ज़िंदगीनामा

Spread the love

आओ ज़रा ज़िन्दगी  को चूम लें

कभी जश्न में  कभी बारिशों  में  झूम लें

मन के ज़ंग लगे

सभी किवाड़ खोल दो

ज़हरीली हो चली हवाओं में

आब -ऐ- हयात घोल दो

महंगे हुए लिबास

और सस्ती हुए हस्तियां

रश्क़ -ऐ -झूमर से तू

रोशन न कर यूँ बस्तियां

गुमशुदगी से निकल

कभी महफिलों का ज़िक्र कर

खुद से तो बहुत मिल चूका

खुदा की भी कभी फ़िक्र कर

ख्वाहिशों  के पिंजर

में फड़फड़ाता परिन्दा ना बन

फ़रिश्ता नहीं बन सकता तो

दरिंदा भी न बन

भरी हुए तिजोरियां

और घर के खाली दालान हैं

घर हैं की टूट रहे

फ़िर भी मकान दर मकान हैं

कभी काली कभी सफ़ेद

ये ज़िन्दगी की जंग है

किसी को सांस नहीं

कोई जी जीकर  तंग है

सुना है खानदान उनका ऊंचा था

वो कुछ दूरी सी पसंद करते थे

कल ही मालूम हुआ अँधेरे की  आदत थी

 अब चिरागों से डरते थे

कभी बेवजह मुस्कुराने की वजह

भी ढून्ढ ले

आखें खोल के इससे पहले

आँखें तू मूँद ले

ज़िंदा है तो जी भी ले

कुछ गुफ़्तगू का शोर कर

मालूम नहीं कौन कब चला जाये

शहर ये छोड़ कर

जो उड़ते हुए थक गए हो

ज़मीन पर पैर धर लो

हो जाए खुद पर गुमान कभी

तो कब्रिस्तान के सैर कर लो

सुना है रुख्सती वाले फ़लक के अफ़सर

रिश्वत नहीं लेते

अलविदा कहने की

मोहलत भी नहीं देते

छोटी सी ज़िन्दगी है

चैन से बिताइए

बेवज़ह की बेरुखी में

वक़्त ना गवाइए

तो आओ ज़रा

ज़िन्दगी को चूम लें

कभी जश्न में  कभी बारिशों  में  झूम लें l

Neha Vertika

Zurich Switzerland

nvertika@gmail.com

View More


Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Back To Top
Translate »
Open chat