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नारी कभी ना हारी 

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सिमरन 22 वर्ष की थी , गोल चेहरे पर बड़ी बड़ी काली कजरारी आँखों को  जैसे प्रकृति ने स्वयं  ही काजल से सँवार दिया हो , संगमरमर सा श्वेत दूधिया रंग , छरहरी पतली सी काया , लंबे लंबे काले बाल , जिसे वह चोटी में बाँध कर रखती . जैसे ही उसने बी. ए. पास किया था ,पापा ने उसके लिये लड़का ढूँढना शुरू कर दिया था . उसने पास के प्ले स्कूल में नौकरी ज्वॉयन कर ली थी  क्योंकि घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी . उसी समय छोटे भाई अजित के इंजीनियरिंग में एडमिशन  करवाने के लिये  पापा ने  पैसे अपने प्रॉविडेंट फंड से निकाल कर उसका एडमिशन करवा दिया था . उनके पास दहेज देने के लिये तो पैसे थे नहीं … इसलिये उसकी शादी भी इतनी  आसान तो थी नहीं …. माँ भी बीमार सी रहतीं इसलिये उसके ऊपर घर बाहर दोनों का काम रहता फिर भी वह अपनी दुनिया में खुश रहती .
चिल्ड्रेन्स डे के फंक्शन में मिसेज लता शर्मा , प्रिंसिपल मैडम के साथ  आईं थीं . उन्होंने उसको स्कूल में सबसे अच्छी तरह से बात करते देखा और नन्हें बच्चों को  प्यार से संभालते देखा तो वह उससे बहुत प्रभावित हो गईं थीं . कहा जाये तो  उसकी सुंदरता पर रीझ उठीं थीं .उन्होंने अपनी फ्रेंड स्कूल की मैनेजर आरती मैम से उसके बारे में जानकारी कर ली थी . बस फिर क्या उन्होंने अपने बेटे के लिये रिश्ता भेज दिया . 

पापा की  तो खुशी का ठिकाना ही नहीं था , माँ भी खुश थीं , कि बिटिया भाग्यशाली है , घर बैठे रिश्ता होने जा रहा है .
अभिनव गेंहुए रंग के 6फीट लंबे आकर्षक युवक थे . शहर में रेडीमेड गार्मेंट्स का शोरूम था .उन लोगों का  अच्छा  खाता पीता परिवार था .एक महीने के अंदर ही  चट मंगनी पट ब्याह हो संपन्न हो गया था . सिमरन  अनेक रंगबिरंगे सपनों को अपने मन में सजाये हुए ससुराल की ड्योढी में कदम रखा था . जल्दी ही उसे अपनी हैसियत का पता चल गया था . अभिनव और उनकी मां लता जी दोनों ही उसके हर काम में नुक्स निकालते रहते . उसने नौकरी की इजाजत माँगी तो उन लोगों ने साफ मना कर दिया था . वह भी हर समय उन लोगों को खुश करने की कोशिश करती  लेकिन उनकी रोबदार आवाज से डर कर वह काँप उठती और सही  अच्छा करने के प्रयास में सब कुछ गड़बड़ हो जाता . 

अभिनव देर रात में शराब के नशे में आते और उसके शरीर से अपनी इच्छा पूरी करके सो जाया करते . शराब की दुर्गंध से वह परेशान हो उठती , जब भी कभी वह उनसे शराब पीने को मना करती तो कहते पी कर देखो , जिंदगी का मजा लेकर देखो . उसे आश्चर्य तब लगता जब माँ बेटा दोनों साथ – साथ जाम टकराते . 

वह प्रेग्नेंट हो गई थी , उसकी तबियत ढीली रहती , इसलिये वह  अपने मायके जाना चाहती थी क्योंकि यहाँ दिन भर काम करने के बाद थका हुआ तन पति से रहम की भीख माँगता लेकिन नशे में चूर पति को तो पत्नी के शरीर की से अपनी भूख मिटाना रहता …इसलिये उसे साथ में लेकर जाता  और साथ में लौटा कर ले आता . किसी तरह से समय पूरा हुआ और प्यारी सी बेटी का जन्म हुआ लेकिन बेटी का नाम सुनते ही घर में मीतम पसर गया था . अभिनव तो बेटी को देखने के लिये हॉस्पिटल  भी नहीं आये थे . 

