क्या कहते हैं क्या है नारी
ना समझो इसको बेचारी
प्रेम की प्रतिमा इसको कहते
संघर्षों से कभी ना हारे
त्याग ,समर्पण और सेवा,
इसके आंचल में रहता है।
पलको में जिसके नीर भरा, द्रवित हृदय भी रहता है।
नव पीढ़ी का निर्माण करें, पीड़ा को भी सुख कहती है।
सृष्टि का रूप है यह नारी,
जो सिसक सिसक कर रहती है ।
कभी सीता बनकर वनवासी ,अपना जीवन दे जाती है।
कभी सावित्री का रूप धरा, यमराज को भी हर लाती है ।
नारी नर का सम्मान है, नारी नर की पहचान है,
सृष्टि के रचयिता है नारी,
जिस में बसते भगवान है ।
क्या कहते हैं क्या है नारी,
ना समझो इसको बेचारी ।
प्रेम की प्रतिमा जिसको ,कहते संघर्षों से कभी न हारी।
उपमा शर्मा प्रभारी प्रधानाध्यापिका उच्च प्राथमिक विद्यालय लिलौन शामली ।