
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना का प्रारंभ चैत्र नवरात्र से ही किया था . चैत्र प्रतिपदा से ही वैदिक धर्मका नव विक्रम् संवत् 2079 प्रारंभ हो रहा है . चैत्र माहप्रकृति में बदलाव का सूचक है …. हम लोगों को नकारात्मक विचारों को त्याग कर नई शुरुआत करनी चाहिये … इसमें प्रेम , करुणा ,परोपकार जैसे गुण हमारे सहायक हो सकते हैं . जिस व्यक्ति ने अपने मन , वाणी और चित्त की वृत्तियों को संयमित कर लिया ,उसने नवरात्रि – साधना के मूल संदेश को आत्मसात कर लिया क्यों कि यह अनुभूत सत्य है कि संयमित जीवन आपको सुख , आनंद ,, स्वास्थ्य और शांति प्रदान करता है .
नवरात्रि के पीछे का एक वैज्ञानिक आधार है ,पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा काल में एक साल की 4 संधियाँ होती हैं . जिनमें से मार्च और सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्रि पड़ती है .
इस समय रोगाणुओं के आक्रमण की सर्वाधिक संभावना रहती है . ऋतु संधियों या सरल शब्दों में ऋतु परिवर्तन में अक्सर शारीरिक बीमारियाँ बढती है , इसलिये स्वस्थ रहने के लिये, शरीर को शुद्ध रखने के लिये , तन मन को निर्मल रखने के लिये की जाने वाली प्रक्रिया का नाम नवरात्रि है .
नवरात्रि महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के नाम से मनाया जाता है . इस का नामकरण गुड़ी , जो ब्रम्हा का ध्वज है और पड़वा जो चंद्रमा के चरण के पहले दिन को दर्शाता है. यह पर्व वसंत ऋतु के आगमन का संकेत देता है . इसमे फर्श पर रंगोली , फूलों , आम , नीम के पत्तों से सजी एक विशेष गुड़ी ध्वज और उसके ऊपर चाँदी या ताँबे के बर्तन, रख कर घर में ऊँचे पर लगाया जाता है. सड़क पर जुलूस , नृत्य ,और श्रीखंड ,पूड़ी जैसे उत्सव के खाद्य पदार्थ के साथ मनाया जाता है .
उगादी, हिंदू नववर्ष का त्यौहार है , इसे युगादि भी कहा जाता है . यह त्यौहार बहुत धूमधाम से दक्षिण भारत के आँध्र प्रदेश , तेलंगाना ,और कर्नाटक में मनाया जाता है . उगादी के दिन लोग नये कपड़े पहनते हैं , उपहार देते हैं और गरीबों को दान देते हैं .
दरवाजों को आम के पत्तों से सजाते हैं , मुख्य द्वार पर कलश रखते हैं
दोस्तों रिश्तेदारों से मिलते हैं और उगादी की शुभकामनायें देते हैं .
मिठाई , नमकीन के पारंपरिक व्यंजन भी बनाये जाते हैं.
उगादी हमें अतीत को छोड़कर सकारात्मकता के साथ जीवन की नई शुरुआत का संदेश देता है .
सिंधी नववर्ष भी चैत्र प्रतिपदा को ही मनाते हैं . झूलेलाल जयंती को चेटीचंड कहा जाता है . इस दिन भगवान् झूलेलाल की जल के रूप में पूजा की जाती है. सिंधी नये कपड़े पहनते हैं और भव्य झूलेलाल जुलूस में शामिल होते है. उत्सव के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम और लंगर साहब का आयोजन किया जाता है .
चैत्र नवरात्रि को वसंत नवरात्रि के रूप में भी जाना जाता है… इस दौरान देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा आराधना की जाती है . ये त्यौहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है . नौ दिनों तक लोग विधिविधान से मां दुर्गा के ऩौ रूपों की उपासना करते हैं … बहुत से लोग नौ दिनों तक उपवास भी करते हैं … उनकी धारणा है कि उनकी पूजा से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और उनकी मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं …
पहला दिन…. शैल पुत्री …. चैत्र नवरात्रि के प्रधम दिवस को प्रतिपदा भी कहा जाता है ., इस दिन भक्त शैलपुत्री की पूजा करते हैं . इस दिन कलश स्थापना की जाती है . शैलपुत्री के माथे पर अर्धचंद्र है और इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बांए हाथ में कमल का पुष्प रहता है .
