अपने खालीपन को भरने औरतें भरती रहती हैं बरनियों में अचारपतियों से उपेक्षित होकर खोजती हैं -पुत्री और पुत्र में वही प्यार…अंदर से धधकती भी हैं मगर बहाती हैं पुरवाई सी बयारढकने को अपना अवसाद करती हैं साज, श्रृंगार एक दिन में कई बार मजाल जो कह जाएं कि खालीपन है,बहुत खलीपन हौले से मुस्कुरा बस चुप रह जाती हैं हर बार..
*शिवानी विनय सिंह*