जूही होली की तैयरियों में व्यस्त थी , लगभग एक हफ्ते पहले से उसने तैयारियाँ शुरू कर दीं थीं . तभी फोन की घंटी बजी थी , प्यारी ननद सीमा थी , ‘’भाभी , आपने काँजी डाल ली ‘
‘’हाँ दीदी, अभी तो काम खतम करके ही किचेन से बाहर आई हूँ . “
“आप बताइये , आपकी तो पहली होली है …क्या तैयारियाँ चल कही हैं ..अपने प्यारे साजन के संग धूमधाम से मनाइये .”
“भाभी ,इनकी छुट्टी नहीं है , इसलिये अकेले क्या होली क्या दीवाली ….”
सीमा दीदी के उदास स्वर से जूही का मन भीग उठा था … वह अपनी ससुराल की पहली होली की मधुर स्मृतियों में खो गई थी .
वह बचपन से ही होली के लिये बहुत उत्साहित रहती थी … आलू को बीच से काट कर चाकू से काट काट कर कभी 420 का ठप्पा बनाना तो कभी गुब्बारों में रंग भरना …
“अम्मा मेरी पुरानी फ्रॉक निकाल दो .. “. ताऊ जी बड़े ड्रम में टेसू के फूल भिगाकर रखते उसमें बार बार हाथ डाल कर देखना कि रंग गाढा हुआ कि नहीं …पीतल की पिचकारी निकाल कर उसका वॉशर बदलवाना , ये सब तो होली के पहले की तैयारी शुरू हो जाती थी ..होली के दिन बड़ी सी पीतल की पिचकारी , जिसमें रंग भरना कठिन होता तो ताऊ जी भर कर दिया करते थे , मजाल नहीं था कि कोई पकड़ कर चेहरे पर रंग मल दे …. दोनों हाथों में गुझिया लेकर खाना ,शाम को नये कपड़े पहन कर लोगों के घर होली मिलने जाना ..ये सब तो बचपन की स्मृतिय़ाँ है .
साल दर साल रंगों का त्यौहार मनाती आई थी . कॉलेज की होली जब निब वाले पेन की स्याही और लाल नीली स्याही फेंक कर होली का आनंद ले लेते थे .
. रंग गुलाल , गुझिया , काँजी , मित्रमंडली और मैं होली मनाने में उस्ताद थी . पूरे मोहल्ले में बाल्टी बजाते हुए सबके घरों से चाची , दीदी और भाभियों को इकट्ठा करते होली के गीत आज “ बिरज में होली रे रसिया” … की जो धूम मचाती कि बस …..शादी के बाद पहली होली पर माईके की बहुत याद आ रही थी लेकिन सीमा दीदी तो डरी सहमी कमरे में बंद हो गईं थी.
प्रियतम नये नवेले पति ने सुबह सुबह प्यार से मुझे अपनी बाहों के घेरे में आलिंगन बद्ध करके चुंबन अंकित करते हुय़े कहा ,.” हैपी होली”
मित्रमंडली की आवाज सुनते ही घर से उड़न छू हो गये थे . मैं बेचारी अपने दिल में तमाम उमड़ते घुमड़ते अरमानों को मन के अंदर संजोये हुये उदास मन से किचेन में चली गई थी . आखिर अब वह बहू थी तो किचेन की जिम्मेदारियाँ अब उसे अपनी सासु माँ के साथ निभाना था .और वह दही बड़े और कचौड़ियाँ तलने में लग गई थी .लेकिन मन तो रंग गुलाल और होली कैसे खेलती थी … उसमें ही उलझा हुआ था .
पति के व्यवहार से वह आज बहुत ही क्षुब्ध और नाराज हो रही थी . वैसे तो आज की सुबह ने तो उसे आश्चर्य में डाल दिया था . सुबह के 5 ही बजे थे तभी कॉल बेल बजी थी और पति तेजी से उठे और अम्मा जी ने पूजा की प्लेट लगा कर दी थी , उसके साथ में गन्ना, जिसमें होरहा (हरा चना)और गेंहूँ की बाली बँधी हुई थी , उसे कंचन (सेवक ) ने पकड़ा हुआ था . पति चले गये थे . वह फिर लेट गई थी लेकिन नींद नहीं आई तो वह उठ बैठी थी .
सासु जी ने मुझे बताया कि होलिका दहन अर्थात होली की पूजा करने के बाद सब छोटे बड़े अपने से बड़ों का पैर छूकर आशीर्वाद लेने के लिये आते हैं … इसलिये अब सब लोग आने वाले ही होंगें , वह कुछ समझ पाती तभी सीढियों पर आहट हुई थी सब छोटे बड़े जिसमें जेठ , देवर और बच्चे सभी शामिल थे मुझसे रिश्ते में छोटे लोगों ने मेरा पैर छू कर आशीर्वाद लिया था , मैं शर्माई हुई समझ नहीं पा रही थी क्यों कि देवर तो मुझसे काफी बड़े बड़े से भी थे .
