डॉ. अर्जुन जब से कानपुर देहात के जिला अस्पताल में CMO बन कर आये हैं , उनका सामाजिक दायरा भी बढ गया है . चूंकि वह सरकारी पद पर कार्यरत थे इसलिये वह लोगों से उनके प्रायवेट कार्यक्रमों से अधिकांशतः हाथ जोड़ कर माफी मांग लेते थे लेकिन फिर भी किन्हीं कार्यक्रमों में मना करते करते भी जाना उनके लिये मजबूरी बन जाता है .
ऐसे ही वृद्धाश्रम के वार्षिक समारोह में वह मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित थे , जैसा कि अन्य समारोह में होता है दीप प्रज्जवलित करना , माल्यार्पण , सम्मानपत्र के बाद मुख्य अतिथि के दो शब्द “…बेटे कभी भी मां बाप के ऋण से उऋण नहीं हो सकते इसलिये यह फर्ज बनता है कि वह अपने मां बाप की सेवा करें ….समाज के लिये वह बेटे एक बदनुमा दाग हैं जो अपने मां बाप को वृद्धाश्रम में छोड़ कर खुद ऐश की जिंदगी जीते हैं ….” इन शब्दों को बोलते बोलते वह फफक कर रो पड़े ….. उनकी आंखों से झर झर कर आंसू बह निकले थे …. वहां बैठे लोग उनकी जय जयकार करने लगे थे ….लेकिन उनके कान में तो अपने पिता के स्वर गूंज रहे थे , “बेटवा , तुम्हारे बिना हम लोग यहां कैसे जिंदा रह पायेंगें ‘”
यहां से हजारों मील दूर वह हर पल वृद्धाश्रम में उनकी बाट जोह रहे हैं . उनकी आंखों से अविरल अश्रुधारा प्रवाहित हो रही थी .