45 वर्षीय रामचरण का नाम आज शहर के जाने माने लोगों में गिना जाता है . उन्होंने अपनी मेहनत और लगन के बलबूते दौलत का ढेर इकट्ठा कर लिया था …इस दुनिया में किसी भी व्यक्ति को अपने जीवन में खुश होने के लिये धन दौलत , सुंदर पत्नी , प्यारा सा बच्चा सब कुछ तो था उनके पास …. बस वह धन के दंभ में चूर होकर अपने को दूसरों से श्रेष्ठ , संपन्न और वह स्वयं को सामान्य लोगों से कुछ अलग होने का भाव रखते थे .
‘प्रभुता पाय काय मद नाहीं’ गोस्वामी तुलसीदास जी की उक्ति उन पर पूर्णरूपेण चरितार्थ होती थी .
वह अपने बचपन के उन दिनों को बिल्कुल भूल चुके थे, जब वह एक मजदूर के बेटे हुआ करते थे और पिता को मजदूरी मिली तो रोटी, नहीं तो फांके … इस तरह की अनेक दुश्वारियों के बीच उनका बचपन बीता था . पिता शराब पीकर आते और माँ के साथ गालीगलौज और मार पिटाई करते तो वह आक्रोशित हो उठता लेकिन डर की वजह से वह चुप रह कर आंसू बहा कर रह जाता .. एक दिन नशे में उन्होंने माँ को दीवार में सिर पटक पटक कर इतना मारा कि वह वहीं गिर पड़ीं ,शायद मर गईं थी… उस दिन वह डर कर वहाँ से निकल भागे और यहाँ वहाँ भटकते रहे … कभी ढाबें में बर्तन धोते तो कहीं चाय की दुकान में मेज पोछ कर चाय पहुँचाया करते … अक्सर भूखे पेट रात भर ठंड से दाँत किटकिटाते हुए रात बीता करती …इन सब हालातों से गुजरने के बाद उसको यह महसूस हुआ कि इस दुनिया में जीने के लिये पैसा ही सबसे जरूरी है .. इसलिये उन्होंने निश्चय कर लिया कि उनके जीवन का लक्ष्य येन केन प्रकरेण… साम दाम दण्ड भेद किसी भी उपाय से पैसा कमाना है …
जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही उन्होंने यहाँ वहाँ हाथ पैर मारना शुरू कर दिया था … जीवन के अनुभवों से वह चालाक और होशियार बन गये थे …
कहावत है कि जहाँ चाह होती है वहाँ राह भी होती है …. उनकी संगत जेबकतरे और बदमाश लड़को की थी … वहीं पर उनकी मुलाकात बलराज से हुई जो ऐसे गैंग का सदस्य था जो सरकारी कागजों की हेराफेरी का धंधा करके पैसा बनाता था …एक दिन वह लोग घूमते घूमते जंगल की ओर निकल गये थे वहाँ फैले हुए विशाल जंगल को देख कर आइडिया ने जन्म लिया और उन लोगों ने आपस में तय करके जंगल की जमीन पर सोसायटी बनाने का प्लान तैयार किया और रामचरण सरगना बन गये और 4-6 लोगों ने मिल कर वनविभाग की जमीन पर कब्जा करके जंगल के हरे भरे पेड़ों को काटना शुरू कर दिया ….वहाँ पर पहले प्लॉटिंग करके लोगों के हाथ प्लॉट बेच दिये फिर सोसायटी का सतरंगी सपना बेचना शुरू कर दिया … धड़ा धड़ फ्लैट की बुकिंग होने लगी और रुपयों की वर्षा होने लगी……. सोसाय़टी का निर्माण करने के लिये छोटी छोटी पहाडियों को काटने के लिये डायनामाइट का भी प्रयोग करना पड़ा … जल की जरूरत के लिये धरती माता का हृदय चीर कर बड़ी बड़ी मोटर के द्वारा रातों दिन जल का दोहन करते …. नदी में सारा मलबा फेंक कर नदी का रास्ता ही बदल डाला और मलबे के कारण नदी अब नाले के रूप में परिवर्तित हो गई थी लेकिन उन लोगों को तो पहले प्लॉट फिर सोसायटी बना कर पैसा कमाना था ….
दिन रात बड़े बड़े ट्रकों, ट्रैक्टरों और आने वाली गाड़ियों के हॉर्न का कानफोड़ू शोर शराबा , तोड़ा फोड़ी , मशीनों का शोर , उपयोग में आनेवाले अनेक उपकरणों के द्वारा होने वाले ध्वनिप्रदूषण ने पूरे वातावरण को प्रदूषित कर रखा था .
