गणेशोत्सव महाराष्ट्र का बहुत लोकप्रिय त्यौहार है . यह हिंदुओं का पसंदीदा पर्व है …अब तो इसकी
लोकप्रियता पूरे विश्व में फैलती जा रही है . हिंदू धर्म मे गणपति जी को विशेष स्थान प्राप्त है . सभी शुभ
कार्यों के पहले गणपति की वंदना पूजा अनिवार्य बताई गई है . लोकमान्य तिलक द्वारा शुरू किया गया यह
गणेशोत्सव जाति , पंथ या धर्म की परवाह किये बिना भारत के साथ साथ अब तो विदेशों में भी मनाया
जाता है .
गजाननं भूत गणादिसेवितम्, कपित्थ जंबु फल चारु भक्षणम्
उमासुतं शोक विनाश कारकम्, नमामिविघ्नेश्वर पादपंकजम्
शिव पार्वती के पुत्रगणेश जी को ज्ञान का देवता माना जाता है . गणपति जी का आगमन भाद्रपद की चतुर्थी
को होता है , यह त्यौहार 10 दिनों तक बड़े उत्साह से मनाया जाता है . भगवान् गणेश की मूर्ति को घर में
बाजे गाजे और सम्मान के साथ लाकर प्रतिष्ठित करके 10 दिनों तक श्रद्धा भक्ति के साथ उनका नित्य भोग
और आरती करने का रिवाज है . घर के नन्हें मुन्ने ढोल नगाड़ों की आवाज के साथ उत्साह के साथ घर में
लाकर स्थापित करते हैं . गणपति बप्पा मोरया मंगलमूर्ति मोरया का जयकारा लगाते जाते हैं … दूर्वा ,
जसवंडी फूल , केवड़ा लाल फूल से गणपति की पूजा की जाती है . गणपति जी के भोग में मोदक , खीर
,पूरनपोली , लड्डू आदि अवश्य चढाने का रिवाज है . सभी को प्रसाद में मोदक दिया जाता है . गणपति के
मंडप को रंगबिरंगी लड़ियों , झालर आदि से खूब सजाया जाता है . वहीं सार्वजनिक मंडल आकर्षक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं . गौरी के दिन महिलायें हल्दी कुमकुम का आयोजन करती हैं . पंडालों में सामाजिक , ऐतिहासिक और पौराणिक सुंदर दृश्यों का प्रदर्शन किया जाता है . सार्वजनिक मंडल विभिन्न प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया करते हैं .
अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश जी की मूर्ति का विसर्जन किसी सरोवर , नदी या समुद्र में कर दिया जाता है .
‘गणपति बप्पा मोरया अगले बरस तू जल्दी आ’ कह कर सभी अपने प्रिय बप्पा को विदा करते हैं . इस दिन
गणपति का विसर्जन जुलूस निकाला जाता है और घंटियाँ बजाई जाती हैं .
पुणे में लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने 1892 में इस त्यौहार को सार्वजनिक रूप से मनाना शुरू किया क्यों
कि अँग्रेजों की सरकार किसी भी राजनैतिक आयोजन पर लोगों को गिरिफ्तार कर लेती थी परंतु धार्मिक
आयोजन पर लोगों को गिरफ्तारी से छूट थी … इसलिये इस आयोजन पर लोग 10 दिनों तक एकत्र होकर
आपसी संवाद करने की सुविधा होती थी . सभी लोग एक जुट होकर खुशी के साथ त्यौहार को मनायें ,
यह उनकी सोच थी … तिलक ने भारतीय समाज को एक करने के उद्देश्य से इस त्यौहार को सार्वजनिक किया . इसका उद्देश्य जन
जागरण था . गणेशोत्सव के माध्यम से राजनैतिक जागरूकता पैदा करने के लिये कलाकारों की प्रतिभा का
सहारा लेकर आम जनता के ज्ञान को बढाने के लिये व्याख्यान आयोजित किये गये .
कुछ गणेशोत्सव मंडल हैं जो आज भी विभिन्न प्रतियोगितायें आयोजित करते हैं जैसे गायन , वाद्य यंत्र ,
भाषण कौशल , खेल प्रतियोगितायें ,, लेखकों , कवियों , नाटक आदि के प्रदर्शन आयोजित किये जाते हैं . इन आयोजनों से निश्चित तौर पर नई पीढी को सही दिशा प्राप्त होगी .गणेशोत्सव पर फिजूल खर्ची से बच
कर सामाजिक जागरूकता के मुद्दों पर प्रकाश डालने के लिये गणेश मंडल विभिन्न गतिविधियों को अंजाम देने
पर ध्यान देना चाहिये . लोकमान्य तिलक के द्वारा नेक उद्देश्य के लिये शुरू किये गये इस पर्व के महत्व को सभी को पता होना
चाहिये . विभिन्न भौड़े कार्यक्रम को आयोजन से बचना चाहिये . विसर्जन जुलूस अनुशासित माहौल में होना
चाहिये . मूर्तियों के रंगों को पानी में मिलाने से पानी प्रदूषित होता है , इसलिये हमें ऐसी मूर्तियों का प्रयोग
करना चाहिये जो प्रदूषण न फैलायें . आजकल बाजार में ऐसी इको फ्रेंड्ली मूर्तियाँ ( घुलनशील मूर्तियाँ ), जिनमें ऑर्गैनिक रंगों का प्रयोग करके बनाई जा रही हैं जो पानी और पर्यावरण को प्रदूषित नहीं करतीं . हम सबको प्रदूषण मुक्त वातावरण की दृष्टि से त्यौहार मनाना चाहिये . विसर्जन जुलूस में परंपरागत वाद्ययंत्रों का प्रयोग किया जाये न कि कानफोड़ू संगीत लहरी का …समाज को सही दिशा देने के लिये समाज के हर वर्ग को गणेशमंडलों को प्रयास करना चाहिये . यदि पर्यावरण के अनुकूल गणेशोत्सव मनाया जाये तो इसका महत्व आने वाली पीढी के लिये और अधिक उपयोगी हो जायेगा .
पद्मा अग्रवाल