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खेलत फाग परस्पर मिलि के राधा कुँअर कन्हाई    

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मथुरा – कृष्ण का पावन जन्म स्थान कृष्ण सखी  कालिन्दी के घाटों पर बहती मलयज हवा के सुगन्धित हवा के सुगन्धित झोंके,विश्रामघाट पर विहार करती नौकाओं के मनोहारी दृश्य,नंद गांव,बरसाना,गोकुल,दाऊ जी और वृंदावन हर स्थान पर राधा कृष्ण के हजारों नेह कथानक ,कण कण मे   भक्ति का मनोहारी माधुर्य  ,बृज की सीमा में आते ही इसी भक्ति भावना का कंठ कंठ से रस वर्षण…गोप गोपियों के मुरली बजैया और राधा लाडिली के मीत कृष्ण कन्हाई कुंज सरोवर के रास रचैया  गोविन्द बृजरजमें आनं कद ही  आनंद.                                                                                                                                                                                           

    कृष्ण जन्मभूमि में भगवान  कृष्ण की मनोहारी मूर्ति, राधा कृष्ण की युगल मूर्तियां, फूल ,रंग बिरंगी झिलमिलाती रोशनी,अगर गंध से सुवसित, सज्जित वातावरण,भक्तों की भारी भीड़ –गुलाल की बुरकियां उड़ रहीं हैं .ढोलक मंजीरों पर नृत्य चल रहा है.रसेया अलापे जा रहे हैं–                                                                                            

‘ जमुना किनारे मेरा गांव ,  सांवरे आ जइयो

        राधा रंगीली मेरौ नाम ,बंसी बजाय जइयो

        देखत रहूंगी तेरी बाट, जल्दी  आय  जइयो

        झांकी करेंगी बृज बाल, हंस मुसुकाय जइयो’

वातावरण रस रंग, गुलाल और फूलों की गंध से महमहा रहा है.तरह तरह के वाद्यों पर फागुनी सरगमें तैर रही थीं.  लोकगीतों की गहमागहमी मची हुई है .रंग गुलाल ,टेसू केसर की पिचकारियों केदौर के बाद शाम को फूल डोल.दूर दूर से गायन मंडलियां अपने साजो सामान के साथ आई हैं .नृत्य मंडलियां भी अपने वाद्यो और  साजिन्दों के साथ आई हैं.मंच दुल्हन की तरह सजा हुआ है.रंग बिरंगे फूलों , कलियों लताओं से आच्छादित स्तंभ चंदोवे, फूलों की सुंदर झालरों से सज्जित मंच अत्यंत मनोहारी प्रतीत हो रहा है .हो भी क्यों न  कृष्ण राधा की फूलों की होली है.                                                               

         आज भीड़ इतनी है जैसे पूरी मथुरा नगरी उठ कर यहीं आ गई हो.अपनी अपनी टोलियों वाद्यों के साथ सब व्यस्त हो गये हैं. मृदंग मंजीरे,ढोलक ,हारमोनियम और तबले पर रसियों का रस झर रहा है. बृज का होलिकोत्सव अपने यौवन पर है.इस परंपरागत फाग की गूंज से मधुबन बना हुआ है .उछाह उत्साह,ओठों, आंखों से,कंठों से उमड़ा पड़ रहा है. सभी चमचमाती रंग बिरंगी पोशाकों से सजे हुए हैं,धोती कुर्ता,पटका और पगड़ी साफा कसे रसियों के नशीले तेवर.घाघरा,लंहगा,ओढनी, चोली,कंगूरेदार जंपर,जेवर बाजूबंद कसे ,चूड़ी से भरे हाथों ,घूंघटों में हंसती लजाती बृज वनितायें.नगाड़ों की आवाज के साथ संगीत के  स्वर गूंजने लगते हैं  .  .                                                                                                                       

विमल चंद्र की चांदनी, निर्मल जमुना नीर,मोर मुकुट कुण्डल की झांकी

                               टेर रही  कालिन्दी  तट बंसी,रास रचे गिरधारी,चलो री आली, रितु मतवाली……..                                                                                            

रासलीला आरंभ हो गई है. चमकीली कीमती पोशाकों,आभूषणों से सज्जित श्रंगारित राधा रानी और कृष्ण मुरारी…..रोशनी में कलात्मक मुकुट झिलमिला रहें हैं.रास नृत्य हो रहा है.फूलों की कोमल पंखुड़ियों, सुगंधित पुष्पों की वर्षा हो रही है.ऐसा प्रतीत हो रहा हैकि मानों फूलों की पंखुरियों  का ही फर्श बना हो. अलग अलग पुष्पों की अलग अलग सुगंध……..जैसे इत्र का दरिया  बह रहा है .लोगों का कहना है कि  तीन चार क्विन्टल फूलों, गुलाल और रंगों की मनोहारी     होली होती है . बरस फुलवा मकरंद बरस रहे हैं.  रसिये शहद घोल रहे हैं. बृज की ठेठ सुरीली तान……..कान्हा की टेर सुनकर………..                 “चली कोई उल्टी पटिया पर,चली कोई एक दृग अंजन डार

