एक प्रश्नचिन्ह सा जीवन में
जिसका जवाब न पाती हूँ
मैं सबके बीच में रहती हूँ
फिर भी तन्हा रह जाती हूँ
जीवन के पृष्ठ पलटती हूँ
फिर उनको पढ़ती जाती हूँ
कहना चाहूं जाने क्या क्या
फिर भी कुछ कह ना पाती हूँ
जब अंतस क्रंदन करता है
मैं तब तब कलम उठाती हूँ
पृष्ठों को जब तक रंग ना लूँ
उस क्षण तक चैन ना पाती हूँ
क्या खोया क्या पाया अब तक
सब भूल के बढ़ती जाती हूँ
बस ऐसा ही ये जीवन है
ये सोच के ख़ुश हो जाती हूँ

Shared by : नीरजा शुक्ला ‘नीरू