मम्मी जी का रुख बहुत अच्छा नहीं था लेकिन जब वह रोती तो उसे गोद में उठा लेतीं , धीरे धीरे घर का माहौल सही होने लगा तो उसे तसल्ली हुई थी लेकिन  अभिनव का रुख बेटी के लिये अभी भी वैसा ही था . 

सिया जब 4 साल की हुई तो दुबारा उसको अपने शरीर में नवांकुर की कोंपल फूटने का स्पंदन होने लगा था .वह तो अब दूसरा बच्चा नहीं चाह  रही थी परंतु  अभिनव खुश थे लेकिन उन्होंने उसे वार्निंग दे दी थी कि  इस बार तो बेटा ही होना चाहिये , नहीं तो तुम्हें परिणाम भुगतना होगा . 

 माँ बेटा दोनों के मन में  बेटे  की चाहत थी . इसलिये वह सोच रहा था कि इस बार अवश्य उसकी इच्छा पूरी होगी . समय पूरा होते ही फिर बेटी के पैदा होने की खबर से दोनों ही लोगों पर वज्रपात सा हो गया . 

पति अभिनव ने सिमरन के सामने ऐसी  शर्त रखी जो कि उसके लिये अग्नि परीक्षा जैसी ही थी … तुम्हें यदि इस घर में रहना है तो इस नवजातस बेटी को शहर के किसी भी अनाथालय या पालनागृह में सौंपना होगा या फिर मेरे घर से हमेशा के लिये बाहर निकल  कर यहाँ से हमेशा के  चली जाओ . खुद्दार नारी सिमरन ने 20 दिन की नवजात बेटी और अपनी बड़ी बेटी की उंगली पकड़ कर पति के घर को अलविदा कह दिया .

आधुनिकता के बढते कदम ने रिश्तों की दुनिया को बहुत ही जटिल बना दिया है . रिश्तों से जुड़ी कोई भी धारणा अधिक देर तक नहीं टिक पाती वरन् एक पल में रिश्ते बिखरते देर नहीं लगती .  इसी दुनिया में ऐसे माता पिता  भी हैं जो अपने दत्तक संतानों के लिये अपना सर्वस्व निछावर कर देते हैं और अपने जैविक संततियों को ठुकरा देने वाले जनक भी हैं . 

निया चोपड़ा के पिता निष्ठुर निकले जब उनकी पत्नी दुबारा माँ बनने वाली थी तो उन्होंने अपनी ख्वाहिश जाहिर करते हुये कहा था कि उन्हें तो केवल और केवल बेटा ही चाहिये परंतु क्या  यह  किसी भी स्त्री के हाथ में होता है ….

दूसरी बार बेटी के जन्म की खबर मिलने के बाद वह अस कदर तिलमिला उठे कि हॉस्पिटल तक नहीं आये . सिमरन तो पति की आदत जानती थी क्योंकि वह पहली बेटी के समय भी नहीं  आये थे . सिमरन को लग रहा था कि  अभिनव अभी नाराज हैं लेकिन नवजात बेटी का स्पर्श और आवाज जब उनके कानों में पड़ेगी तो सारा क्रोध पिघल कर बह जायेगा . परंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ … उनकी नफरत तो  निर्ममता की सारी सीमायें पार कर गई थीं . 

उन दिनों वह परिवार कलकत्ता में रहता था . अभिनव ने सिमरन के सामने ऐसी शर्त रखी कि यदि तुम्हें इस घर में रहना है तो तुम्हें बेटी को किसी अनाथालय में सौंपना होगा यदि नहीं स्वीकार है तो तुम्हें इस घर से बाहर जाना होगा . 