वहाँ काम करने वाले मजदूर खाँसते खांसते बेहाल हो जाते तो वह तुरंत उसकी छुट्टी करके नया आदमी रख लेते …
जब भी पर्यवरण विभाग से या किसी दूसरे विभाग से नोटिस आता तो उसके जवाब में मुट्ठी गरम कर दी जाती और कंस्ट्रक्शन का काम निर्बाध रूप से चलता जाता … देखते ही देखते वहाँ रहे भरे पेड़ों के जंगल के स्थान पर कंक्रीट का जंगल खड़ा होता चला गया …मल्टी स्टोरीड बिल्डिंग , क्लब हाउस , स्विमिंग पुल , पार्क आदि बन कर खड़ा होता गया , सच कहा जाये तो जंगल में मंगल छा गया … एक आधुनिक सोसायटी बन कर तैयार हो गई थी और दूसरी की तैयारी चल रही थी …
राम चरण ने होशियारी से एक एक कर अपने साथियों को मरवा कर स्वयं बिल्डरों का बेताज बादशाह बन गया… अब उसका रुतबा राजामहाराजा जैसा हो गया था .. बिल्डर और कंस्ट्रक्शन के बाद उन्होंने रत्नों के काम में भी हाथ आजमाया … उनका व्यापार विदेशों तक फैल गया था .
इसी बीच 42 साल की उम्र में उन्होंने 16-17 साल की इटैलियन लड़की जेमिमा से शादी कर ली थी और उसके इश्क में डूबे हुये थे तभी एक बार एबार्शन होने के बाद मुश्किलों से बेटा उन्हें मिला था , वह 6 महीने का भी नहीं हो पाया था कि जेमिमा एक दिन बच्चे को छोड़ कर चली गई थी … वह समझ नहीं पा रहे थे कि इतनी सुख सुविधा को छोड़ कर भी कोई जा सकता है … खैर उन्होंने उसको पालने के लिये नर्स रख ली थी लेकिन मन में निराशा और अवसाद हावी होने लगा था..
सरकार की नीतियों का विरोध करना और सरकारी नियमों और नीतियों का उल्लंघन , यही इन धनकुबेरों की नीति होती है . रामचरण जी को सरकारी आदेशों की अनदेखी करते हुए धनी बनते देख , उनका अनुकरण करके उन जैसे दूसरे रामचरण भी इस अंधी दौड़ में शामिल हो गये और वहाँ पर बड़ी बड़ी मल्टी स्टोरीड बिल्डिंग अर्थात सीमेंट के जंगल खड़े होते चले गये …
कहावत है कि जहाँ चाह होती है वहाँ राह भी होती है …. उनकी संगत जेबकतरे और बदमाश लड़को की थी … वहीं पर उनकी मुलाकात बलराज से हुई जो ऐसे गैंग का सदस्य था जो सरकारी कागजों की हेराफेरी का धंधा करके पैसा बनाता था …एक दिन वह लोग घूमते घूमते जंगल की ओर निकल गये थे वहाँ फैले हुए विशाल जंगल को देख कर आइडिया ने जन्म लिया और उन लोगों ने आपस में तय करके जंगल की जमीन पर सोसायटी बनाने का प्लान तैयार किया और रामचरण सरगना बन गये और 4-6 लोगों ने मिल कर वनविभाग की जमीन पर कब्जा करके जंगल के हरे भरे पेड़ों को काटना शुरू कर दिया ….वहाँ पर पहले प्लॉटिंग करके लोगों के हाथ प्लॉट बेच दिये फिर सोसायटी का सतरंगी सपना बेचना शुरू कर दिया … धड़ा धड़ फ्लैट की बुकिंग होने लगी और रुपयों की वर्षा होने लगी……. सोसाय़टी का निर्माण करने के लिये छोटी छोटी पहाडियों को काटने के लिये डायनामाइट का भी प्रयोग करना पड़ा … जल की जरूरत के लिये धरती माता का हृदय चीर कर बड़ी बड़ी मोटर के द्वारा रातों दिन जल का दोहन करते …. नदी में सारा मलबा फेंक कर नदी का रास्ता ही बदल डाला और मलबे के कारण नदी अब नाले के रूप में परिवर्तित हो गई थी लेकिन उन लोगों को तो पहले प्लॉट फिर सोसायटी बना कर पैसा कमाना था ….
दिन रात बड़े बड़े ट्रकों, ट्रैक्टरों और आने वाली गाड़ियों के हॉर्न का कानफोड़ू शोर शराबा , तोड़ा फोड़ी , मशीनों का शोर , उपयोग में आनेवाले अनेक उपकरणों के द्वारा होने वाले ध्वनिप्रदूषण ने पूरे वातावरण को प्रदूषित कर रखा था .