                                   कान में नथनी झलकेदार,नाक में  करनफूल  सिर हार

                 उल्टे सीधे अंग में गहने लीने डार,उल्टे पहरे कपड़ा लत्ता

उल्टे कर सिंगार,सुन मुरली गोपी मन हारी

               प्रेम मगन वश भई,बदन को होश गंवायो     है                                                                                                                                                                                                                                                                                                                              

मुकुट वाले  तेरो ध्यान लगायो है”                                                                

राजती धोती साटन का हरा कुर्ता सिर पर लाल साफा                                                                          

उड़त गुलाल अबीर रसीले,गोपाल भये लाल,हरे,पीले,’                                                                  

‘ऐसी होरी बिरज मनाई,तन मन भई समाई’

रसियों  की प्रसिद्ध टोलियां  एक से एक बढकर फाग की तानें छेड़ रहे………..

‘मुरली बजाई कृष्ण कन्हाई ,राधा के मन भाई

कुंज गलिन से  दौरी राधा पंहुची जमुना  तट पे

जमुना केतट पे मारी रे नजरिया,ऐसी सांवरिया ने……….

गगरी छीनी बहिया मरोरी. फिर मैं   ऐसी  सरमाई’

       राधा कृष्ण की युगल जोड़ी की बलिहारी है.नृत्य आरती और संगीत से पूजा हो रही है.कलात्मक बंदनवार के नीचे राधा लली और बृज के कुंवर कन्हाई का रास रसवंती शुरू हो गया है…….मंजीरे मृदंग पर मीठी बृज बोली का पद……

‘ कजरा बह गयौ जमना जल में ,कि बिछुआ गिरि गयौ जमना जल में

कैसे होरी  खेलूं   री  मैं या सांवरियां के संग,भर पिचकारी ऐसी मारी   कंचुकी  ह्वै गई तंग…….

नैनन सुरमा,दांतन मिस्सी ,रंग होत बदरंग’

मसक गुलाल मलै मुख ऊपर,किसुन के संग

‘तबला बाजा सारंगी बाजी और बाजै मिरदंग……

कान्हा जी की बांसुरी बाजी राधा जी के संग…….

   गोपियां चुहलबाजी कर कृष्ण को घेर लेती हैं…….

पकरौ री पकरौ या स्याम सुन्दर कूं…….

अपने घर भाज न जाई,छीन लई कान्हा की मुरली…….’

   ग्वाल बालों की मंडली उमंग में आकर जय जयकार के फूलों की वर्षा करने लगते हैं.

‘होरी है भई होरी है,राधा रानी हमारी पे रंग बरसे, किसन पियारे का मन हरसै……’

      सारंगी ,बाजा,नगाड़ा,ढोल, बांसुरी लेकर पूरुषोंलकीटोली गुलाल उड़ाने लगती है

रेशमी ओढनी का लम्बा घूंघट,हाथ भर हरी लाल चूड़ियां,गोटा  की किनारी पोत ,फूल जड़ा लंहगा, कामदार चोली

ओढना पहन झूमझूम कर नृत्य कर उठती हैं,बृज गूजरी. बड़ा ही चमत्कारपूर्णं   पद संचालन  है .सिर पर लोटा,उस पर कलसाऔर सबसे ऊपर कटोरा.ठुमक ठुमक थिरकनों के साथ घुमेरे लग रहे हैं.

रसिये गाते बजाते मंजीरे तान छेड़ते हिलोरे ले रहे हैं.झम झमा झम पायल घुंघरू ,तगड़ी कंगन सब तरंगित….

मोरा नाच रहौ री बृज कुंजन में,दूर दूर से दुनिया आवै हरि चरनन में,नाचै गावै…गोरी हंसै घूंघट अंजन में

रंग़ बिरंगे लंहगे और गोटा दार अंगिया पहने , लंबे घूंघट से अपना सुंदर चेहरे को ढक कर गांव की सुंदरियों का रसिया गायन

‘आज बिरज में  होरी रे  रसिया

होली रे रसिया  बरजोरी रे रसिया 

कहूँ बहुत कहूँ थोरी रे रसिया 

आज बिरज में रसिया

  नटखट कृष्ण  होली  में अपनी ही चलाते हैं . गोपियों का रास्ता रोके खड़े होना उनकी फितरत है ,तभी जी भऱ कर फाग खेलने की उन जैसी उच्छृंखलता कहीं  देखने को नहीं मिलती . उनकी करामाती हरकतों से गोपियाँ समर्पित हो जाती हैं . और अपनी घूँघट काढने की शर्म हया को बरकरार  रखते हुए एक नजर मनमोहन की चितवन को देखने की हसरत जतलाते हुए कहती हैं सच मैं अपने भाई की सौगंध खाकरलकहती हूँ कि मैं तुम्हें देखने से रही हूँ .

