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Dil se

धुंधलाती आँखें

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रात के 10 बजे थे मेघना बच्चों के कमरे में लेट कर पत्रिकायें पलट रही थी , अचानक ही बर्तन गिरने की
टन्न की आवाज से उनका ध्यान भंग हुआ तो वह झटके से उठ कर किचेन की ओर तेजी से गई थीं तभी
वैभव का नाराजगी भरा उनका स्वर उनके कानों में पड़ा था , ‘इस घर में रात में भी चैन से काम करना
मुश्किल हो गया है .” उनका तल्खी भरा अंदाज उन्हें अच्छा नहीं लगा था ….
वैभव डिग्री कॉलेज में मैथ्स के लेक्चरर हैं …. इन दिनों वह एक्जाम की कॉपियों के करेक्शन में
बिजी थे . जब से वह हेड ऑफ डिपार्टमेंट बने हैं … उनका काम बहुत बढ गया है इसी वजह से वह बहुत
टेंशन में रहते थे … बात बात पर चिड़चिड़ाना उनकी आदत बनती जा रही है .
मेघना ने देखा कि मां गैस जला कर सामने रैक में कुछ टटोल रहीं है ……. “मां आप क्या ढूढ रही हैं?
आपको दिख नहीं रहा है क्या? आपको कुछ चाहिये था तो मुझे आवाज दे देतीं …. ‘”
हां बेटा , वैभव के लिये कॉफी बना दूं…….. तुम लेट गईं तो मैंने सोचा कि वह देर रात तक काम करता है
तो उसे कॉफी दे दूँ लेकिन अंदर आकर भूल गई और फिर घबराहट में मेरे हाथ कांप गये इसलिये ग्लास
छूट गया था …बेटा चश्मे का नंबर भी लगता है बदल गया है ….आंखें भी धुंधला गईं हैं ….
“ रात में वैभव और बच्चों को हल्दी का दूध जरूर दे दिया करो …. आजकल ठंड के दिनों फायदा करेगा ..”
मां की वात्सल्य भरी बातें सुन कर उनका दिल भर आया था… मां के अंदर कितनी ममता भरी होती है .
वह अपनी सासु मां मालती जी , जो अपने हार्ट के चेकअप के लिये दिल्ली लेकर आईं थीं , अकेले मां गांव
में कैसे रहेंगीं , ऐसा सोच कर उन्होंने उन्हें अपने साथ रखने का फैसला कर लिया था . उन्हें कुछ महीने
पहले माइनर हार्टअटैक आ चुका था इसलिये उन्हें विशेष देखभाल की जरूरत थी , यह उनका अपना सोचना
था जब कि वैभव का कहना था कि मां की जिम्मेदारी अभय की भी होती है , इसलिये वह उन्हें आकर
अपने साथ ले जाये .
इसी वजह से वैभव उनसे और मां से भी उखड़े उखड़े से रहते थे . बार बार हॉस्पिटल , डॉक्टर और टेस्ट
और कंसल्टेशन के लिये मां को लेकर जाने के कारण से वैभव की व्यस्त दिनचर्या में अक्सर व्यवधान और
बाधायें आती रहती हैं …..
वैभव को मां के यहां रहने से विशेष आपत्ति नहीं है परंतु रोज रोजहॉस्पिटल और डॉक्टर के यहां की भागदौड़
के कारण वह खीज उठते थे .
जब मेघना सोने के लिये कमरे में आई तो वैभव अपने लैपटॉप पर नजरें लगाये बैठे थे , यह तो उनकी नित्य
की दिनचर्या थी .
सुनिये वैभव मां को डिमेंशिया के साथ साथ अब चश्मे का टेस्ट भी करवाना पड़ेगा …. उन्हें किचेन में
दिखाई नहीं पड़ रहा था इसलिये वह य़हां वहां टटोल कर कुछ ढूंढ रहीं थीं .
वह खीझ भरे स्वर में बोले ,” तो मैं क्या करूं ?”

