अब हम पचपन पार हो गये हैं
इसलिये चिंतित और परेशान है
माथे पर लकीरें बन गईं हैं
मन ही मन परेशान से रहते हैं
लेकिन चेहरे पर मुखौटा
लगा कर मुस्कुरा रहे हैं
बच्चों के कैरियर की चिंता
उनकी नौकरी की चिंता
नौकरी है तो लोन की चिंता
ई. एम. आई .की गाड़ी की …
फ्लैट की , बाँस को खुश करने की
पत्नी की फरमाइशों की
बच्चों के ऊँचे ख्वाबों
को पूरा करने के लिये
हम सब परेशान हैं
आँखों की चमक अब
मद्धिम पड़ने लगी है
हर साल चश्मे का
नंबर बढ जाता है
बालों में चाँदनी छिटक पड़ी है
उनको छिपाने के लिये कलर लगाना पड़ता है
हेल्थ टेस्ट की भी
डेट फिक्स करनी पड़ती है
पहले प्रेम पत्र लिखते थे
अब बीमा फॉर्म भरते हैं
पहले य़ूँ ही खिलखलाया करते थे
अब जबर्दस्ती हँसने के लाफ्टर क्लब
जाने की जरूरत महसूस होती है
पेट बाहर निकल रहा है
इसलिये सेहत के लिये
जिम जरूरी हो गया है
कुछ भी खाने के पहले
दस बार सोचना पड़ता है
रसगुल्ला और समोसा
खाते ही मन में कैलरी
काउंट शुरू हो जाता है
और फिर जिम जाकर
अधिक पसीना बहाना पड़ता है
परंतु हम परेशान होकर भी खुश हैं
क्योंकि दिन रात की
भागमभाग में इतने व्यस्त हैं
कि सोचने के लिये
फुर्सत निकालनी पड़ती है
लेकिन सच तो यह है
कि हम थोड़ा थोड़ा परेशान हैं
पद्मा अग्रवाल