सिमरन ने अपने मन में  बिना कुछ भविष्य का  विचार किये  हुये , एक हाथ में  20 दिन की बच्ची तो दूसरे हाथ से दूसरी बेटी की उंगली पकड़ कर घर से बाहर निकल आईं . उस समय वह पति से  केवल यह बोलीं थीं कि देखना एक दिन यही बेटी तुम्हारा सिर गर्व से ऊँचा करेगी … उस दिन तुम पछताओगे … वैसे तो हर एक जिंदगी की दमदार  पटकथा लिखने वाली कुदरत होती है परंतु जीवन के उस दुखद मोड़ पर  उस पल में सिमरन को रचयिता ने ही  ऐसी बात कहने का हौसला दिया था और उसी ने  सिमरन के आगे के सफर के लिये मन में हिम्मत और हौसला के साथ आत्मविश्वास भी  दिया था . 

वह सीधा मुंबई आ गई . उसका फैसला केवल जज्बाती नहीं था वरन् एक खुद्दार माँ का अपने मातृत्वबोध और श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों से प्रेरित निर्णय था . 

परंतु उनकी परिस्थितियाँ इतनी आसान नहीं थीं . बेटियों की भूख मिटाने के उन्हें  तुरंत काम की जरूरत थी . काम तो मिल भी गया था लेकिन एक महीने की बेटी को  5 साल की बच्ची के  हवाले करके वह  नौकरी पर कैसे जाये … क्या गुजर रही होगी उस माँ के ऊपर , यह तो हर  स्त्री स्वयं ही सोच सकती है… लेकिन सिमरन के पास दूसरा कोई चारा भी तो नहीं था . वह दोनों बेटियों को कमरे में अकेले छोड़ कर काम पर जाने लगीं थी . 5 साल की बच्ची को क्या मालूम कि नन्हीं सी बहन भूख से बिलख रही है या फिर किसी दूसरी वजह से लेकिन कहावत है ना कि जिसका कोई नहीं उसका दाता राम … पड़ोस में एक बिहारी महिला रहती थी जिसके पास भी छोटा सा बच्चा था . उसके कान में जब – जब उस मासम के रोने का क्रंदन सुनाई पड़ता , वह आकर उसे अपना दूध पिला जाती .

दर्द में ऐसी साझेदारी की ऐसी मिसालें अक्सर गुमनाम रह जाती हैं या सफलता के बाद लोग ऐसे लोगों को भूल जाया करते हैं परंतु निया चोपड़ा और सिमरन ने इस वक्त के सहारे और एहसान को कभी नहीं भुलाया . 

बड़ी बेटी सिया और  छोटी निया जैसे बच्चे अक्सर  अपनी उम्र से बड़ी  जिंदगी जीते हैं लेकिन बच्चे का दिल मचलना भला कब छोड़ता है … एक दिन निया ने बड़ी सिया से कहा कि , आज मम्मी आयेंगीं तो उनसे साइकिल खरीदने को बोलूँगीं … मेरी क्लास के सभी बच्चे अपनी साइकिल से आया करते हैं . तब सिया ने उसे समझाया था कि यदि तुम माँ से साइकिल के लिये कहोगी तो उन्हें रात की शिफ्ट में भी काम करना पड़ेगा . और वह ऱात में भी उन लोगों के पास नहीं आ पायेंगीं . उस दिन के बाद से निया ने कभी किसी चीज के लिये जिद् और मांग नहीं की थी . 

सिया तो इतनी बड़ी हो चुकी थी कि वह मुँह अँधेरे लोगों के घरों में पेपर बाँटने का काम कर आती ताकि पड़ोसियों को पता भी न चले और निया के ट्यूशन की फीस भी भरी जा सके . निया ने अपने बचपन से ही माँ और बड़ी बहन सिया के त्याग को महसूस किया था . वह शरारती तो थी लेकिन पढने में इतनी तेज थी कि टीचर अक्सर इस उलाहने के साथ उसे छोड़ देते कि यदि तुम टॉपर ना होतीं तो तुम्हें स्कूल से बाहर कर देते . स्कूल की टीचरों की निगाह में निया भविष्य की होनहार डॉक्टर या इंजीनियर बन कर स्कूल का नाम रोशन करने वाली थी लेकिन नियति ने तो उसके भविष्य के लिये कुछ और ही तय कर रखा था . 

