किटी

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सावन, हरियाली तीज
मेंहदी लगे हाथ, हरी हरी चूड़ियां
राधा कृष्ण का हिण्डोला
नीम की डाल के झूले पर
सजी धजी बहू-बेटियां
महिलाओं का मनबहलाव
भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत
गीत संगीत से सराबोर
जिसमें बच्चे , बड़े, बूढे
सभी सम्मिलित हुआ करते थे
मन से खुश होते थे
अपने जीवन में संतुष्ट थे
मोटा खा पहन कर भी
प्रफुल्ल होते थे
तनाव एवं द्वेष से
दूर थे मस्त थे
कृत्रिमता और बनावट से
दूर वास्तविकता एवं असलियत को
आत्मसात किये हुये
बिना किसी दुराव छिपाव के
मस्ती करती , हंसी ठिठोली करती
नंद भाभियां और देवरानी जिठानियों
का अलमस्त माहौल , माइके आती बेटियां
का दिल से स्वागत् होता था
घरों में मेंहदी की महक थी

तो मोगरे की गमक थी
चूड़ियों की खनक थी
नई साड़ियों की सरसराहट थी
दिलों में मुस्कुराहट थी
मेरे विचार से…….
पुरातन किटी का रूप
एकता सामन्जस्य एवं स्नेह
का मिला जुला उदाहरण था
आजकल भी चहुं ओर किटी की बहार है
सुनिये जरा…..
परिवार में अकेली महिला है
दौड़ भाग है ..बच्चों का टिफिन है
लंच है , ऑफिस है
बच्चों का स्कूल है ट्यूशन है
किटी है और किटी का
मेम्बर होना अनिवार्य ही है
क्योंकि सोसायटी में जो रहना है
और निखालिस मनोरंजन जो है
किटी में हंसी के ठहाके हैं
फैशन है ,पार्लर है
होटल है हलवाई है
वन मिनिट गेम है
गीत है संगीत है
और बहुत कुछ है
एक दूसरे से प्यार है
तो कहीं कंपटीशन भी है
आंशिक छिपाव है

थोड़ा सा दुराव है
वास्तविकता कम परंतु
दिखावा ज्यादा है
कटलरी की खनखनाहट है
सिल्क की साड़ियों की सरसराहट है
रिश्तों में बनावट है
मन के कोने में द्वेष भी है
एक दूसरे के प्रति मन में
कहीं कलुष है राजनीति है
रात के डिनर की चिंता है
समय की हड़बड़ाहट है
सासुओं के मन में बहुओं का डर है
बहुओं के मन में सासुओं का खौफ है
सब गोलमाल है भई गोलमाल
सब ओर टेंशन टेंशन टेंशन
मौज है मस्ती है
क्रिटिसिज्म है आक्षेप है
मन में आवेश है
थोड़ी सी हंसी है
थोड़ा सा क्रोध है
शॉपिंग है मॉल है
सबसे खास बात …
अपने यहां तो सजा ही सजा
दूसरे के यहां मजा ही मजा
इसलिये मित्रों दुनिया छूटे
पर किटी न छूटे
कहिये कैसी रही

पद्मा अग्रवाल

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