
पहलगाम आतंकी हमला कई प्रश्न खड़े करता है … आतंक का नया प्रयोग …सैलानी , जो भूल चुके थे कि काश्मीर आतंक का गढ रहा है . वहाँ जाना खतरे से खाली नहीं है . आतंकियों ने समझबूझ कर पर्यटकों को निशाना बनाया ताकि शांति प्रक्रिया और प्रगति के प्रयासों को आसानी से रोका जा सके . चुनावों में काश्मीर की जनता की उत्साहपूर्ण भागीदारी को देख पाकिस्तान समर्थक आतंकी समूह जो आम काश्मीरी को अपने हाथ का खिलौना समझते रहे हैं वह काश्मीरी उनकी अकांक्षाओं और उम्मीदों की नुमाइंदगी नहीं करते . इसीलिये एक अत्यंत लोकप्रिय पर्यटन स्थल पर हुआ हमला बताता है कि आतंकी गैर काश्मीरी लोगों पर हमला करके काश्मीर में पनप रही शांति और भाई चारे की संस्कृति को तहस नहस करना चाहते थे .
इस हमले की दूसरी सबसे बड़ी चिंताजनक बात है आतंक का धार्मिकीकरण — आतंकियों ने लोगों से उनके नाम पूछे , यहाँ तक कि लोगों पर गोली मारने के पहले कलमा पढने को कहा . इस रणनीति के मूल में सांप्रदायिकता का जहर छिपा हुआ है .
आतंकी देश में पहले से पनप रहे सांप्रदायिक वातावरण को और ज्यादा कटुतापूर्ण बनाना चाहते थे ताकि देश, और विशेष रूप से काश्मीर पूरी तरह से हिंदू मुसलमान दो खेमे में बँट जायें और आपस मे एक दूसरे के साथ आपस में समझौता ना हो सके साथ ही दुश्मन की नजरों से देख कर आपस में लड़ाई करना शुरू कर दें. आपसी भाईचारा समाप्त हो जाये , यह मुख्य उद्देश्य था .
सोशल मीडिया का सहारा —आतंक को सबके सामने दिखाने की योजना . हमलावर अच्छी तरह से जानते थे कि टूरिस्ट फोटो और वीडियो बना रहे होंगें . जब वह लोग निहत्थे लोगों पर गोली चलायेंगें तब उनकी वहशियाना हरकत कई लोगों के केमरे और फोनों में कैद होकर तुरंत हर जगह प्रसारित हो जायेगी . मरने वालों के संबंधी और वहाँ मौजूद लोग इस नरसंहार की फोटो और वीडियो बनायेंगें . आतंकी अपने मकसद में पूरी तरह से कामयाब रहे . कई भयावह फोटो और वीडियो न्यूज चैनल पर प्रसारित हुये . घटना के इस व्यापक प्रचार प्रसार ने आतंकी हमले को केवल काश्मीर तक नहीं सीमित रखा वरन् उसको विश्व के साथ पूरे देश ने देखा .

इस धार्मिक और सांप्रदायिक उन्माद का सबसे बड़ा नुकसान उन काश्मीरियों का हुआ जो पर्यटकों को बचाने की कोशिश कर रहे थे या जो आतंकवाद के विरुद्ध मुखर होकर अपनी आवाज बुलंद कर रहे थे , मौत के इस तांडव के कारण उनका रोजगार खत्म हुआ, साख गिर गई और उनकी धार्मिक क्षेत्रीय पहचान अब शक के दायरे में आ गई है .
पाकिस्तान की भूमिका – पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर का एक सप्ताह पहले दिया हुआ भाषण बेहद प्रासंगिक हो गया है . सेना प्रमुख ने द्वि राष्ट्रवाद के नारे को दुबारा बुलंद करते हुये प्रण किया कि पाकिस्तान काश्मीर में जारी भारत विरोधी गतिविधियों को पूरा समर्थन देता रहेगा .
मुनीर ने कहा कि हिंदू और मुसलमान दो राष्ट्र हैं , वो कभी भी साथ नहीं रह सकते . इस बात को साबित करने के लिये मुनीर ने एक खास तरह के इस्लाम की दुहाई दी – एक ऐसा इस्लाम, जिसमें विधर्मियों की सजा मौत हो और जिसके जरिये आतंकवादी हिंसा को सही ठहराया जा सके . मुनीर का भाषण संकेत करता है कि पहलगाम हमला इस्लाम की इस बेहद सतही, विरोधाभासी , गैर रुहानी और अलोकतांत्रिक समझ से प्रेरित है .
प्रश्न यह है कि इस हमले का सही जवाब कैसा होना चाहिये… यह तो सुरक्षा एजेंसी तय करेंगीं ..वे इसकी पूरी जाँच पड़ताल करेंगीं लेकिन हम लोग कम से कम इतना तो अच्छी तरह समझ सकते हैं कि इस हमले का उद्देश्य केवल काश्मीर की प्रगति और शांति को नष्ट करना है . पाकिस्तान और उसकी शह पर पनप रहे आतंकी संगठन चाहते हैं कि भारत में सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न हो , उन्माद बढे और सब कुछ हिंदू मुसलमान में बँट कर एक दूसरे के दुष्मन बन जायें. इस हमले ने बता दिया है कि पाकिस्तान भारत की शांति , स्थिरता और प्रगति को रोकना चाहता है. यह समझने की जरूरत है कि पाकिस्तान इस्लाम का हितैशी नहीं वरन् सबसे बड़ा दुश्मन है .

Shared by : पद्मा अग्रवाल
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