आइये आज आप सबको अपनी “दशरथी”अम्मा से मिलवाते हैं…ये कई वर्षों से घर के पास रहती हैं और घरों में काम करने जाती हैं ख़ूब बढ़िया अवधी भी बोलती हैं..जब ये हँसती हैं तो इनका बस एक दाँत ही कमाल करता है..
अब इनका नाम “दशरथी”कैसे पड़ा ये भी बड़ा दिलचस्प किस्सा है..ये दशहरे वाले दिन पैदा हुईं..इनके माता पिता बेटे की आस लगाए थे और उसका नाम दशरथ रखना चाहते थे पर भगवान ने इनको भेज दिया तो ये “दशरथी”कहलाने लगीं.. बड़े चस्के ले के अपनी कहानी बताती हैं..हमें भी इनसे अजीब सा लगाव है..जाने कौन से जन्म का बंधन है..यथाशक्ति इनकी जब तब मदद करते रहते हैं सिर्फ इनका आशीर्वाद पाने के लिए..अगर ये हमको एक दिन भी न देखें तो घन्टी बजा के जरूर पूछती हैं “बिटिया का भवा नीक हौ ना कौनो परेसानी तौ नाय है..हमारा मन भावुक हो जाता है जब ये कहती हैं”हमरी नीक बिटिया जुग जुग जियऊ” तब हम मालामाल हो जाते हैं सच्ची इतना सुख मिलता है कि शब्द नहीं हैं..ये धार्मिक भी बहुत हैं..आज इनके देरी से आने का कारण पूछा तो बोलीं “बिटिया रामायण आवत रहै टीवी पर वहै देखै लागेन तबहें देरी भई”..आज इनको जो सामान चाहिए था इनको दिया तो अत्यंत भावुक हो उठीं..इनका चेहरा खुशी से दमक उठा..वैसे झुक के और लाठी ले कर चलती हैं पर जब हमने कहा “अम्मा फोटू खिचइहौ” तौ बोलीं “अरे बिटिया हमरे मन केरी मुराद पूरी किये हौ काहे न खिचइबै अउर इत्ते बुड्ढे हुई गयेन आजु तक कोउ हमरी फोटू नाय खींचिस”और तन के खड़ी हो गईं..सच्ची इत्ता मज़ा आया कि का बताई..ऐसी अनोखी हैं हमारी दशरथी अम्मा
–नीरजा शुक्ला ‘नीरू‘