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Dil se

बुढापा

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कल रात मैं  जब सोई थी 

 मीठे  सपनों में खोई थी 

तभी अचानक ऐसा लगा कि 

किसी ने दरवाजे पर थपकी दी है 

मैंने सपने में ही देखा  

कि एक बूढा दरवाजे पर खड़ा था

जिसके बाल सन्न से सफेद थे 

कंधे झुके और काया थी कृषकाय

हाथों में सहारे के लिये लाठी थी 

मैंने चिंतित स्वर में पूछा

बाबा , सुबह सुबह कैसे आये ,

वह जोर जोर से हँस कर बोला 

मैं बुढापा हूँ , 

तुमको लेने आया हूँ 

वह अंदर आने को खड़ा था 

अपनी जिद् पर अड़ा था 

मैंने कहा , नहीं भाई अभी नहीं 

अभी तो मेरी उमर  ही क्या है 

वह फिर  से हँस पड़ा था ,

‘जबर्दस्ती की जिद् मत करो 

मुझे तो रोकना   नामुमकिन है ‘

मैं मुस्करा कर बोली ,’ मान भी जाओ 

अब तो मुझे थोड़ी सी  अक्ल आई है ‘

“अभी तक तो मैं दूसरों के लिये ही जी रही थी 

अब तो कुछ दिन अपने लिये भी जीना चाहती हूँ 

कुछ कविता कहानी लिखना चाहती हूँ 

अपनी  सखी सहेलियों  के लिये  

के साथ  हँसना खिलखिलाना   चाहती हूँ “

बुढापा पोपले मुँह से हँस कर बोला , 

“अगर ऐसा चाहती हो

तो ऐसा ही होगा , तुम चिंता मत करो”

तुम्हारी उम्र तो बढती जायेगी 

लेकिन बुढापा नहीं आयेगा 

तुम लिखती पढती रहना 

सहेलियों के संग हँसती खिलखिलाती रहना 

बुढापा तुमको छू भी ना पायेगा

Shared by : पद्मा अग्रवाल

padmaagrawal33@gmail.com

                 

                        

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