मेरा ससुराल कोठी कहा जाता है , जिसमें 8-10 परिवार रहा करते हैं और हम सब आपस में सगे रिश्तेदार हैं , कोई चाचा तो कोई बाबा आदि …मैं सुबह की यादों और पिछली वर्षों की यादों खोई थी कि 10-12 बच्चे रंगे पुते हुय़े आ गये … कोई भाभी कह रहा था तो कोई चाची बस सब रंग में रंगे रंगाये आये थे … मैं तो उत्साह से भर उठी थी और उन बच्चों के साथ सारी उदासी भूल गई थी और होली की मस्ती में डूब गई थी . बच्चों के साथ रंग खेल कर उन्हें नाश्ता कराया और गीले कपड़े बदलने ही जा रही थी कि अम्मा जी ने कहा ,” बहू अभी तो सब तुम्हारे साथ सब लोग होली खेलने आ रहे होंगें …”
अभी मैं कुछ समझ पाती कि एकदम से आंगन से शोर सुनाई पड़ा,” होली है … होली है ….. “ आँगन में लगभग 50-60 छोटे बड़े देवर जेठ लोगों को देखकर मेरा तो होली का नशा ही उतर गया और मेरी रूह ही काँप उठी थी … डरती डराती हुई मैं आँगन में धीरे धीरे उतर गई थी .. वहाँ पर किसी को पहचानना संभव ही नहीं था और मैं तो उस भीड़ में सबको पहचानती भी नहीं थी .क्योंकि मैं तो इस परिवार के लिये नई ही थी . लेकिन क्या होता है … क्षण भर में मेरा भी वही हाल हो गया फिर तो गाना और डांस के साथ बाल्टी के हैंडिल का वाद्य बजता रहा …मोटे पाइप से पानी की बौछार ….ये सभी फुल मस्ती में नाच रहे थे ..अद्भुत दृष्य था तभी कोई बोला था , अब ये शर्त है , “ अपने अपने रंगे पुते पति को पहचानो ..”मुझे तो किसी को पहचानना ही असंभव लग रहा था मैं शांत खड़ी हुई थी तभी एक रंगे पुते सज्जन मेरी ओर बढे तो मैं चिल्ला पड़ी थी , “भाई साहब आप …” और फिर तो ठहाकों का जो कानफोड़ू शोर उठा क्यों कि वह मेरे पति ही थे . फिर एक बार फिर से हम दोनों का डांस हुआ, गाना बज रहा था “रंग बरसे , भीजे चुनर वाली “फिर नाश्ता और फिर हँसते गाते बजाते सब विदा हुये .
लेकिन अभी होली कहाँ समाप्त हुई थी क्योंकि सीमा दीदी तो कमरे में ही बंद थीं … मैंने उन्हें अपनी कसम देकर कमरे से बाहर निकाला तो उन्होंने सिसकते हुय़े बताया कि एक बार वह अपनी सहेली के यहाँ होली खेलने गईं थी तो वहाँ उसके भाई ने उसे एक कोने में घसीट कर गंदी हरकत करना चाहा तभी उसकी सहेली की माँ आ गई थीं और उन्होंने भाई को थप्पड़ लगा कर उसे बचा लिया था तबसे वह होली के रंगों से बहुत डरने लगी है .उसके बहुत समझाने के बाद सीमा दीदी बाहर निकली ही थी तभी उनकी सहेलियाँ जो उसी कोठी की थीं सब मिल कर ननद भाभी के साथ होली खेलने आ गईं थीं और फिर तो पूरा आँगन टेसू के फूलों की एक दूसरे को मारने का जो दृष्य उपस्थित हुआ कि आज याद आता है कि काश उस समय मोबाइल होता तो जो वीडियो बनता बस दर्शनीय फिल्म होती .
अब हम लोगों ने होली मनाने के लिये सीमा दीदी के घर जाने की प्लानिंग करना शुरू कर दिया था . बस चुपके चुपके उनके ससुराल वालों से संपर्क करके हम सब होली मनाने पकवान , मिठाई , काँजी और तमाम सामान लेकर दीदी के घर हम चल दिये थे लेकिन रास्ते में कुछ लोग नशा करके लड़ते झगड़ते और गाली गलौज करते भी दिखाई दिये थे . गाँव में महिलाओं को कीचड़ मिट्टी से होली खेलते देख डर भी लगा था , लोगों ने दुश्मनी भुलाने के पर्व को दुश्मनी निकालने का अवसर भी बना लिया है जो कि कतई गलत है और रंग रंगीले त्यौहार को प्रदूषित कर रहे हैं.
हम सबने साथ साथ पहुँच कर दीदी की होली को यादगार बना दिया था . आज उनके चेहरे की मुस्कान को देख कर हम सब खुशी से झूम उठे थे .

Shared by : पद्मा अग्रवाल
padmaagrawal33@gmail.com