वह अपने स्कूल माउंट कार्मेल  की मिस माउंट कार्मेल क्या चुनी गईं , उनकी जिंदगी का टर्निंग प्वायंट बन गया . निया को छोटे मोटे मॉडलिंग के ऑफर आने लगे . सिया ने उन्हें प्रेरित  किया कि वह पूना की स्थानीय सौंदर्य प्रतियोगिताओं में भाग ले … मॉडलिंग से उन्हें पैसे मिलने लगे थे तो निया को इस काम में कुछ कुछ मजा भी आने लगा था . 

एक दिन जब निया अपने घर पर बैठ कर टीवी पर मिस इंडिया कॉन्टेस्ट का फाइनल राउंड देख रही थी तो अचानक ही उसे लगा कि वह क्यों नहीं मिस इंडिया बन सकती …. वह कल्पना जगत में स्वयं को मिस इंडिया की जगह देख रही थी .  उस समय निया की उम्र मात्र 18 वर्ष थी . माँ की इजाजत जरूरी थी . जब उसने अपनी माँ से इस विषय पर चर्चा की तो उन्होंने कह दिया कि तुम जो चाहती हो वह कर सकती हो लेकिन उसके पहले तुम्हें अपना  ग्रेजुएशन पूरा  करना होगा . . निया के पास समय था , वह जानती थी कि मिस इंडिया का खिताब जीतना इतना आसान नहीं है . इसलिये वह उसी दिन से अपनी ग्रेजुएशन की पढाई के साथ – साथ अपने उस सपने को साकार करने की तैयारी में लग गईं . 

जब उनके दोस्तों ने सुना तो उनका उपहास उड़ाया , परंतु धुन के पक्के लोग भला कब किसी की बात पर ध्यान देते हैं . वह तो अपने लक्ष्य को पाने के लिये निरंतर अपने कठिन प्रयास में लगे रहते हैं .

आखिरकार फिर वह समय आया जब सिमरन फिर से कलकत्ता में आईं थी वह भी पूरे 22 वर्षों के बाद … वह भला इस अवसर को कैसे जाने देतीं ?  

मिस इंडिया का फाइनल कलकत्ता में ही होने वाला था  और  उनकी बेटी निया  मिस इंडिया के ताज की प्रबल दावेदार थी , इसी बेटी की वजह से ही उन्हें  कलकत्ता छोड़ना पड़ा था और आज उसी बेटी के  कारण ही  वह फिर से कलकत्ता आईं थीं . 

अंतिम  5 प्रतियोगियों के लिये साझा सवाल था…. यदि आपको ईश्वर से मिलने का अवसर मिले , और उनसे केवल एक प्रश्न पूछना हो तो आपका प्रश्न क्या होगा … पाँचो प्रतियोगियों में पूजा के जवाब ने जूरी को लाजवाब कर दिया था . उनका जवाब था , यदि भगवान् ने अपनी  जगह माँ को बनाया  है  , तो सबके पास माँ क्यों नहीं ?  क्या नहीं होनी चाहिये ? 

बेटी के सिर पर ताज था … माँ की आँखें बरस रहीं थीं … आज उनकी बेटी निया ने उनके शब्दों को सार्थक कर दिया था . 

अभिनव ने जब अखबार में अपनी पत्नी की फोटो पहले पेज पर देखी और समाचार पढा तो उसे पूरी बात समझ आ गई थी लेकिन अब पछताये होत क्या , जब चिड़िया चुंग गई खेत 

सच कहा है नारी कभी ना हारी …. इतनी विषम परिस्थिति में भी  सिमरन ने अपनी बेटी को मिस इंडिया का ताज पहना कर अपने सपने को सच कर लिया था . 

Shared by : पद्मा अग्रवाल

padmaagrawal33@gmail.com

                 

                        

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