‘ऊधो मोहि बृज बिसरत नाहिं ‘…यदि आपको भी बृजभूमि का ऐसा ही एहसास करना है ,जो आपकी स्मृति पटल पर आजीवन, जीवंत रहे और दिलोदिमाग पर कभी भी फीका न पड़े तो एक बार कृष्ण जन्माष्टमी पर बृजभूमि पर अवश्य जायें . यूं तो मथुरा वृंदावन या पूरी बृजभूमि में पूरा वर्ष कृष्णमय वातावरण ही रहता है लेकिन सावन का महीना आते ही यहां की रंगत ही बदल जाती है . बारिश होने के कारण इन दिनों पूरा वृंदावन जैसे जीवंत हो उठता है , चारों तरफ बस हरियाली ही दिखाई पड़ती है .
हरा भरा वृंदावन मन को मोह लेता है . जैसा कि सभी जानते हैं कृष्ण का जन्म देवकी और वासुदेव के घर मथुरा के जेल में हुआ था . बच्चे को उसके मामा द्वारा मारे जाने से बचाने के लिये , उसे यमुना नदी के उस पार गोकुल ले जाया गया . जहां उनका नंद और यशोदा जी ने उनका पालन पोषण किया .
वैसे तो सावन का महीना भगवान् शिव को समर्पित है परंतु मथुरा वृंदावन में सावन में राधा कृष्ण के हिण्डोला दर्शन की भक्तिमय धूम रहती है . अद्भुत मनमोहक हिण्डोला दर्शन के लिये दूर दूर इलाकों से राधा कृष्ण को आराध्य मानने वाले वैष्णव और साधूसंतों की टोली आने लगती हैं . फूल बंगला के दर्शन कर भक्त अपने को धन्य मानते हैं और ठगे से रह जाते हैं . सामान्य दिनों की अपेक्षा सावन भादों के महीनें में भक्तों की संख्या दो से तीन गुना तक बढ जाया करती है.
इन दिनों बृजभूमि में बहुत रौनक होती है .यहां पर बड़े पैमाने पर गौपालन का काम होता है. यह एक प्रकार का कृष्ण गाथा का हिस्सा भी है .क्योंकि भगवान् कृष्ण स्वयं गाय चराया करते है . उनकी लीलाओं में गाय और बांसुरी का महत्वपूर्ण स्थान है . वृंदावन का शाब्दिक अर्थ है – वृंदा या तुलसी का वन , शायद वृंदावन ही अकेली ऐसी जगह है जहां तुलसी के पौधे नहीं पेड भी दिखते हैं . इतने बड़े बड़े पेड़ है कि लड़कियां झूला डाल कर झूला झूलती देखी जा सकती हैं .
पूरे वर्ष वहां के लोगों को कृष्ण जन्माष्टमी का इंतजार रहता है . क्योंकि कृष्ण जन्माष्टमी आने के महीनों पहले से ही रौनक का बसेरा हो जाता है . जन्माष्टमी भादों महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनायी जाती है परंतु इसकी तैयारी सावन लगने के साथ ही शुरू हो जाती है चूंकि सावन से ही साधुओं और वैष्णव का आना शुरू हो जाता है इसलिये जन्माष्टमी पर लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ जमा हो जाती है , यद्यपि कि इन लोगों की पूजा पद्धति एक दूसरे से भिन्न होती है .
सच तो यह है कि सावन के महीने में बृजभूमि में आने पर न केवल देश के अलग अलग हिस्सों के साधू संतों के दर्शन होते हैं वरन् भक्ति और आस्था का महाकुंभ को भी यहां पर देखा जा सकता है .
ऐसा भी लोगों द्वारा कहा जाता है कि पहले के दिनों में कृष्ण जन्माष्टमी के दिन अंधकार को प्रतीकात्मक रूप से दूर करने के लिये पूरी रात घी के दीपक जलाये जाते थे , जिसके कारण लोग कृष्ण जन्माष्टमी को मथुरा वृंदावन की दीपावली भी मानते हैं . अब दीपक के स्थान पर तमाम मंदिरों और घरों को बिजली की रंगबिरंगी रोशनी से सजाया जाता है .
जन्माष्टमी की रात विशेष रूप से बिजली की आपूर्ति अबाधित रहे , सरकार की ओर से इसकी व्यवस्था की जाती है . चूंकि यह सूचना तकनीकी का दौर है , विजुअल क्रांति का समय है इसलिये जन्माष्टमी के दिन मंदिरों के बाहर ओबी वैन का जमावड़ा देखा जाता है , जो यहां के कार्यक्रमों को पूरे देश में ही नहीं वरन् पूरे विश्व में सीधा प्रसारित भी करती हैं . इसलिये जन्माष्टमी का त्यौहार अब काफी हद तक ग्लोबल बन चुका है.
भले ही यहां गुजरात और महाराष्ट्र की तरह दही हांडी का भव्य कार्यक्रम नहीं होता है परंतु जन्माष्टमी के अवसर पर पूरे बृजभूमि में भक्ति और श्रद्धा में ओत प्रोत भक्तों की टोलियां भक्तिभाव में सराबोर होकर मनमोहक नृत्य और गीत प्रस्तुत करते रहते हैं .
सामान्य दिनों में जहां 2-3 लाख श्रद्धालु समूची बृजभूमि में पहुंचते हैं , वहीं जन्माष्टमी के अवसर 20 से 25 लाख तक भक्त पहुंच जाते हैं . इस कारण से कई बार वहां की सारी व्यवस्थायें चरमरा जाती हैं परंतु भक्त किसी तरह की शिकायत नहीं करते वरन् बृजभूमि पर आकर स्वयं को धन्य मानते हैं .
इन सबको जीवंत रूप में देखने के लिये जन्माष्टमी के अवसर पर मथुरा वृंदावन आयेंगें तो आप भक्तिभाव के पवित्र ठंडी हवा के झोंके से मन प्रसन्नचित्त हो उठेगा .