वसंत

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हम आधुनिक हैं….

 न मन में उमंग

 न तन में तरंग

न जीवन में उछंग

कहीं खो गया है वसंत …..

 हम आधुनिक हैं

आधुनिकता  की आपाधापी में

भौतिकता की आंधी में

कहीं खो गया है वसंत

सरसों आज भी फूलती है

अमराई में आज भी बौर लगते हैं

फागुनी बयार आज भी मादक है

बागों में आज भी कोयल कूकती है

परंतु हमारी संवेदना मृतप्राय हो गई है

न मन में उमंग

न तन में तरंग

न  जीवन मे उछंग

कहीं खो गया है वसंत

हम आधुनिक हैं

इक्कीसवीं सदी में हैं

निरंतर दौड़ रहे हैं

अनवरत् भाग रहे हैं

देश में , विदेश में

गली में , मोहल्ले में

प्रकृति से दूर

कंक्रीट के जंगलों में

सुख सुविधा की खोज में

कुछ खोया है … तो कुछ पाया है

न मन में उमंग

न तन में तरंग

न  जीवन में उछंग

कहीं खो गया है वसंत

हम आधुनिक हैं

किसको फुर्सत है

देखने की – आम में बौर आ गये

या सरसों फूल रही है

अब तो बारहों महीने

फ्रूटी – माजा हमारे हाथों में है

ए. सी . कूलर के आगे

भूल गई फागुनी बयार

मोबाइल , लैपटॉप , आईपॉड के नशे में

कोयल की कुहू कुहू का क्या है अर्थ…

न मन में उमंग

न तन में तरंग

न जीवन में उछंग

कहीं खो गया है वसंत

हम आधुनिक हैं

वसंत ने भी  अपना चोला बदल  लिया है

अब वह वैलेन्टाइन डे बन गया है

यदि हम वसंत मनायेंगें

तो पुरातन पंथी कहलायेंगें

किसको याद है

कि मां सरस्वती का पूजन करना है

अब तो मात्र खाना पूर्ति करना है ..

कहीं खो गया है वसंत

न मन में उमंग

न तन में तरंग

न जीवन में उछंग

हम आधुनिक  हैं

वसंत मनाते हैं भी तो

किटी पार्टियों में या

सभा सोसायटियों में

क्या होगा पीले कपड़ो से …..

मदनोत्सव तो हम मनायेंगें ही

लेकिन नाम होगा वैलिंटाइन डे

न मन में उमंग

न तन में तरंग

न जीवन में उछंग

कहीं खो गया है वसंत

हम आधुनिक हैं

पद्मा अग्रवाल

Padmaagrawal33@gmail.com

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