वही गुलाबी जाड़े की,
खुशनुमा शुरआत ,
तासीर वही है,
वही है दिवाली की रात।
** दिनों पहले से होती थी
तैयारी जिसकी
साफ होती थी दहलीज
आले जाले दराजों कि हर चिट्ठी
अठन्नी चवन्नी जो रख कर भूल जाते थे
उन दिनों पाकर कितना इठलाते थे
** उछलते कूदते घर भर में
हुड़दंग मचाते थे
बाबू के आने पर तुरंत
छत पर भाग जाते थे
**झोले में उनके जो मनपसंद ,
चीज चीन्ह जाते थे ,
तब चुपके से अपनी सूरत ,
ऊपर ही से दिखाते थे।
अम्मा की मनुहार से
मान जाते थे
कुछ चुप चाप कदमों से
उतर के आते थे
झोले में हाथ डाल
मनपसंद चीज पा जाते थे
दोस्तों को दिखाने
सरपट दौड़ जाते थे
**सुबह से ही अम्मा
“आज क्या बनाओगी”
की रट लगाते थे
अपनी फरमाइशों की
लंबी कतार बताते थे
मनपसंद पकवानों के लिए
अम्माके आंचल से झूल जाते थे
छोटी मोटी तैयारी फिर
अम्मा के साथ कराते थे
**शाम को बाबू के साथ
झोला लेकर निकल जाते थे
खील-खिलौने ,गणेश-लक्ष्मी,
खूब चुनकर लाते थे
पटाखा चकरी की दुकानों की तरफ बाबू को बार-बार उंगली दिखाते थे
वहीं कहीं मेले में बार-बार खो जाते थे
**दीपावली में द्वार पर
सतिया हम भी बनाते थे
दीपों से घर भर को
खूब चमकाते थे
स्टील की प्लेटों में खील-खिलौने घर घर में दे आते थे
लौट के द्वार पर फुलझड़ी चकरी मन भर के छुड़ाते थे
**अन्नकूट में जब गोवर्धन
धरती पर उकेरे जाते थे
विस्मित आंखों से अम्मा में
छुपा कलाकार देख पाते थे
सुघड़ हाथों छोटे-छोटे
गाय बैल बनवाते थे
गोबर से सने हाथों को
रगड़ रगड़ धुलवाते थे
। भाई दूज में अम्मा संग
मामा के चित्र बनवाते थे
आंगन के बीच चौक पूर
मामा सब पूजे जाते थे
दियाली पर दियाली रख
विघ्नों का नाश करवाते थे
“लंबी उम्र हो भैया की “
अम्मा को कहता पाते थे।
**अधिक चमक पर,
महक लोप है
आज की दीवाली में,
बहु खंडी इमारतों में मनती,
फीकी सी दिवाली में ।
– डॉ भक्ति शुक्ला