वहाँ काम करने वाले मजदूर खाँसते खांसते बेहाल हो जाते तो वह तुरंत उसकी छुट्टी करके नया आदमी रख लेते …
जब भी पर्यवरण विभाग से या किसी दूसरे विभाग से नोटिस आता तो उसके जवाब में मुट्ठी गरम कर दी जाती और कंस्ट्रक्शन का काम निर्बाध रूप से चलता जाता … देखते ही देखते वहाँ रहे भरे पेड़ों के जंगल के स्थान पर कंक्रीट का जंगल खड़ा होता चला गया …मल्टी स्टोरीड बिल्डिंग , क्लब हाउस , स्विमिंग पुल , पार्क आदि बन कर खड़ा होता गया , सच कहा जाये तो जंगल में मंगल छा गया … एक आधुनिक सोसायटी बन कर तैयार हो गई थी और दूसरी की तैयारी चल रही थी …
राम चरण ने होशियारी से एक एक कर अपने साथियों को मरवा कर स्वयं बिल्डरों का बेताज बादशाह बन गया… अब उसका रुतबा राजामहाराजा जैसा हो गया था .. बिल्डर और कंस्ट्रक्शन के बाद उन्होंने रत्नों के काम में भी हाथ आजमाया … उनका व्यापार विदेशों तक फैल गया था .
इसी बीच 42 साल की उम्र में उन्होंने 16-17 साल की इटैलियन लड़की जेमिमा से शादी कर ली थी और उसके इश्क में डूबे हुये थे तभी एक बार एबार्शन होने के बाद मुश्किलों से बेटा उन्हें मिला था , वह 6 महीने का भी नहीं हो पाया था कि जेमिमा एक दिन बच्चे को छोड़ कर चली गई थी … वह समझ नहीं पा रहे थे कि इतनी सुख सुविधा को छोड़ कर भी कोई जा सकता है … खैर उन्होंने उसको पालने के लिये नर्स रख ली थी लेकिन मन में निराशा और अवसाद हावी होने लगा था..
सरकार की नीतियों का विरोध करना और सरकारी नियमों और नीतियों का उल्लंघन , यही इन धनकुबेरों की नीति होती है . रामचरण जी को सरकारी आदेशों की अनदेखी करते हुए धनी बनते देख , उनका अनुकरण करके उन जैसे दूसरे रामचरण भी इस अंधी दौड़ में शामिल हो गये और वहाँ पर बड़ी बड़ी मल्टी स्टोरीड बिल्डिंग अर्थात सीमेंट के जंगल खड़े होते चले गये …
परंतु प्रकृति भी आखिर कब तक अपने प्रति मनुष्य के शोषण और अत्याचार को सह पाती … वह क्रोधित हो उठी थी ….शहर में वर्षा का तांडव शुरू हुआ था …..वर्षा का अमृत जल अब प्राण लेवा बन गया था … रात दिन की अनवरत् घनघोर बारिश के कारण मुंबई शहर में जनजीवन थम सा गया था . जिस नदी के मार्ग को उन्होंने अवरुद्ध करके वहाँ पर जंगल में मंगल मनाया था उसने विकराल रूप धारण कर लिया था वहाँ पूरी सोसायटी जलमग्न हो गई थी …. उन्होंने तो अपना महल सबसे अलग थलग काफी दूर बनाया था …. उसकी दो मंजिल गंदे नाले और पहाड़ी मलबे से पानी में डूब गईं थी … चारों ओर केवल जल ही जल दिखाई पड़ रहा था … रामचरण ऊपर की तीसरी मंजिल पर कैद होकर रह गये थे .. उनका गोल्डेन महल आज उन्हें मुँह चिढाता हुआ दिखाई पड़ रहा था … उनकी दसो अंगुलियों में मँहगे रत्न जो प्लैटिनम और गोल्ड में मढे हुए थे , उनका महल फाइव जो स्टार होटल जैसा भव्य वास्तुकला का अद्भुत नमूना था जिसे बनाने में उन्होंने करोड़ो करोड़ रुपये खर्च कर दिये थे … हर कमरे बेल्जियम के बड़े बड़े शैंडलर टंगवाये थे …एक एक क्रॉकरी पर सोने की मीना कारी करी हुई थी .. उनके पास क्या नहीं था …. देश विदेश में बड़े बड़े रिटेल स्टोर परंतु आज प्रकृति के रौद्र रूप के कारण उनके जिगर का टुकड़ा, उनका लाल , उनके दिल का टुकड़ा , जो इस दुनिया में बड़ी मिन्नतों और प्रार्थनाओं के बाद उन्हे मिला था … चार दिनों तक तो पॉउडर का दूध मुश्किलों से पीता और मुंह से निकाल देता लेकिन आज उनका दुधमुँहा बेटा दो दिन से एक बोतल दूध के लिये तड़प रहा था , बिलख बिलख कर रो रहा था … उसके रोने चीखने की आवाज से उनकी आत्मा ग्लानि से कलप रही थी … जिस स्टाफ के लोगों से वह हमेशा गालियों से बात करते थे अछूतों सा व्यवहार करते थे , आज वह बेटे को चुप कराने के लिये मिन्नते करते फिर रहे थे लेकिन कोई कुछ नहीं कर पा रहा था …….
