निया ऑफिस से निकली स्कूटी स्टार्ट करते ही बादलों की रिमझिम से उसका मन भीग कर बचपन में पहुँच गया था जब बारिश में अपने संगी साथियों के साथ भीगना , झूला झूलना , गीत गाना और डांस करना उसका सबसे प्रिय काम था . उन्हीं यादों में खोया हुआ उसका मन उल्लसित एवं तरंगित हो उठा था . आकाश में सतरंगा इंद्रधनुष देख कर प्रकृति की रचना से आश्चर्य चकित हो उठती . गली में छोटे छोटे बच्चे कागज के टुकड़ों को फाड़ फाड़ कर पानी की धारा में बहा कर उसके पीछे गाते हुये भाग कर खुश हो रहे थे .
काले मेघा पानी दे , काले मेघा पानी दे
पानी दे गुड़ धानी दे , पानी दे गुड़ धानी दे
वह भूल गई थी कि अब वह 50 वर्ष की उम्रदराज महिला है . उसने बच्चों से कागज झपट कर ले लिया और नाव बना कर जब बच्चों को दी तो वह किश्तियाँ तैरा कर ताली बजाने लगे उनकी खुशी देख कर वह स्वयं को भूल कर कागज की किश्ती को तैरा कर प्रसन्नता के अतिरेक से बच्चों की तरह ही ताली बजाने लगी थी. वह स्वतः ही गाने लगी थी….
काले मेघों के घिरते ही
कागज की किश्तियाँ बस्ते में
बन कर रख ली जातीं थीं
बरसाती गढ्ढों के पानी में छप छप
कर मटमैले पानी में भीगना
फिर डर लगना कि
भीगे बालो से घर जाना
हम कितने होते थे बेपरवाह
ना ही माँ की डाँट की फिकर
ना ही बीमार पड़ने का डर
जब भीगे हुय़े कीचड़ में सने
घर आते तो पता होता था
कि डाँट से शुरू होकर
प्यार से बाल पोछने पर खत्म हो जायेगी
मेरे चेहरे की मासूमियत पर
माँ भी मुस्कुरा उठती थी
निया फिर से बचपन को जीकर वह अत्यंत प्रफुल्लित थीं.

पद्मा अग्रवाल
Padmaagrawal33@gmail.com