरे का एक – एक कण लोगों के लिये पूज्य और पवित्र बन गया था.

6-   गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका के फिनिक्स आश्रम में रहते थे . वहाँ पर उनके साथी राव जी भाई मणिभाई पटेल ने कहा , “बापू जी डरबन में बहुत घूमा , लोगों का कहना है गाँधी भाई व्यर्थ ही गोरों से झगड़ा मोल ले रहे हैं,  वे लोग हम लोगों को और ज्यादा दुःख देंगें . हम सब यदि जरा मूँछे नीची कर लें तो क्या हर्ज है . और  यहाँ हम लोग पैसा कमाने आए हैं . यहाँ बर्बाद होने के लिए थोड़े ही आये हैं . “ आपको मालूम है कि कितने लोग आपके साथ हैं ?

गाँधी जी हँस कर बोले ,” मैं तो रात दिन हिसाब लगाता हूँ कि हमारे साथ कितने लोग हैं ““ तुम गिन कर बताओ कि अपने साथ कितने लोग हैं”  तो वह  गिनते हुये बोले , “  हमारे साथ 40 ऐसे योद्धा हैं जो अंत तक हम लोगों के साथ जूझेंगें …ये  लोग जीकर भी जीतेगें और मर कर भी जीतेंगें . “

“तुम देख लेना ये 40 योद्धा एक दिन 40,000 बन जायेंगें .”” और ये समझ लो कि  यदि 40 भी न हों तो मैं अकेले ही गोखले के अपमान के विरोध में गोरों की दरवाजा  खटखटाता रहूँगा” 

“प्रश्न तो यह है… कि गोखले का अपमान हुआ कैसे ?  “ यह मैं   किसी तरह से भी सहन नहीं कर सकता …

दक्षिण अफ्रीका में एक मुसलमान बटलर गाँधी जी से बोला  ,” यदि मुझे किसी तरह अँग्रेजी आ जाये तो मेरी तनख्वाह बढ जायेगी . और मेरा और बच्चों का  गुजर  बसर अच्छी तरह से होने  लगेगा  “. गाँधी जी बोले , “मैं  तुम्हें अँग्रेजी पढाऊँगा .” बटलर उन्हें आश्चर्य से देखने लगा “  ये विलायती ठाठ बाट वाला बैरिस्टर उसे भला क्यों और किसलिये     अँग्रेजी पढायेगा ?” “लेकिन मैं  नौकरी से समय निकाल कर जल्दी  कैसे आ पाऊँगा ?”

“तुम इसकी फिक्र मत करो , मैं तुम्हारे घर आकर पढा दिया करूँगा “. गाँधी जी अपने वादे के पक्के थे .  वे रोज 4 मील पैदल जाते और बटलर को अँग्रेजी पढ़कर 4 मील ही पैदल चल कर आया करते . ये क्रम 8 महीने तक लगातार  चलता रहा . 

एक बार कस्तूरबा जी बीमार हुईं , गाँधी जी ने दाल और नमक छोड़ने की सलाह दी तो बा नाराज होकर  बोलीं,” मैं तो क्या आप भी दाल और नमक नहीं छोड़ सकते ?” गाँधी जी बोले , “मैं आज ही एक वर्ष के लिये दाल और नमक का त्याग करता हूँ” .

 बा बहुत पछताईं और बोलीं , “ मैं दाल और नमक छोड़ दूँगीं “मैंने व्यर्थ ही ऐसी बात बोल दी  अब आप मुझे माफ करके  अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दें “ परंतु गाँधी जी अपने वचन के पक्के थे और उसी दिन से पूरे वर्ष तक के लिये दाल और नमक दोनों त्याग दिये थे  .

एक बार बिहार में बाजे गाजे के साथ जुलूस निकल रहा था . गाँधी जी जिज्ञासा वश उसको देखने के लिये जुलूस के साथ हो गये . उन्होंने देखा एक मोटे तगड़े  बकरे को सबसे आगे माथे पर तिलक लगाये हुए और माला पहने देखा तो समझ गये कि ये लोग बकरे की बलि देने के लिये लेकर जा रहे हैं .भीड़ में लोग गाँधी जी को नहीं पहचान पाये थे . जब गाँधी जी ने पूछा, “  आप लोग बकरे की बलि देकर देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं , तो मनुष्य तो बकरे से श्रेष्ठ है यदि हम मनुष्य का भोग देवी को चढायें तो देवी  ज्यादा प्रसन्न होंगीं .” सब लोग अपनी बगलें झांकने लगे तो उन्होंने कहा ,  “यदि आप मैं से कोई अपनी बलि देने को तैयार नहीं है तो मैं तैयार हूँ .”

 वहाँ सब लोग हक्के बक्के होकर एक दूसरे का मुँह देखने लगे .गाँधी जी को पहचान कर उन सबकी बोलती ही बंद हो गई थी . उन लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहें …. गाँधी जी बोले ,” गूँगे और निर्दोष प्राणी के रक्त से देवी प्रसन्न नहीं होतीं . यदि रक्त से ही प्रसन्न होना सत्य है तो मनुष्य का रक्त अधिक मूल्यवान है वही अर्पण करना चाहिये .”

“मैं कहता हूँ कि बलि चढ़ाना पाप है अधर्म है और यह मात्र अंधविश्वास है .”प्रतिवर्ष  2 अक्टूबर को उनका जन्मदिन भारत में गाँधी  जयंती  के रूप में मनाया जाता है और पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है .

Shared by : पद्मा अग्रवाल

padmaagrawal33@gmail.com

                 

                        

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