बाढ के पानी ने पूरे एरिया को अपने आगोश में डुबो रखा था .. चारों तरफ लोग अपने अपने घर की छतों पर कैद थे .. उनकी अपनी कोठी सारे ब्लॉक से अलग थलग सिर उठाये हुए अपनी दो मंजिलों में भरे हुए पानी और कीचड़ के कारण सरकारी मदद का इंतजार कर रही थी … पानी क्या था पूरा जल प्रलय का दृष्य था … जहाँ पीछे से अपने लाडले की धीमी होती चीत्कार उनके कानों में गर्म पिघला शीशा सा उंडेल रही थी .
मंत्री जी हवाई सर्वेक्षण कर रहे थे . हवाई जहाज से खाने के पैकेट गिराये जा रहे थे . सरकार बराबर सहायता का आश्वासन दे रही थी और बाढ पीड़ितों की सहायता के लिये सॆना , एन . डी आर . एफ के साथ स्वयंसेवी संस्थायें भरपूर प्रयास कर रहीं थीं परंतु प्रकृति के रौद्र रूप के सामने सब मजबूर दिखाई दे रहे थे … अपनी अपनी छतों में चारों ओर लोग सरकारी सहायता की आस में खड़े हुए थे……तभी जोरों का शोर मचा सरकारी मदद वाली नाव दूध का पैकेट और ब्रेड आदि बाँटने के लिये लेकर आ रही है …
अपने लाडले की दूध की छटपटाहट के कारण उनका मिथ्या दंभ , दौलत का गुरूर धूल धूसरित हो गया और वह उसी पंक्ति में जाकर खड़े हो गये और दूध के पैकेट पाने का इंतजार करने लगे जहाँ लेबर बस्ती के मजदूर , नौकर सब लगे खड़े हुए थे ..परंतु प्रकृति के रोष के कारण आज उनके मन की सारी कटुता , मिथ्या अभिमान , दुर्भाव अपने आँसुओं के साथ बह गया था .
बाढ उतर जाने के बाद वह एकदम बदल चुके थे . उन्होंने अपने सभी कर्मचारियों को बाढ में हुए नुकसान के लिये मुआवजा दिया , उन्हें मान सम्मान दिया … उनका अभिमान , घमंड और धन दौलत की श्रेष्ठता की भावना को इस बाढ ने सच्चाई का आइना दिखा दिया था .. जिन लोगों को हेय की दृष्टि से देखा करते थे , उन्हें अपने गले से लगा लिया था . अब उन्हें उन लोगों के साथ खाने पीने में कोई परहेज नहीं था
वह पश्चाताप की आग में जल रहे थे … ये उन्हीं के कुकर्मों का फल है कि प्रकृति ऩे अपना रौद्र रूप दिखला दिया है … उन्होंने प्रकृति और पर्यावरण के साथ जो अन्याय किया है …हरे भरे पेड़ों के जंगल को काट कर सीमेंट का जंगल खडा कर दिया उसी वजह से उन्हें प्रकृति के रोष को सहना पड़ा है .. आज उन्होंने मन ही मन में यह प्रण किया कि उन्होंने जितना पर्यावरण को नुकसान पहुँचाया है उसकी भरपाई के लिये अपनी सारी दौलत ‘’वृक्ष लगाओ ….हरियाली बचाओ ‘‘अभियान पर खर्च करके पर्यावरण को शुद्ध करने के लिये तन मन और धन तीनों को न्यौछावर कर दूँगा …..
बस उस दिन के बाद से उनकी जीवन शैली और सिद्धांत बदल गये थे …….
उस दिन से अपने मन के भेद भाव और ऊँच नीच की भावना को सदा के लिये त्याग कर सबके प्रति प्रेम और समानता के भाव के साथ रहने लगे थे… गरीबों और जरूरतमंदों के लिये उनके दरवाजे सदा खुले रहते थे ..उनकी मदद करने से उन्हें आत्मिक खुशी और मन को अपूर्व शांति मिलती थी |
पद्माा अग्रवाल