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Dil se

मनवा कासे कहे

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ना मात रहीं ना पिता रहे

मन किससे मन की बात कहे

ना वो दौर रहा ना वो ठौर रहा

बस यादों में जज़्बात रहे

जीवन के सारे सपन गये

ना बचपन के उत्पात रहे

सूने से घर के आंगन में

ना रंगों के अनुपात रहे

बारी बारी सब बिछड़ गये

मन में केवल आघात रहे

संसार का सच बस है इतना 

ना प्राण रहे ना गात रहे

जाना बूझा समझा सब कुछ

लेकिन ख़ुद से अज्ञात रहे

कितना कुछ बीता है फिर भी

हम ख़ुश उसके पश्चात रहे

Shared by : नीरजा शुक्ला ‘नीरू

                 

                        

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