दूसरा दिन … ब्रह्मचारिणी ….. दूसरे दिन देवी के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जाती है …ये स्वरूप ज्ञान और दृढ संकल्प का प्रतिनिधित्व करती हैं .
तीसरा दिन … मां चंद्रघंटा … … चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिनमां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है , ये बाघ पर सवारी करती हैं , इनके माथे पर अर्धचंद्र सुशोभित रहता है . चंद्रघंटा नाम का अर्थ है , जिसके माथे पर चंद्रमा विभूषित है … ये शांति का प्रतिनिधित्व करती हैं .
चौथे दिन …देवी कूष्मांडा की पूजा … चतुर्थ दिवस को देवी कूष्मांडा की पूजा की जाती है … ऐसी मान्यता है कि देवी ने ब्रह्मांड के निर्माण मे अपना योगदान किया था . देवी दुर्गा का ये रूप सिंह पर सवार है और इनके आठ हाथों में एक माला के साथ सात घातक हथियार विभूषित रहते हैं .
पांचवा दिन …स्कंदमाता की पूजा …. पांचवे दिन भक्त देवी के स्कंदमाता की पूजा करते हैं … इस स्वरूप से भक्तों की आत्मा को शुद्ध करने वाला माना जाता है . इनकी गोद में इनका पुत्र स्कंद होता है . चार भुजाओं वाली देवी हाथों में कमल धारण करती हैं और अन्य दो हाथों में कमण्डल और और एक घंटी है .
छठा दिन …. देवी कात्यायिनी की पूजा …. देवी कात्यायिनी की पूजा छठे दिन की जाती है . हिंदू पौराणिक ग्रंथों की कथा के अनुसार महिषासुर राक्षस का वध करने के लिये मां पार्वती ने कात्यायिनी का रूप धारण किया था .
सातवां दिन … कालरात्रि पूजा …..चदेवी कालरात्रि का स्वरूप सबसे उग्र और सबसे हिंसक रूप माना जाता है , इस स्वरूप की पूजा सातवें दिन की जाती है .
आठवां दिन … महागौरी की पूजा …. नवरात्रि में आठवें दिन महागौरी देवी की पूजा की जाती है .मां महागौरी पवित्रता और शांति का प्रतीक हैं … देवी दुर्गा के भक्त उनका आशीर्वाद पाने के लिये महाअष्टमी के दिन उपवास रखते हैं .
नौंवा दिन … देवी सिद्धिदात्री की पूजा …..नवरात्रि के अंतिम दिन यानी नौंवे दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है . इस दिन भक्त छोटी कन्याओं का पूजन करके उन्हें भो0न करवा कर कुछ दक्षिणा या उपहार देनें का रिवाज क्षर घर देखा जाता है .
इस दिन भगवान् राम के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है . हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्री राम का जन्म हुआ था . रामनवमी के दिन ही चैत्र की नवरात्रि का समापन होता है . इस दिन बहुत से लोग नदियों में स्नान करते हैं , मंदिर जाते हैं , उपवास रखते हैं , हवन करवाते हैं . ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से उपासक की सारी मनोकामनायें पूर्ण होती हैं और मनवाछित फल की प्राप्ति भी होती है . अयोध्या में चैत्र राम मेले का भी आयोजन किया जाता है . लोगों के घरों में सामूहिक रामचरित्रमानस के पाठ का भी आयोजन किया जाता है .
इस तरह से चैत्र नवरात्रि के नौ दिनों तक धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत होकर विभिन्न प्रकार के धार्मिक आयोजनों के द्वारा तन मन की शुद्धि का प्रयास करते हैं .

Shared by : पद्मा अग्रवाल
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