भावै तुम्हें सो  करौ सोहि लालन

पांव पड़ौजनि घूँघट टारौ 

वीर की सौं तुम्हें देखि है कैसे 

अबीर तो आँखि बचाय के डारौ

जब कभी होली खेलते हुय़े कान्हा कहीं छिप जाते हैं तब गोपियाँ व्याकुल होकर उन्हें ढूंढतीं हैं. उनके लिये कृष्ण अनमोल रत्न  की तरह हैं, जो लाखों में एक ही होता है . गोपियाँ कृष्ण के मन ही नहीं  अपितु उने सभी अंगों की सहज संवेदनाओं  से परिचित हैं तभीसउनके अंगों के स्पर्श के अनुभव का चित्रण करते हुए कहा है 

अपने प्रभु को ढूंढ लियो 

जैसे लाल अमोलक लाखन में

प्रभु के अंग  की नरमी है जिती के लाल लोचन 

लालन के मुख लाल ही पीरा 

नरमी नहिं ऐसी माखन में 

होली खेलते समय कृष्ण लाल रंग मय हो जाते हैंस जागते हुय़े उनकी आँखें भी लाल हो जाती हैं . नंदलाल लाल रंग से रंगे हैं यहाँ तक कि पीत वस्त्र पीताम्बर सहित मुकुट भी लाल हो गया है ….

लाल ही लाल के लाल ही लोचन 

लालन के मुख लाल ही पीरा 

लाल हुई कटि काछनी लाल को 

लाल के शीश पै लस्त ही चीरा 

गोपियाँ कृष्ण को पकड़ कर सारी पहना देती हैं , उन्हें झुमकी , पाँव में महावर आँखो में अंजन लगा कर गोपिका बना देती हैं … 

छीन पीतांबर कारिया 

पहनाई कसूरमर सुंदर सारी 

आँखन काजर पाँव महावर

साँवरो नैनन खात हहारी 

कृष्ण इस रूप में ग्वाल  सखाओं के साथ हँसी करने में माहिर हैं . 

ऐसो चटक रंग डार् यो  श्याम ने

मेरी चूनर में लग गयो दाग री’

इन सुंदर स्वर लहरियों  के मध्य जब लट्ठमार होली शुरू  हुई तो महिलायें अपनी लाठियों से पुरुषों की पिटाई करने का प्रयास कर रहीं थीं और पुरुष अपनी ढाल पर अपना बचाव कर रहे  थे ।

         लगभग डेढ सौ फीट की ऊंचाई से ब्लोवर से रंग बिरंगे गुलाल की वर्षा ने संपूर्ण  वातावरण को इंद्रधनुषी बना दिया और सभी भक्त गुलाल के रंग कर अपने को धन्य अनुभव कर रहे थे ।दर्शक झूम रहे थे ,नृत्य कर रहे थे ।

घटा नृत्य हो,चरखा नृत्य अथवा मयूर नृत्य सभी  विभिन्न होलियों की झांकी प्रस्तुत। कर रहे थे।

होली खेलौ तो आ जइयौ बरसाने रसिया गायन के मध्य  जब  दो गोपियों ने चरकुला नृत्य  प्रस्तुत  किया तो वातावरण  तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।सूर्यास्त होते होते लट्ठमार जब समाप्त  हुई तो भी  सभी दर्शकों के चेहरे पर अतृप्त भाव  स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था ।

प्रेम और उत्सव की भावना से सराबोर चरम  आनंद की भाव भंगिमा को आँखों में अंग प्रत्यंग में व्यक्त किये पीढी दर पीढी यह पर्व अनंत काल से चला आ रहा है . कृष्ण, बृज को मन में बसाये हुय़े होली की निश्छल श्रद्धा को जीवंत रखने  हेतु सभी को प्रेरित करता हुआ, आनंद की तरंगें फैलाताआज भी जीवन में रंग घोल कर उल्लसित कर देता  है .

    ये था मथुरा की होली का अद्भुत वर्णन,जो मेरी आंखों में बसं गया है. आज वर्षों के बाद भी मेरी स्मृति मे गुंजायमान होते रहते हैं. मथुरा नगरी के कण कण  में कृष्ण राधा का वास है.राधा कृष्ण राधा कृष्ण का स्वर समस्त जन मानस के मन में गूंजता रहता है. 

Shared by : पद्मा अग्रवाल

padmaagrawal33@gmail.com

                 

                        

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