आखिर हूं तो मैं भी इंसान ही

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आखिर हूं तो मैं इंसान ही

कदम-कदम पर रोता हूं

हर कदम पर सोचता हूं

तमन्ना को सूली चढा कर

मजबूरियां ओढकर निकलता हूं

हर कदम पर सिखाया है, क्या ?

लड़कियों की तरह रोता है

       क्या करूं?

भीग ही जाती है पलके कभी

हो ही जाती है आंखे नम

आखिर हूं तो इंसान ही

हर कदम पर सिखाया है,

मर्द को दर्द नही होता

   होता तो है-

पर बयां नहीं होता, क्या करूं

आखिर हूं तो मैं इंसान ही

इतना आसान है क्या ? लड़का होना-

कुछ जिम्मेदारियों की चादर ओढ़कर

हर रोज़ निकलता हूं

पूरी हो या न हो

कुछ ख्वाहिशें तो रखता हूं, क्या करूं

आखिर हूं तो मैं इंसान ही

घर का चिराग बोलकर

मर्यादाओं में बांधा जाता है

उनकी हसीं को देखकर

हर दुःख भुलाना पड़ता है

पड़ जाता हूं कमज़ोर कभी-कभी

क्योंकि मैं भी एक दिल रखता हूं

आखिर हूं तो मैं इंसान ही

मै हर कदम पर सक्षम हूं

हर रोज़ दिखाना पड़ता है

कुछ जगह थोड़ा रोष दिखाकर

हर डर छुपाना पड़ता है

थकना चाहूं तो थक नही सकता

खुद को आदर्श का शीर्षक देकर

हर रोज़ चलना पड़ता है

दरारों से भरा शीशा हूं

चाहूं तो भी बिखर नही सकता

         लेकिन क्यों?

आखिर मै भी तो एक इंसान ही हूं।

Pratibha

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