“उन्हें देखने में परेशानी हो रही है ….”
“ तो मुझसे ये बातें क्यों कह रही हो ?”
“मैने कल का डॉक्टर से एप्वायंटमेंट ले लिया है और मेरी जरूरी मीटिंग आ गई है , इसलिये कह रही हूँ…”
“अच्छा देखता हूं, उनकी नजरें अभी भी अपने लैपटॉप पर थीं …
सुबह जब उन्होंने पूछा कि डॉक्टर से कितने बजे का समय मिला है ….
“दोपहर 1 बजे “
“ओ. के. “
मेघना ने चैन की सांस ली थी ,मां के चेहरे पर भी बेटे के साथ जाने के कारण खुशी दिखाई पड़ रही थी ..
वैभव जब हॉस्पिटल पहुंचे तो वहां की भीड़ देख हैरान रह गये थे क्योंकि हॉपिटल का काम सब मेघना ही
हमेशा से करती आई थी . वह भीड़ पर एक नजर डाल कर डॉ. गोडबोले के केबिन की ओर बढ गये थे क्यों
कि घड़ी एक बजाने वाली थी … लेकिन वहां बैठे सहायक नें सूचना दी कि डॉक्टर किसी आवश्यक सर्जरी में
व्यस्त हैं इसलिये वह आधा घंटा विलंब से आयेंगें .
वैभव ने मां को एक कोने में सिकुडीं सिमटी घबराई सी बैठे देखा …तभी मेघना का फोन आया कि मां का
ख्याल रखना वह भीड़ देख कर घबरा जाती हैं … वह इधर उधर न कहीं चल दें … उन पर नजर रखना ….
वह सोचने लगे कि मां मेरी हैं लेकिन मेघना उनका कितना ध्यान रखती है ,..सोच कर उनके चेहरे पर
मुस्कान छा गई …
तभी साधारण वेशभूषा में एक हमउम्र महिला उनके पास आई और बोली ,’ हेलो वैभव .. .वह आश्चर्य से उसे
देखने लगा और पहचानते ही खुश हो गया … वह उसकी स्कूल फ्रेंड सुविज्ञा थी , जिसके साथ क्लास में उनका
हमेशा कंपटीशन रहता था … परंतु उसकी साधारण वेशभूषा देख वह रुखाई से बोला …सुविज्ञा ने उसके
स्वर की रुखाई को महसूस कर लिया था ,…. वह वहाँ से चली गई और अपने साथ आये वृद्ध की देखभाल
में लग गई थी … वह कभी उनके सिर को सहला रही थी कभी पानी पिला रही थी तो कभी उन्हें दवा अपने
हाथो से खिला रही थीं . वैभव कनखियों से सुविज्ञा के सेवा भाव को लगातार देख रहे थे , अब उन्होंने मां
से एक बार पानी के लिये पूछा और फिर सुविज्ञा से बात करने के लिये उसकी तरफ चल दिया था …
ये मेरे ससुर हैं , इन्हें अल्जाइमर्स है और आंखों से भी धुंधला दिखने लगा है , इसलिये यहां टेस्ट करवाने के
लिये लेकर आईं हूँ , मैं इन्हें 2 साल पहले गांव से अपने साथ ले आई थी कि यहां पर इनका अच्छा इलाज
हो जायेगा …
“सुविज्ञा , तुम्हारे देवर , जेठ नहीं हैं , जो इनकी देखभाल कर सकें …तुमने सारी जिम्मेदारी अपने सिर पर
ओढ रखी है …. पति सहयोग करते हैं कि नहीं …”
“पति तो एक साल पहले ही एक्सीडेंट में साथ छोड़ गये …”
“तुम अकेले कैसे ये सब संभाल लेती हो ?”
वैभव देखो , ‘काम तब कठिन लगता है जब हम काम को बेमन से किया जाये …जब मैं शादी करके आई
तो इन्हीं पापा और मां ऩे मुझे इतना लाड़ प्यार दिया और मुझे कभी बोझ नहीं समझा कि मुझे मेरे मायके

की कभी याद नहीं आई और आज जब उन्हें मेरी जरूरत है तो अब मैं अपने कर्तव्य को क्यों न पूरा करूं…
शहर में बड़े बड़े डॉक्टर और सारी सुविधाओं के कारण मैं आसानी से इनका ध्यान रख पा रही हूँ ,,,,
उसे अपनी मां की याद आ रही थी , वह उनके पास जाकर बैठ गया और उनकी गर्म हथेलियों को जोर से
अपनी मुट्ठियों में बंद कर लिया था … मां ने ही उसकी आंखों में कुछ बनने का सपना दिखाया था . उसे यहां
तक पहुंचाने में मां की बरसों की तपस्या थी .
उनकी आंखों में बरबस आंसू झिलमिला उठे . अब उनकी अपनी आंखों में आंसुओं के कारण धुंधलापन छा
गया था …
आज सुविज्ञा की मामूली सी बात के सामने उनका सारा संचित ज्ञान का दंभ चूर चूर हो गया था ,

पद्मा अग्रवाल


Padmaagrawal33@gmail.com

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